बौद्ध धर्म : | Baudh Dharm | भारत में बौद्ध धर्म के उदय की सामाजिक पृष्ठभूमि | गौतम बुद्ध का इतिहास
उदार हृदय, दयालु वाणी और सेवा व करुणा का जीवन, वे बातें हैं जो मानवता का नवीनीकरण करती हैं। युद्ध संतप्त मानव के लिए महात्मा बुद्ध द्वारा स्फुटित यह वचन युगों तक शांति और सद्भावना का संदेश हैं। समय का कोई भी कालखंड हो, परिस्थितियाँ कैसी भी रही हों अध्यात्म का केंद्र बिन्दु हमेशा भारत ही रहा है और यही कारण है कि भारत के लोगों द्वारा धर्म को इतनी मान्यता दी जाती है। “धार्यते इति धर्म:” अर्थात जो धारण करने योग्य हो वही धर्म है। धर्म किसी अलौकिक शक्ति में विश्वास रखने वाली एक ऐसी परंपरा है जो मानव मूल्यों और व्यवहारों को निर्देशित करती है। हिन्दू धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म की तरह ही बौद्ध धर्म का उदय भी भारत की से ही हुआ था। ईसा से 563 साल पहले जन्में सिद्धार्थ, कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन और महारानी महामाया के पुत्र थे। उनके सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बनने की यात्रा अत्यंत रोचक भी है और महत्वपूर्ण भी क्योंकि उनकी इसी यात्रा के कारण बौद्ध धर्म अस्तित्व में आया था। सिद्धार्थ के जन्म के बाद ज्योतिषियों ने बालक के ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति को देखकर यह भविष्यवाणी की कि युवराज सिद्धार्थ यशस्वी तो बहुत होंगे लेकिन कुंडली में राजयोग कहीं दिखाई नहीं देता और कुंडली के अनुसार युवराज के सन्यासी बनने की प्रबल संभावनाएँ हैं। ज्योतिषियों ने महाराज को बताया कि संसार के दुखों को जानने के बाद युवराज सन्यास का मार्ग अपनाएंगे। राजा को एक युक्ति सूझी उन्होंने सिद्धार्थ के लिए एक भव्य महल का निर्माण कराया जिसमें सुख सुविधा के सभी साधन उपलब्ध थे। युवराज सिद्धार्थ ने उसी महल में अपने जीवन के 29 वर्ष व्यतीत किए। इस बीच उनका विवाह भी सम्पन्न जिससे उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। सांसारिक दुखों से अनजान युवराज एक दिन बिना किसी को बताए अपने सारथी के साथ नगर घूमने निकल पड़े। रास्ते में उन्होंने एक बूढ़े व्यक्ति, एक रोगी व्यक्ति, और एक मृत व्यक्ति को देखा, अपने महल में सुख सुविधाओं के बीच पले बढ़े युवराज तीनों व्यक्तियों के दुख को देखकर अत्यंत दुखी हुए। इसके बाद उन्हें एक व्यक्ति दिखा जो ध्यान की मुद्रा में बैठ था, युवराज को उसमें एक अद्भुत तेज दिखाई दिया, जब युवराज ने अपने सारथी से उस व्यक्ति के बारे में पूछा तो सारथी ने बताया कि यह एक सन्यासी है जो सुख दुख, काम क्रोध, लोभ, मोह जैसी संसार की सभी भौतिक चीजों के परे है। बस यहीं से युवराज के मन में सन्यासी बनने की इच्छा उत्पन्न हुई और इतने बड़े साम्राज्य का राजकुमार, और कपिलवस्तु के भावी सम्राट सिद्धार्थ रात्रि के अंधेरे में घर परिवार छोड़कर वन की ओर चले गए। सिद्धार्थ जब घर से निकले तो वे एक राजकुमार थे लेकिन 6 वर्षों की घोर साधना के बाद जब बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई तो वे महात्मा बुद्ध कहलाये। बुद्ध का अर्थ है जिसे ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी हो। जिस स्थान पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई उसे बोधगया कहा जाता है। आनंद, अनिरुद्ध, महाकश्यप, रानी खेमा, महाप्रजापति, भद्रिका, भृगु, किम्बाल, देवदत्त, उपाली आदि गौतम बुद्ध के प्रमुख शिष्य थे। गौतम बुद्ध ने अपना सबसे पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। बौद्ध धर्म में वैसाख पूर्णिमा का विशेष महत्व है, वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध को जन्म, ज्ञान तथा निर्वाण की प्राप्ति हुई थी, इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है। भगवान बुद्ध द्वारा स्थापित किए गए बौद्ध धर्म में चार आर्य सत्य बताए गए हैं।
पहले सत्य के अनुसार दुनिया में दुख है। दूसरा सत्य कहता है कि संसार के हर दुख का कारण इच्छाएँ हैं। तीसरे आर्य सत्य के अनुसार संसार के सभी दुखों का अंत संभव है और इसके लिए चौथे आर्य सत्य में अष्टांग मार्ग का उपाय बताया गया है। समय के साथ साथ बौद्ध धर्म के विद्वानों में मतभेद उत्पन्न हुआ और बौद्ध धर्म मुख्यतः दो शाखाओं हीनयान और महायान में बंट गया। हीनयान के अनुयायी भगवान बुद्ध को भगवान ना मानकर एक महापुरुष मानते हैं और उनके विचारों तथा शिक्षाओं को ही आदर्श मानकर उनका अनुसरण करते हैं जबकि महायान के समर्थक बुद्ध को भगवान मानते हैं और महायान के अनुयाइयों द्वारा ही भगवान बुद्ध की मूर्ति पूजा शुरू की गई। भगवान बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त कर अपने उपदेशों के माध्यम से उसे लोगों तक पहुंचाया लेकिन 80 वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध निर्वाण को प्राप्त हुए, बौद्ध धर्म में इसे महापरिनिर्वाण कहा जाता है। गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके शिष्य आनंद ने उनकी शिक्षाओं और उपदेशों को त्रिपिटक नामक ग्रंथ में संकलित कर उसे बौद्ध धर्म के अन्य अनुयाइयों तक पहुंचाया। त्रिपिटक के तीन भाग हैं जिन्हें- विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक कहा जाता है। उस समय लोगों ने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म अपनाया था। आज से करीब 2600 साल पहले भगवान बुद्ध द्वारा स्थापित किया गया बौद्ध धर्म आज नेपाल, कंबोडिया, थाईलैंड, श्रीलंका, जापान, भूटान और चीन जैसे 12 से ज्यादा देशों का प्रमुख धर्म बन चुका है।
भारत समन्वय परिवार की ओर से बौद्ध धर्म के प्रवर्तक, सत्य और अहिंसा के उद्घोषक भगवान बुद्ध को शत शत नमन। भारत समन्वय परिवार का प्रयास है कि भगवान बुद्ध द्वारा संस्थापित बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ मानवजाति का मार्गदर्शन करती रहें।
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