अमृत वचन

आरक्षण एक बैसाखी | AARAKSHAN EK BAISAKHI | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj | Bharat Mata

किसी विकलांग की सहायता करके उसे बैसाखी देकर उसके चलने में सहारा दिया जा सकता है किन्तु उस विकलांग के मन मस्तिष्क में एक पीड़ा सदैव रहती है कि वो कभी कितना स्वस्थ हुआ करता था

आसक्ति जला देती है | Askti Jala Deti Hai | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj

स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज (Amrit Vachan in hindi )ने इसी बात पर सांसारिकता में बंधे मनुष्यों की आसक्ति पर विश्लेषण करते हुए कहा है

स्वयं को कैसे जानें? | How To Know Yourself | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj | Bharat Mata

प्रस्तुत Video मे स्वामी सत्यमित्रा नन्द जी महाराज द्वारा दिए गए अमृत वचन (Amrit Vachan in hindi ) मे स्वयं को कैसे जानें? विस्तार से बताया गया हैं

भारत वर्ष का अध्यात्म शिखर | Adhyaatm Shikhar | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj

भारत के प्रत्येक नागरिक के ह्रदय में व्याप्त इस विश्वास से ही हम भारत में सदाचार की पुनर्स्थापना कर सकते हैं, भ्रष्टाचार का अंत कर सकते हैं, घृणा और ईर्ष्या को मिटा सकते हैं, उन्नति के मार्ग पर बढ़ सकते हैं एवं मानव मात्र में ही परमात्मा के दर्शन प्राप्त कर सकते हैं | ये समस्त सिद्धांत केवल ग्रन्थ तक नहीं अपितु समाज में क्रियान्वित होने चाहिए, तभी अध्यात्म के शिखर की प्राप्ति हो सकेगी |

आत्महत्या नहीं आत्मदर्शन | Aatmhatya Nhi Aatmdarshan | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj

जब-जब मैं उपासना के क्षणों मे परमात्मा के चरणों मे बैठता हूँ, तब-तब मेरी यही प्रार्थना रहती है की परमात्मा मेरे राष्ट्र को सर्वविधि समृद्ध एवं सम्पन्न बना दें। आत्महत्या नहीं आत्मदर्शन | Aatmhatya Nhi Aatmdarshan | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj

परमात्मा के चरणो में प्रीति | Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj | Parmatma Se Priti Bani Rahe

प्रस्तुत अमृत वचनों के माध्यम से स्वामी सत्यामित्र नन्द जी महाराज बताते हैं जब-जब मैं उपासना के क्षणों मे परमात्मा के चरणों मे बैठता हूँ, तब-तब मेरी यही प्रार्थना रहती है की परमात्मा मेरे राष्ट्र को सर्वविधि समृद्ध एवं सम्पन्न बना दें। 

अंतर बंधन से मुक्ति | Antar Bandhan Se Mukti | Bharat Mata

प्रस्तुत वीडियो में ब्रहमलीन स्वामी सत्यामित्रानंद गिरि जी महाराज जी कहते हैं कि छोटी सी संपत्ति को अपना मानकर अहंकार की परिधि में निरंतर अपने को बांधने का प्रयत्न करना कोई बुद्धिमानी की बात नहीं हो सकती है |