सिख धर्म | Sikhism - Rise, History & Philosophy

राष्ट्र गौरव और धर्म रक्षा में सिख धर्म का अतुलनीय योगदान देश के लिये सदा ही गौरव का विषय रहा है।

मानव जाति की रक्षा व समाज में फैली कुरीतियों का विखंडन करने के लिए गुरु नानक साहिब द्वारा , मध्यकाल में शुरू किया गया धर्म, आज के समय में सिख धर्म के नाम से प्रसिद्ध है। लाहौर के तलवंडी नाम की जगह पर 20 अक्टूबर 1469 को , हिन्दू धर्म में जन्मे गुरु नानक, जन्म से ही अन्य बच्चों से ज्यादा बुद्धिमान और परोपकारी थे। वह हर किसी को बराबर मानते, और अपने से छोटे बड़ों का सम्मान करते थे। जब वह बड़े हुए तब उन्होंने अपने आप पास देखा, हिन्दू धर्म के बहुत सी कुरीतियाँ निरंतर बढ़ती चली जा रही थी । उस समय लोगों को उनके वर्ग के अनुसार बाँटा गया , निम्न वर्ग के व्यक्तियों को उच्च वर्ग के लोगों से दूर रखा जाता था, उनके साथ भेदभाव किया जाता था। महिलाओं की स्थिति भी दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही थी। यह सभी कुरीतियों को देख कर गुरु नानक साहिब ने इनका विरोध करते हुए, एक नए धर्म की स्थापना की। ‘’ जहां न कोई छोटा ना कोई बड़ा, हर कोई एक सामान होगा ‘’ और न ही कोई ऐसी कुरीतियाँ होंगी, जिनसे किसी के मन को आहत पहुंचे।   

गुरु नानक जब 12 वर्ष के थे, तो उनके पिता ने उन्हें 20 रुपए देकर कोई व्यवसाय करने को कहा। गुरु नानक वह पैसा ले कर शहर की ओर जाने लगे , तो उन्हें रास्ते में बाबाओं का एक समूह मिला , जो की असहाय और भूखा था। जिन्हे देख कर नानक को अच्छा न लगा और उन्होंने पिता द्वारा दिए गए पैसों से उन सभी को भोजन करवाया,जिसके बाद सिख धर्म में लंगर करवाया जाने लगा। जब नानक अपने घर वापस लौटे तो उनके पिता ने उनसे पूछा की तुमने 20 रुपए का क्या किया, तो उन्होंने अपने पिता से कहा, की मैं एक सच्चा सौदा करके आया हूँ।

महज 28 वर्ष की उम्र, में  बेई नदी के किनारे गुरु नानक साहिब जी को ज्ञान की प्राप्ति हुई , जिसके बाद नानक ने अपने ज्ञान से अन्य लोगों को जागृत करना शुरू कर दिया। गुरु नानक का कहना था कि ईश्वर केवल एक है ।‘’जो की न तो पुरुष है और न ही महिला,भगवान तो सर्वव्यापी हैं, हम उससे किसी एक नाम में बांध कर नहीं रख सकते’’।

इसके बाद धीरे धीरे गुरु नानक जी ने सिख धर्म का प्रचार करते हुए लोगों को जागृत करना और लोगों का मार्गदर्शन करना शुरू किया।  नानक जी ने अपने जीवन काल में पूरे भारत के साथ साथ विदेशों में भी अपने ज्ञान का प्रकाश बिखेरा।

एक बार जब गुरु नानक मक्का मदीना में भ्रमण के लिए गए तो बहुत थके होने के कारण वह सो गये,सोते समय उनके पाँव मस्जिद की तरफ थे। जब एक व्यक्ति ने यह देखा कि कोई व्यक्ति मस्जिद की तरफ पाँव करके सो रहा है।  तो वह बहुत गुस्सा हुआ और गुरु नानक से गुस्से में बोला ‘’ आपको शर्म नहीं आयी,आप अल्लाह की और पाँव करके सोये है। ‘’ तो गुरु नानक जी ने उस व्यक्ति से क्षमा मांगते हुए कहा,की मुझे माफ़ कर दीजिए। पर क्या आप मुझे बता सकते है ,की अल्लाह किस तरफ नहीं है। मैं उस तरफ़ पाँव करके सो जाता हूँ।गुरु नानक की ये बात सुनकर वह व्यक्ति शर्मिंदा हो गया, और वहाँ से चला  गया।

गुरु नानक जी हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर रहे,साथ ही उन्होंने धर्म के नाम पर चल रही कुरीतियों जैसे – सती प्रथा, मूर्ति पूजा , जातिवाद ,धार्मिक अनुष्ठान का भी जमकर विरोध किया। एक दिन गुरु नानक जी अपने शिष्यों के साथ एक गांव में गए, जब वह गांव में पहुँचे तो किसी ने भी उनका स्वागत न किया उन गांव वालो के अंदर किसी भी प्रकार का सेवा भाव न था। थोड़ी देर बाद जब गुरु नानक जी अपने शिष्यों के साथ उस गांव से जाने लगे, और  उन्होंने उन गांव वालो को आबाद और एकजुट रहने का आशीर्वाद दिया,जिसके बाद वह दूसरे गांव की तरफ आ गये। दूसरे गांव में पहुंचते ही गांव वालो ने आदरपूर्वक उनका स्वागत किया और उन्हें स्वादिष्ट भोजन खिला कर विदा किया। गांव से निकलते समय गुरु नानक जी ने उन गांव वालो को बिखर जाने और उजड़ जाने का आशीर्वाद दिया। यह देख कर, एक शिष्य ने गांव से थोड़ा दूर जाते ही गुरु जी से पूछा ‘’ गुरु जी जिन लोगो ने आपका अपमान किया उनको तो आपने आबाद रहने का आशीर्वाद दिया और जिन्होंने आपका आदरपूर्वक स्वागत किया उनको बिखर जाने को कहा ऐसा क्यों ? तब गुरु नानक जी ने कहा की जिन लोगों ने मेरा सम्मान किया वह दानी और दयावान हैं  , सोचो अगर वह दुनिया के हर एक कोने में चले जाएंगे तो कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं रहेगा, इसलिए मैंने उन्हें लोगों की सहायता करने के लिए बिखर जाने का आशीर्वाद दिया। 

गुरु नानक साहिब के जैसे ही सिख धर्म में 11 गुरु हुए, जिनमे से 10 इंसान और 1 सिख धर्म की धार्मिक पुस्तक ‘’श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’’ है।  गुरु गोविंद सिंह जो की सिख धर्म के अंतिम गुरु थे उन्होंने ,श्री गुरु ग्रन्थ साहिब को गुरु मानने का आदेश दिया। जिसके बाद से आज तक सभी सिख अपनी धार्मिक पुस्तक को ही अपना गुरु मानते है।  गुरु नानक साहिब द्वारा उनके शिष्य लेहना को गुरु बनाया गया। जिनका नाम गुरु बनाने के बाद गुरु अंगद देव रखा गया।  गुरु अंगद देव द्वारा ही ‘’गुरूमुखी लिपि’’ जिसे आज के समय में पंजाबी भाषा के नाम से जाना जाता है, का निर्माण किया गया था। साथ ही साथ इन्होंने 62 भजन भी लिखे जो बाद में गुरु ग्रंथ साहिब में जोड़े गए थे। गुरु ग्रन्थ साहिब में न केवल सिख गुरुओं के ज्ञान के बारे में, बल्कि हिन्दू कवि कबीर दास से लेकर  18 महान संतो के विचारों और ज्ञान का भी व्याख्यान किया गया है। गुरु अंगद द्वारा ही ‘’गुरु गद्दी’’ को भी खादुर में पहली बार स्थापित किया गया।  इसके बाद समय के साथ साथ गुरुओं में परिवर्तन होता रहा और सिख धर्म का विस्तार हुआ। जिसके बाद क्रमशः गुरु अमर दास ,गुरु राम दास, गुरु अर्जुन देव , गुरु हरगोबिंद ,गुरु हर राय , गुरु हर कृष्ण , गुरु तेग़ बहादुर व गुरु गोविंद सिंह सिख धर्म के गुरु बने।  इन महान गुरुओं ने अपने ज्ञान, त्याग और बलिदान से धर्म की रक्षा की। जिसके बाद गुरु गोविंद सिंह द्वारा , धार्मिक पुस्तक गुरु ग्रन्थ साहिब को सिख धर्म के गुरु के रूप ने स्थापित किया गया।

सभी सिख गुरुओं का मानना था ‘’भगवान एक है, वह न किसी का पिता है और न ही किसी की माता ,उनका मानना था की , भगवान तक पहुंचने के लिए हमे किसी गुरु, पंडित या किसी अन्य व्यक्ति की जरूरत नहीं है हम खुद भगवान की आराधना कर सकते है , भगवान के दरबार में सब एक सामान है , और भगवान तो हर किसी के अंदर है फिर कोई फर्क नहीं पड़ता व्यक्ति की जाति , धर्म क्या है।

सिख धर्म मानवता , दूसरों के प्रति प्रेम और दया के साथ साथ हमेशा सत्य बोलने और संतोष रखने का धर्म हैं

भारत समन्वय परिवार की और से सभी सिख गुरुओं के बलिदान को शत शत नमन। हमारा प्रयास है कि उनके द्वारा स्थापित त्याग , बलिदान व जीवन मूल्यों  से आज की भावी पीढ़ी प्रेरणा प्राप्त करें।

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