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सम्पूर्ण विश्व तथा मुख्य रूप से राष्ट्र के भविष्य की निर्माता -
युवा शक्ति को भारत के विशाल इतिहास एवं भव्य संस्कृति से
परिचित कराने के लिए भारत समन्वय परिवार पूर्ण रूप से
प्रतिबद्ध है। भारतमाता के प्रति अपार श्रद्धा एवं समर्पण के
दैदीप्यमान प्रतीक तथा भारतीय धर्मजगत के सशक्त स्तम्भ
परम पूजनीय स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज की
ओजस्वी वाणी से प्रस्फुटित वचनों से जनमानस को प्रेरित करने
के लिए भी हम पूर्णतः समर्पित हैं। स्वधर्म एवं सौराष्ट्र का
प्रतिष्ठापन करने वाले सरल हृदय एवं तपोनिष्ठ स्वामी
सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज का प्रभामंडित स्वर वो
प्रेरणादायी स्त्रोत है जिसमें भारत का प्राचीन गौरव
महाऋषियों की दिव्य वाणी आधुनिक युग के निर्माता स्वामी
विवेकानंद तथा स्वामी रामतीर्थ का समन्वित व्यक्तित्व साकार
हो गया है।
जगत की अमूल्य धरोहर के रूप में प्रतिष्ठापित भारतीय
इतिहास एवं संस्कृति तथा परम श्रद्धेय गुरूवाणी को
जगतकल्याण के लिए भारत समनव्य परिवार आप सबके
समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। भारत समन्वय परिवार सदैव ही
भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को जनमानस के ह्रदय रुपी सागर
में उदित करने के लिए तत्पर है। अपनी इस भावधारा से हमने
कुछ महत्वपूर्ण विषयों को इसमें समाहित किया है,
जिनमें मुख्य
हैं –
Bharat Mata की इस प्रस्तुति मे मत्स्य पुराण का वर्णन है। इस पुराण में 14,000 श्लोक और 291 अध्याय है। इस पुराण में प्रलय काल के समय भगवान विष्णु ने एक मत्स्य (मछली) का अवतार धारण किया इसलिए यह मत्स्य पुराण के नाम से जाना जाता है।
देखेंBharat Mata की इस प्रस्तुति मे स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज नाम जप को सर्वश्रेष्ठ यज्ञ बताते हुए कहते हैं कि "कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर-सुमिर नर उतरहिं पारा।
देखेंBharat Mata Channel की प्रस्तुति मे दीपक का महत्व भारतीय संस्कृति में अद्भुतता को दर्शाता है। इसका उपयोग पूजा,धार्मिक कार्यों एवं अनुष्ठानों में व्यापक रूप से होता है। सनातन धर्म में, दीपक का महत्व विशेषकर सकारात्मकता और ज्ञान के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है।
देखेंसनातन परंपरा के संतों में सहज, सरल और तपोनिष्ठ स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का नाम उन संतों में लिया जाता है, जिनके आगे कोई भी पद या पुरस्कार छोटे पड़ जाते हैं। तन, मन और वचन से परोपकारी संत सत्यमित्रानंद आध्यात्मिक चेतना के धनी थे। उनका जन्म 19 सितंबर 1932, में आगरा के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
स्वामी सत्यमित्रानंद को 29 अप्रैल, 1960 को अक्षय तृतीया के दिन मात्र 26 वर्ष की आयु में भानपुरा पीठ का शंकराचार्य बना दिया गया। स्वामी सदानंद जी महाराज ने उन्हें संन्यास की दीक्षा दी। करीब नौ वर्ष तक धर्म और मानव के निमित्त सेवा कार्य करने के बाद उन्होंने 1969 में जिस दण्ड को धारण करने मात्र से ही 'नरो नारायणो भवेत्' का ज्ञान हो जाता है, उसे गंगा में विसर्जित कर दिया।
स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी (जन्म : १९ सितम्बर १९३२, मृत्युः २५ जून २०१९) एक आध्यात्मिक गुरु थे। धार्मिक-आध्यात्मिक परंपरा का पालन करने वाले स्वामी जी भारत माता को सर्वोच्च मानते थे। अपनी इसी श्रद्धा और प्रेम को प्रकट करते हुए उन्होंने हरिद्वार में 108 फीट ऊंचा भारत माता का विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। जिसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था।
परम पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज आध्यात्मिक गुरु, संत , लेखक और दार्शनिक हैं। स्वामी जी जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर हैं। स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने लगभग दस लाख नागा साधुओं को दीक्षा दी है और वे उनके पहले गुरु हैं। स्वामी जी ने मात्र 17 वर्ष की आयु में सन्यास के लिए घर त्याग दिया था। घर छोड़ने के बाद उनकी भेंट अवधूत प्रकाश महाराज से हुई। स्वामी अवधूत प्रकाश महाराज योग और वेदशास्त्र के विशेषज्ञ थे। स्वामी अवधेशानंद जी ने उनसे वेदांत दर्शन और योग की शिक्षा ली।
गहन अध्ययन और तप के बाद वर्ष 1985 में स्वामी अवधेशानंद जी जब हिमालय की कन्दराओं से बाहर आए तो उनकी भेंट अपने गुरु, पूर्व शंकराचार्य स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि महाराज से हुई। स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज से उन्होंने सन्यास की दीक्षा ली और अवधेशानंद गिरि के नाम से जूना अखाड़ा में प्रवेश किया।
वर्ष 1998 में हरिद्धार कुम्भ में जूना अखाड़े के सभी संतों ने मिलकर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी को आचार्य महामंडलेश्वर के रूप में प्रतिष्ठित किया। वर्तमान में स्वामी अवधेशानंद गिरि जी प्रतिष्ठित समन्वय सेवा ट्रस्ट हरिद्धार के अध्यक्ष हैं जिसकी भारत और विदेशों में कई शाखाएं हैं। इस ट्रस्ट में विश्व प्रसिद्ध भारत माता मंदिर हरिद्धार सम्मिलित है।
स्वामी अवधेशानंद जी ने जलवायु परिवर्तन, विभिन्न संप्रदायों में भाईचारे के लिए कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों की अध्यक्षता की है। स्वामी जी को वेदांत और प्राचीन भारतीय दर्शन विषयों का गहरा ज्ञान है। भारतीय आध्यात्म के शाश्वत संदेशों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने का स्वामी जी का दिव्य प्रयास सम्पूर्ण देश के लिए गौरव की बात है। आज हम सब उनके लखनऊ आगमन के अवसर पर उनका हार्दिक स्वागत करते हैं और उनके श्रीचरणों में पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। उनकी श्रेष्ठता और पावनता को शत शत नमन।