हिंदू धर्म के अनुसार, व्यक्ति का जीवन वास्तव में आत्मा की यात्रा है। हर व्यक्ति को शारीरिक शरीर में पुनर्जन्म के एक लंबे क्रम से गुजरना पड़ता है, जो अंततः मोक्ष (पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति) की प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है। हमारे मन की शुद्धता अच्छे कर्म (क्रियाएँ) को जन्म देती है, और इन अच्छे कर्मों का प्रभाव हमारे अगले जन्म को निर्धारित करता है। अच्छे कर्म धर्म पर आधारित होते हैं, जिसका अर्थ है सत्य, नैतिकता, और जीवन के उद्देश्य को समझना।
हिंदू समाज में वर्ग और कर्म की महत्ता
हिंदू समाज को चार मुख्य वर्गों में बांटा गया है: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र। ये चारों वर्ग व्यक्ति के पिछले कर्मों और स्वाभाविक प्रवृत्तियों के आधार पर निर्धारित होते हैं। इस प्रकार, हिंदू धर्म का सिद्धांत है कि जीवन में किए गए कर्म और हमारी नैतिकता का सीधा असर हमारे आत्मिक विकास और पुनर्जन्म पर पड़ता है, और इस प्रक्रिया में हम मोक्ष की ओर बढ़ते हैं।
भारतीय संस्कृति में ज्ञान का आधार
भारतीय संस्कृति मे इसी अमित कोश को जानने और हर प्रकार के ज्ञान समझने की साधन का आधार है हमारा वेद, उपनिषद व पुराण।
वेद: धार्मिक साहित्य का स्त्रोत
विश्व का सबसे प्राचीन साहित्य वेद हैं, जो धार्मिक काव्य और भजनों का संग्रह हैं। वेदों की रचना संस्कृत में की गई, जो एक प्राचीन बौद्धिक भाषा है। कुछ वेदिक भजन इस दार्शनिक विचार को व्यक्त करते हैं कि एक ईश्वर अनेक रूपों में प्रकट होता है। सर्वव्यापी परमात्मा की तीन मुख्य अभिव्यक्तियाँ हैं: ब्रह्मा, सृष्टि के सृजनकर्ता; विष्णु, पालनकर्ता; और शिव, संहारक। हालांकि लोग कई देवताओं और देवियों की पूजा करते हैं, वे वास्तव में एक ही सर्वोच्च ईश्वर की उपासना करते हैं।
ऋग्वेद
ऋग्वेद (श्लोकों का ज्ञान) एक अत्यंत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक लेखन है। इसमें 10 मंडल (खंड) हैं, जिनमें 1,028 भजन और 10,589 श्लोक शामिल हैं। इसमें प्रकृति के देवताओं, जैसे इंद्र (वर्षा देवता और स्वर्ग के राजा), अग्नि (अग्नि देवता), रुद्र (वायु और तूफान के देवता), सोम (अमृत का रस) और वरुण (जल देवता) का आह्वान किया गया है।
सामवेद
सामवेद, जिसे 'गान का ज्ञान' भी कहा जाता है, ऋग्वेद के आठवें और नौवें खंडों से लिए गए सामन (गान) का संग्रह है। यह विशेष रूप से उन पुरोहितों के लिए था जो सोम यज्ञ के अनुष्ठानों में कर्तव्य पालन करते थे। सामवेद में यह स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि मंत्रों को किस प्रकार गाया जाए और उनके उच्चारण से निकलने वाली ध्वनियाँ और उनके प्रभावों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है। इस वेद का उद्देश्य मंत्रों के सही उच्चारण के द्वारा वातावरण और व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव डालना है।
यजुर्वेद
यजुर्वेद, जिसे 'बलि का ज्ञान' भी कहा जाता है, यज्ञों के अनुष्ठान के दौरान गाए जाने वाले विविध आह्वान (यजु) और मंत्रों का संग्रह है। ये मंत्र विशेष रूप से 'अध्वार्यु' नामक पुरोहितों द्वारा गाए जाते थे, जो यज्ञ अनुष्ठान में मुख्य कर्तव्य निभाते थे। यजुर्वेद में इन मंत्रों के प्रयोग का विस्तार से उल्लेख किया गया है, जो विभिन्न यंत्रों और उपकरणों को पवित्र करने के लिए, तथा विभिन्न देवताओं और प्राकृतिक शक्तियों को सम्मानित करने के लिए गाए जाते थे।
इस वेद के दो प्रमुख भाग हैं – शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद।
अथर्ववेद
अथर्ववेद का नाम 'अथर्वण' ब्राह्मण परिवारों से जुड़ा हुआ है, जिन्हें इस वेद के 'आविष्कार' का श्रेय दिया जाता है। यह वेद तंत्र-मंत्र, औषधि विज्ञान और दैनिक जीवन की विभिन्न समस्याओं से निपटने के लिए उपयुक्त विधियों पर आधारित है। इसमें शारीरिक और मानसिक उपचार, सुरक्षा, समृद्धि, और कल्याण के लिए मंत्रों और प्रथाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।
ये चारों वेद हिंदू धर्म के मुख्य ग्रंथ हैं, जिनमें ब्रह्मा, सृष्टि, जीवन और मानवता के गहरे दार्शनिक और धार्मिक विचार दिए गए हैं। वेदों के माध्यम से, हिंदू धर्म जीवन के उद्देश्य, ब्रह्मा और आत्मा के बीच के संबंध, और परम सत्य के अनुभव को प्राप्त करने के मार्ग पर प्रकाश डालता है।
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पुराण और उपपुराण
पुराण हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ हैं, जो सृष्टि के निर्माण से लेकर संहार तक के ऐतिहासिक कथाएँ, राजाओं और ऋषियों की वंशावली, तथा हिंदू भूगोल का वर्णन करते हैं। पुराणों में असुरों (दानवों) और देवों (देवताओं) के बीच युद्धों का उल्लेख भी किया गया है। ये ग्रंथ हिंदू धर्म के विभिन्न दर्शन, जैसे अहिंसा (जीवों को किसी भी प्रकार की हानि न पहुँचाना), गायों की पूजा (जिन्हें हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है), और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर बल देते हैं। ब्राह्मण विद्वान पुराणों की कथाएँ 'कथा' सत्रों में सुनाते हैं, जिनमें एक भ्रमणशील ब्राह्मण कुछ समय के लिए मंदिरों में रुककर इन कथाओं का प्रवचन करता है।
मुख्य पुराण और उनकी महत्ता
- अग्नि पुराण (15,400 श्लोक) – इसमें वास्तु शास्त्र और रत्नशास्त्र का विवरण दिया गया है।
- भागवत पुराण (18,000 श्लोक) – यह पुराण विष्णु के अवतारों की कथाएँ सुनाता है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण की बाल्यकाल की लीलाएँ विशेष रूप से दी गई हैं। यह पुराण सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय है।
- भविष्य पुराण (14,500 श्लोक) – भविष्य के घटनाक्रमों का उल्लेख करता है।
- ब्रह्म पुराण (10,000 श्लोक) – इसमें गोदावरी नदी और उसकी सहायक नदियों से जुड़ी कथाएँ हैं।
- ब्रह्माण्ड पुराण (12,000 श्लोक) – इसमें 'ललिता सहस्रनाम' का उल्लेख है, जिसे कुछ हिंदू परम देवी की पूजा के लिए पाठ करते हैं।
- ब्रह्मवैवर्त पुराण (17,000 श्लोक) – इसमें देवी, कृष्ण और गणेश की पूजा विधियों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
- गरुड़ पुराण (19,000 श्लोक) – यह पुराण मृत्यु और उसके बाद के प्रभावों को लेकर अत्यंत पवित्र माना जाता है।
- हरीवंश पुराण (16,000 श्लोक) – यह महाभारत का एक परिशिष्ट है, जिसमें विशेष रूप से भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है।
- कूर्म पुराण (17,000 श्लोक) – इसमें कूर्म अवतार से संबंधित कथाएँ दी गई हैं।
- लिंग पुराण (11,000 श्लोक) – यह शैव धर्म से संबंधित एक महत्वपूर्ण पुराण है, जो भगवान शिव की पूजा और तंत्र का वर्णन करता है।
- मार्कंडेय पुराण (9,000 श्लोक) – इसमें 'देवी महात्म्य' का उल्लेख है, जो शाक्त उपासकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
- मत्स्य पुराण (14,000 श्लोक)– इसमें सृष्टि के पहले जलप्रलय की कथा दी गई है।
- नारद पुराण (25,000 श्लोक)– इसमें वेदों और वेदांगों की महिमा का वर्णन है।
- पद्म पुराण (55,000 श्लोक) – इसमें भगवद गीता के महात्म्य का विस्तार से वर्णन है।
- शिव पुराण (24,000 श्लोक) – यह पुराण भगवान शिव की पूजा और उनके लीलाओं का वर्णन करता है।
- स्कंद पुराण (81,100 श्लोक) – यह पुराण सबसे लंबा है और एक अत्यंत विस्तृत तीर्थयात्रा मार्गदर्शिका के रूप में कार्य करता है। इसमें भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों की भौगोलिक जानकारी, संबंधित कथाएँ, उपकथाएँ, भजन और शास्त्रों का विवरण दिया गया है।
- वामन पुराण (10,000 श्लोक) – इसमें कुरुक्षेत्र के आस-पास के क्षेत्र का वर्णन किया गया है।
- वराह पुराण (24,000 श्लोक) – यह पुराण वराह अवतार से संबंधित कथाएँ प्रस्तुत करता है।
- वायु पुराण (24,000 श्लोक) – इसमें वायु देवता और उनके महत्व का वर्णन है।
- विष्णु पुराण (23,000 श्लोक) – यह पुराण भगवान विष्णु के अवतारों और उनके कार्यों का वर्णन करता है।
उपपुराण:
उपपुराण वे ग्रंथ होते हैं जो पुराणों के सहायक होते हैं और विभिन्न धार्मिक, दार्शनिक और ऐतिहासिक विषयों का विस्तृत वर्णन करते हैं।
प्रमुख उपपुराणों में सनत कुमार पुराण, नरसिंह पुराण, बृहन नारदीय पुराण, शिव रहस्य पुराण, दुर्वासा पुराण, कपिल पुराण, वामन पुराण, भार्गव पुराण, वरुण पुराण, कालीका पुराण, साम्ब पुराण, नंदी पुराण, सूर्य पुराण, पराशर पुराण, वशिष्ठ पुराण, देवी भगवतम्, गणेश पुराण, मुद्गल पुराण और हंसा पुराण शामिल हैं। ये उपपुराण हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथ हैं, जो पुराणों से संबंधित विभिन्न पहलुओं का विस्तृत रूप से वर्णन करते हैं। इन ग्रंथों का अध्ययन हिंदू धर्म की विविधता, भक्ति और दर्शन को समझने में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है। उपपुराणों और पुराणों का अध्ययन हिंदू धर्म के गहरे सिद्धांतों और परंपराओं को समझने में सहायक होता है।
उपनिषद और उनका ज्ञान
वैदिक साहित्य में अंतिम कड़ी के रूप में आरण्यकों के अंत में ही उपनिषद् आते हैं। प्रतिपादित विषय की दृष्टि से वेद के दो भाग हैं-कर्मकांड और ज्ञान कांड । संहिता, ब्राह्मण और आरण्यकों में प्रधानतया कर्म की विवेचना होने के कारण ये कर्मकांड, यज्ञ व अनुष्ठानों का विस्तार से वर्णन करते हैं, जबकि उपनिषद् ज्ञान कांड प्रधान होने के कारण ब्रह्म के स्वरूप, जीव तथा ब्रह्म के परस्पर संबंध, ब्रह्म प्राप्ति के मार्ग आदि विषयों का विशद वर्णन करते हैं। यद्यपि उपनिषदों की निश्चित संख्या पर काफी विवाद है, क्योंकि पहले प्रत्येक वैदिक शाखा का अपना विशिष्ट उपनिषद् था, परंतु अब बहुत से उपनिषद् उपलब्ध नहीं हैं। मुक्तिकोपनिषद् में 108 उपनिषदों की सूची दी हुई है, जिसमें 10 ऋग्वेद से, 29 शुक्ल यजुर्वेद से, 32 कृष्ण यजुर्वेद से, 26 सामवेद से और 31 अथर्ववेद से संबंधित हैं। आदि शंकराचार्य ने विषय प्रतिपादन, विशदता व प्राचीनता के आधार पर 11 उपनिषदों पर अपने भाष्य प्रस्तुत किए हैं तथा इन ग्यारह भाष्यों में 6 अन्य उपनिषदों से प्रमाण लिए हैं। अतः ये ही 17 उपनिषद् बड़े महत्त्वपूर्ण माने गए हैं। इसी प्रकार मुक्तिकोपनिषद् में भी दस उपनिषदों के ही पाठ पर विशेष बल दिया गया है, परंतु काल व स्थान भेद के अनुसार आज उपलब्ध उपनिषदों की संख्या लगभग 220 है।
उपनिषद् शब्द की व्याख्या
उपनिषद् शब्द का व्यावहारिक अर्थ है-उप अर्थात् निकट, नि अर्थात् नीचे, षद् अर्थात् (बैठना )। इस प्रकार-गुरु के पास, उसके निकट या नीचे चरणों में बैठकर अध्ययन करना। दार्शनिक विद्वान् उपनिषद् शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार बतलाते हैं- 'उप+नि' इन दो उपसर्गों के साथ 'सद्' धातु से 'क्विप्' प्रत्यय करने पर 'उपनिषद्' शब्द की सिद्धि होती है। 'सद्' धातु के तीन भिन्न अर्थ हैं-विनाश, गति, अवसादन (शिथिल करना) अर्थात् जो समस्त अनर्थों को उत्पन्न करने वाले संसार का नाश करती, संसार की कारणभूत अविद्या को शिथिल करती तथा ब्रह्म की प्राप्ति कराती है, वही उपनिषद् है (कल्याण पृ. 14, उपनिषदांक)। यही मत आचार्य शंकर का भी है।
उपनिषदों की संख्या
उपनिषदों की कुल संख्या कितनी है? किस संहिता या वेद से कौन-सा उपनिषद् संबंधित है? मुख्य उपनिषद् कौन-कौन से हैं? इन प्रश्नों का उत्तर देश, काल, परिस्थिति तथा विभिन्न मतानुसार परिवर्तित होता रहा है। सर्वप्रथम प्राचीन वैदिक "छंदस्” भाषा जो संहिताओं में मिलती है, उससे भिन्न संस्कृत में आरण्यक व उपनिषद् साहित्य की रचना प्रारंभ हुई। संहिताओं और ब्राह्मणों की तरह इन्हें स्वर सहित पढ़ने का विधान नहीं है। आरण्यकों के अंतिम भाग होने के कारण आरण्यकों के नाम से ही प्रसिद्ध उपनिषद् जैसे- ऐतरेय, कौषीतकि (ऋग्वेद), छान्दोग्य (सामवेद), तैत्तिरीय, बहदारण्यक (यजुर्वेद) आदि हैं, जिनकी शैली गद्यमय है।
उपनिषद का उद्देश्य
भारतीय दर्शन की कोई भी धारा ऐसी नहीं है, जिसका मूल उपनिषदों में विद्यमान न हो। कालान्तर में विभिन्न सम्प्रदाय, विभिन्न मत, विभिन्न दर्शन उपनिषद् की किसी एक विशिष्ट संकल्पना को लेकर ही उसके वाहक बन गए। सांख्य दर्शन हो या बौद्ध दर्शन, जैन धर्म हो या शैव मत, शाक्त आराधना हो या सूर्य आराधना सभी वट वृक्षों के बीच उपनिषदों में स्पष्टतः मौजूद हैं। परंतु उपनिषदों का मुख्य उद्देश्य क्या है? इनका लक्ष्य क्या है? यह क्या कहना चाहते हैं? क्या संप्रेषित करना चाहते हैं? यदि एक वाक्य में यह सब कहना हो, तो वह है 'सत्य की खोज' या 'ब्रह्म की पहचान' । हम कहां से आए हैं? हम कहां जाएंगे? इस सृष्टि को नियम पूर्वक चलाने वाला कौन है? सूर्य को कौन उदित करता है? चंद्रमा को कौन क्षीण व पुष्ट करता है? नदियों को कौन प्रवाहित करता है? मनुष्य में श्वास को कौन चलाता है? किसकी शक्ति से यह सब संचालित होता है? जीव वास्तव में क्या है? इन्हीं जिज्ञासाओं को उपनिषद् शांत करते हैं। अतः कहा गया है-
असतो मा सद् गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ।।
(असत्य से सत्य की ओर चलें। अंधकार से प्रकाश की ओर चलें।)
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