सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं ओम्कारम् अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
आध्यात्मिक आस्थाओं से जुड़े हुए व्यक्तियों के लिए पवित्र स्थलों की यात्रा एक अनमोल और अत्यधिक महत्व का अनुभव होती है। ये पवित्र स्थल गहरी आत्मिक उन्नति की प्राप्ति के साधन माने जाते हैं।
ज्योतिर्लिंग क्या है और इनका महत्व
‘ज्योतिर्लिंग’ शब्द का अर्थ है ‘प्रकाश का लिंग’, जिसमें 'ज्योति' (प्रकाश) और 'लिंग' (शिव का प्रतीक) का मिला जुला रूप है। भारत मे स्थित 12 ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के अद्भुत रूप हैं, जिन्हें हिंदू धर्म में अत्यधिक आदर और सम्मान दिया जाता है। हर एक ज्योतिर्लिंग मंदिर अपने नाम के साथ उस विशेष रूप का सम्मान करता है, जिसे वह प्रतिष्ठित करता है। इन मंदिरों के केंद्र में स्थित ‘लिंगम’ भगवान शिव के ब्रह्मांडीय स्तंभ का प्रतीक है, जो उनकी सृजनात्मकता और अनंतता का प्रतीक है।
भारत के इन 12 ज्योतिर्लिंगों का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है, और यह जुड़ा हुआ है शिव पुराण की एक प्राचीन कथा से। कथा के अनुसार, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच एक विवाद उत्पन्न हुआ था कि कौन सबसे श्रेष्ठ है। इस विवाद का समाधान करने के लिए भगवान शिव एक विशाल और अनंत प्रकाश स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) के रूप में प्रकट हुए, जिससे ब्रह्मा और विष्णु को यह चुनौती दी कि वे इसके अंत का पता लगाएं।
ब्रह्मा ने अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए दावा किया कि वह ऊपर तक पहुँच चुके हैं, और इसके प्रमाण के रूप में केतकी का फूल पेश किया, जबकि विष्णु ने इसके अंत को नहीं पाया। शिव ने ब्रह्मा के झूठ के कारण उसे शापित किया कि वह पृथ्वी पर कभी पूजा नहीं जाएगा, जबकि विष्णु को उसकी ईमानदारी के लिए आशीर्वाद दिया। यही ज्योतिर्लिंग वे स्थान हैं जहाँ शिव ने इस दिव्य स्तंभ के रूप में अपनी अनंतता और महानता का प्रदर्शन किया। इन तीर्थ स्थलों की यात्रा, श्रद्धालुओं के लिए, आध्यात्मिक शांति की ओर एक यात्रा बन जाती है, जिसमें वे हिंदू धर्म के गहरे रहस्यों को समझने का प्रयास करते हैं। भारत के इन 12 ज्योतिर्लिंगों तक की यात्रा न केवल आध्यात्मिक जागरूकता का मार्ग है, बल्कि यह सांस्कृतिक और धार्मिक समृद्धि से भी भरपूर है।
12 ज्योतिर्लिंगों के नाम और स्थान
ज्योतिर्लिंग केवल पूजा स्थलों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये आकाशीय शक्तियों के केंद्र हैं, जहाँ शिव ने प्रकाश स्तंभ के रूप में अपनी अनंतता का अहसास कराया। ये पवित्र स्थल न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा हैं, बल्कि वे हमारे भीतर की आध्यात्मिक यात्रा का मार्गदर्शन करते हैं। इन 12 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर के अन्वेषण के रूप में रूपांतरित हो जाती है, जो हमें शिव के बहुआयामी रूपों और उनके दिव्य स्वभाव से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है।
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सोमनाथ – गिर सोमनाथ, गुजरात – पहला पवित्र तीर्थ स्थल
गुजरात स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इस मंदिर की धार्मिक महत्ता बेमिसाल है और यह सदियों से आस्थावान भक्तों का प्रमुख तीर्थ स्थल रहा है। मंदिर की भव्य वास्तुकला न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि इसके इतिहास में अनेकों विध्वंस और पुनर्निर्माण की गाथाएं भी समाहित हैं। अरब सागर के किनारे स्थित यह मंदिर दर्शकों और तीर्थयात्रियों को न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का भी अद्भुत उदाहरण है। ऐतिहासिक रूप से यह मंदिर सोने और चांदी से बना हुआ था, लेकिन आक्रमणकारियों और शासकों जैसे औरंगजेब के हमलों से इसकी संरचना प्रभावित हुई थी।
सोमनाथ मंदिर से जुड़ी कथा में चंद्र देव ‘सोमदेव’ का उल्लेख है, जिनकी भक्ति और ध्यान के कारण भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया, जिससे उनका चंद्रमा केवल आधे महीने तक मंद हो गया। इस आशीर्वाद के प्रतीक रूप में सोमदेव ने इस मंदिर का निर्माण किया, जो शिव की अनंत कृपा का स्मारक बन गया।
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दक्षिण का कैलाश ‐ भव्य मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
आंध्र प्रदेश के नल्लमाला पहाड़ियों में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, जिसे श्रीसैलम मंदिर भी कहा जाता है, भगवान शिव के पवित्र 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है और यह न केवल शिव भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, बल्कि प्राचीन भारतीय मंदिर वास्तुकला का जीवंत उदाहरण भी है। यह मंदिर देवी भ्रामरंबा के साथ स्थित है, जो इसकी आध्यात्मिक शक्ति को और भी मजबूत करती है। शिव पुराण में इस मंदिर की कथा बताई गई है, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय की नाराजगी को शांत करने के लिए यहां निवास किया। खास बात यह है कि यह एकमात्र मंदिर है, जहाँ भक्तों को मूर्तियों को छूने की अनुमति है, जो अन्य ज्योतिर्लिंग मंदिरों में आमतौर पर नहीं होती।
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दिव्य आभा और प्राचीन कथाएं ‐ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
उज्जैन, मध्य प्रदेश में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, भारत के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। यह मंदिर रुद्र सागर झील के किनारे स्थित है और अपनी अद्भुत वास्तुकला और विशेष भस्म आरती के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें भगवान शिव के शिवलिंग को ताजे शवदाह की राख से स्नान कराया जाता है। महाकालेश्वर मंदिर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक गहरा है, और यहां की भस्म आरती विशेष रूप से तीर्थयात्रियों के लिए एक दिव्य अनुभव है। महाकालेश्वर के बारे में सबसे प्रसिद्ध कथा बताती है कि भगवान शिव ने राक्षस दुशन का वध करने के बाद उज्जैन में प्रकट होकर इस स्थल को अपने निवास के रूप में चुना और यहां अपने भक्तों पर अनंत आशीर्वाद की वर्षा की।
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पवित्र ओम द्वीप ‐ ओंकारेश्वर और मामलेश्वर मंदिर, मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश के मंदहाता द्वीप पर स्थित ओंकारेश्वर और मामलेश्वर मंदिर भगवान शिव के चौथे पवित्र ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह द्वीप हिंदू पौराणिक कथाओं में 'ओम' के आकार का माना जाता है, जो इसे और भी विशेष बनाता है। ओंकारेश्वर मंदिर की पवित्रता और शांतिपूर्ण वातावरण भक्तों को आध्यात्मिक शांति का अहसास कराता है। इस स्थान से जुड़ी तीन प्रमुख कथाएँ शिव की महिमा और शक्तियों को दर्शाती हैं। पहली कथा के अनुसार, भगवान शिव ने विंध्या पर्वत को आशीर्वाद दिया और उसके बाद ओंकारेश्वर और मामलेश्वर के रूप में शिवलिंग का विभाजन हुआ। दूसरी कथा में राजा मंदहाता और उनके पुत्रों की भक्ति के कारण भगवान शिव ने इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर आशीर्वाद दिया। तीसरी कथा में ओंकारेश्वर रूप में भगवान शिव ने असुरों के खिलाफ देवताओं की रक्षा की।
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दिव्य धाम – झारखंड के बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा
झारखंड के देवघर में स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक अति पवित्र स्थल है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से अहम है, बल्कि इसका स्थापत्य भी प्राचीन भारतीय कला का अद्भुत उदाहरण है, जिसमें जटिल नक्काशी और शिल्प कला की बेजोड़ झलक मिलती है। हर वर्ष श्रावण माह में लाखों श्रद्धालु ‘श्रावणी मेला’ में भाग लेते हैं, जहां वे भगवान शिव को पवित्र जल अर्पित करते हैं, इस दौरान भक्तों की भक्ति और समर्पण की भावना स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। बैद्यनाथ का यह स्थान न केवल भक्तों के लिए एक आत्मिक शांति का स्थल है, बल्कि देवघर का शांत वातावरण भी इस अनुभव को और गहरा करता है। इसके पीछे एक प्रसिद्ध किंवदंती है जिसमें रावण, भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अपने सिर को काट देता है, और भगवान शिव ने उसे पुनः जीवित किया, इस घटना से यह स्थान बैद्यनाथ धाम के नाम से जाना जाता है।
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प्राकृतिक सौंदर्य में समाहित भक्ति – महाराष्ट्र के भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का आकर्षण
महाराष्ट्र के पश्चिमी घाटों में स्थित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, आध्यात्मिकता और प्रकृति के अद्भुत मिश्रण का प्रतीक है। यह मंदिर न केवल अपने धार्मिक महत्व के लिए, बल्कि अपनी नागर शैली की वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। चारों ओर फैला हुआ भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य इस स्थल को प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग बना देता है। हिंदू पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का वध करने के लिए रुद्र रूप में अवतार लिया और इसके बाद वह इन पहाड़ियों में ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने लगे। इस स्थल का प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक महत्व एक अद्भुत अनुभव प्रदान करते हैं।
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रामायण से जुड़ा पवित्र स्थल – रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की दिव्यता
तमिलनाडु के पवित्र द्वीप रामेश्वरम में स्थित रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, जिसे रामनाथस्वामी मंदिर भी कहा जाता है, भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर रामायण के ऐतिहासिक संदर्भ में भगवान राम की भगवान शिव के प्रति अडिग भक्ति का प्रतीक है। कथाओं के अनुसार, भगवान राम ने लंका से लौटते समय यहां भगवान शिव की पूजा की थी ताकि वह रावण के वध के पाप से मुक्ति प्राप्त कर सकें। मंदिर में स्थित लंबी और शानदार स्तंभयुक्त गैलरी इसकी वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण है, और यहाँ की भव्यता श्रद्धालुओं के दिलों को छूने वाली है।
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नागों के स्वामी – गुजरात का रहस्यमय नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
गुजरात के द्वारका के पास स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रमुख स्थल है, जो भगवान शिव की अद्वितीय महिमा का प्रतीक है। इस मंदिर का नाम 'नागेश्वर' इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ भगवान शिव ने राक्षस दरुका पर विजय प्राप्त की थी, जो अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर स्थानीय लोगों को आतंकित करता था। मंदिर परिसर में स्थित विशाल शिव प्रतिमा श्रद्धालुओं के मन में आस्था और विश्वास की लहर उत्पन्न करती है। शिव पुराण में वर्णित इस स्थान से जुड़ी कथा बताती है कि भगवान शिव ने यहाँ एक ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर भक्तों की रक्षा की थी, और इस अद्वितीय घटना के कारण इस स्थान का अत्यधिक धार्मिक महत्व है।
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आध्यात्मिक आस्था का केंद्र – काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी
वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर, भगवान शिव का पवित्रतम स्थल है और इसे ‘स्वर्ण मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसका गुंबद सोने से आच्छादित है। यह मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित है और यह जीवन और मृत्यु के चिरकालिक चक्र को दर्शाता है। इस स्थल का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक गहरा है, और यह भगवान शिव के असीमित रूप की पूजा का प्रतीक है। काशी विश्वनाथ से जुड़ी कथा में भगवान शिव ने एक असीमित अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट होकर भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच की श्रेष्ठता की लड़ाई को समाप्त किया। यह अग्नि स्तंभ काशी में भगवान शिव के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, और आज यह स्थान विश्वभर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रतीक है।
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त्र्यंबक रूप में भगवान शिव – त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक
नासिक, महाराष्ट्र में स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महत्वपूर्ण स्थल है। यह मंदिर गंगा के समान पवित्र और शुद्ध रूप में प्रवाहित हो रही नदी, गोदावरी के स्रोत के पास स्थित है, जो इस स्थल को और भी महत्व प्रदान करता है। कथाओं के अनुसार, ऋषि गौतम ने यहाँ भगवान शिव की पूजा की थी, और इसी कारण भगवान शिव ने त्र्यंबकेश्वर रूप में यहाँ निवास किया। यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यहाँ के पवित्र कुशावर्त तालाब में स्नान करने से भक्तों के पापों का नाश होता है।
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हिमालय की गोद में – केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड
उत्तराखंड के हिमालय में स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव का एक अत्यंत पवित्र स्थल है, जो चार धाम यात्रा का अभिन्न हिस्सा है। यह मंदिर महाभारत के पांडवों से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने अपने पापों के लिए भगवान शिव से शरण ली थी। यहाँ का शीतल, शांत वातावरण और हिमालय की ऊँचाई भक्तों को एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करते हैं। यह मंदिर पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था, और बाद में आदिशंकराचार्य ने इसे पुनः स्थापित किया।
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मध्यकालीन कला का अद्वितीय उदाहरण – घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, औरंगाबाद
महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में अंतिम है। यह मंदिर ऐलोरा गुफाओं के पास स्थित है, और इसकी स्थापत्य कला मध्यकालीन भारतीय कला का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करती है। शिव पुराण के अनुसार, घृष्मा नामक एक महिला भक्त ने भगवान शिव की पूजा की थी, जिसके बाद उनके मृत पुत्र को भगवान शिव ने जीवित कर दिया। इस चमत्कारी घटना के कारण भगवान शिव यहाँ घृष्णेश्वर रूप में निवास करते हैं। इस स्थल पर भक्तों की श्रद्धा और विश्वास की कोई सीमा नहीं है, और यह स्थान भक्ति के वास्तविक रूप को प्रस्तुत करता है।
भारत के 12 ज्योतिर्लिंग हमारी प्राचीन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक हैं। ये केवल पूजा के स्थल नहीं, बल्कि हमारी आस्था और शक्ति के केंद्र भी हैं। हर ज्योतिर्लिंग की अपनी अद्वितीय महिमा और कथा है, जो हमें जीवन की गहराई और ईश्वर की असीम कृपा का अनुभव कराती है।
'भारत माता' चैनल आपसे अनुरोध करता है कि आप इन पवित्र स्थलों का दर्शन कर भारत की दिव्यता को महसूस करें। आओ मिलकर इस सांस्कृतिक धरोहर को संजोएं और आने वाली पीढ़ियों को इस ज्ञान से परिचित कराएं।
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