हमारे बारें में

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स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज

सनातन परंपरा के संतों में सहज, सरल और तपोनिष्ठ स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का नाम उन संतों में लिया जाता है, जहां से कोई भी पद या पुरस्कार छोटा मिलता है। तन, मन और वचन से परोपकारी संत सत्यमित्रानंद आध्यात्मिक निजी के धनी थे। उनका जन्म 19 सितम्बर 1932 को आगरा के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

स्वामी सत्यमित्रानंद को 29 अप्रैल, 1960 को अक्षय तृतीया के दिन लगभग 26 वर्ष की आयु में भानपुरा पृच्छा का पुरावशेष बनाया गया था। स्वामी सदानंद जी महाराज ने उन्हें संत दिवस दिया। करीब नौ साल तक धर्म और मानव के निमित्त सेवा कार्य करने के बाद उन्होंने 1969 में जिस दंड को धारण करने की क्षमता से ही 'नरो नारायणो भवेत्' का ज्ञान हो गया, उसे गंगा में विसर्जित कर दिया।

स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी (जन्म: 19 सितंबर 1932, मृत्युः 25 जून 2019) एक आध्यात्मिक गुरु थे। धार्मिक-आध्यात्मिक परम्परा का पालन करने वाले स्वामी जी भारत माता को सर्वोच्च मानते थे। इसी श्रद्धा और प्रेम को प्रकट करते हुए उन्होंने हरिद्वार में 108 फीट ऊंचा भारत माता का विशाल मंदिर बनवाया था। जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था।

बालक अम्बिका प्रसाद से जगदगुरु शंकराचार्य के पद से विरक्त पद्म विभूषण, महामण्डलेश्वर स्वामी श्री सत्यमित्रानंद गिरि जी तक के गतिमान व्यतिक्तव के बारे में कुछ कह पाना अत्यन्त कठिन कार्य है। जो प्रतिक्षण चरैवेति-चरैवेति के सिद्धान्त का अनुगमन करने वाला हो, उस महापुरुष के बारे में कुछ कहना अपूर्ण ही होगा ऐसे दिव्य अवतारी आत्माओं के बारे में बिहारी जी का यह दोहा सार्थक है। 

लिखन बैठि जाकी छबिहिं गहि गहि गरब गरूर। 
भये न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर ॥

दिव्य महात्मा का आत्म-समर्पण

स्वामी श्री सत्यमित्रानंद गिरि जी जैसे उदार हृदय महात्मा, जिन्होनें अपनी मधुर प्राञ्जल, सारगर्भित, लोक कल्याणकारिणी, तमोहारिणी बाणी के द्वारा विशाल जन समुदायों के मानस सरोवर को आनन्द की उत्ताल तरंगों से अनेक बार तरंगायित किया है।

समाज में सेवा और समर्थन

स्वामी जी का सामान्य जन समुदायों के हृदय वन में निरन्तर आनन्दरुपी सौगन्ध्य विस्तारित करने के लिए, जगद्‌गुरु शंकराचार्य जैसे गरिमामय पद' का स्वतः परित्याग कर, निरन्तर दुःख संतप्तों का साथ दिया है। कभी अकाल पीड़ितों के साथ तो कभी भूकम्प पीड़ितों के बीच, तो कभी हरिजनों के बीच आपकी उपस्थिति, दुःख दावानल संतप्तों के लिए शीतल छाया का काम करती रही है। 

भारतमाता मंदिर और विविध सम्प्रदायों का समन्वय

आज स्वामी श्री सत्यमित्रानंद गिरि जी की समन्वयी दृष्टि समन्वयी दृष्टि आज "भारतमाता मंदिर " के रूप में लोक के समक्ष है जिसमें विभिन्न सम्प्रदायों का के आचार्यों की मूर्तियों की प्रतिष्ठा से समन्वय का जो स्वाकार रूप प्रस्तुत हुआ है, उससे सभी भारतीय उपासना पद्धतियों के लिए समान सम्मान की भावना स्पष्ट हो रही है। 

स्वामी जी द्वारा किये गए धार्मिक आयोजन

स्वामी जी ने प्रवासी भारतियों के परिवारों में भारतीयता के संस्कार' अक्षुण्ण रह सके, इसके साथ ही सनातन हिन्दू-धर्म विश्व मानव के लिए विश्व शांति का संदेश दे सके, इस दृष्टि से अनेक विराट यज्ञ और महोत्सव आयोजित किये।

हैरो लेजर सेन्टर में महारुद्राभिषेक, गीता ज्ञानयज्ञ, लेस्टर के अबे पार्क में 1008 कुण्डी गायत्री महायज्ञ'. यज्ञ वेम्बली कान्फ्रेंस हॉल में गुरु पूर्णिमा महोत्सव विष्णु सहस्त्रनाम, विराट दुर्गा महोत्सव, गणेश आराधना, सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार', कावेन्ट्री के कोम्बे अबे पार्क में सूर्य यज्ञ' जैसे अदभुत कार्यक्रमों से इंग्लैंड की धरती को भारत की तीर्थ भूमि बना दिया।

समर्पण और श्रद्धांजलि

हे परमात्मा, अपनी मातृभूमि को सर्वस्व समर्पित करने वाले महामानव, परिव्राजक की धर्म यात्रा के हम अनुकरणकर्ता बने रहें, और हमारी भावी पीढ़ी भी उनकी अमृतवाणी और अनुकम्पापूर्ण मार्ग दर्शन को प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त कर सके, इसी प्रार्थना के साथ क्षी चरणों में कोटिशः वंदन एवं अभिनन्दन।  


 

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