सनातन धर्म- आस्था एवं जीवन मूल्यों का सृजक | Sanatana Dharma | सनातन धर्म क्या है?

सनातन धर्म की मूल अवधारणाएँ

सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। सनातन धर्म की मूल अवधारणा सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम, नियम आदि हैं, जिनका कालचक्र की सीमाओं से हटकर भी अपना महत्व है। इन सिद्धांतों का प्रतिपादन सृष्टि के प्रथम आलेख, वेदों में किया गया है।

वेदों का शाश्वत महत्व

"असतो मा सदगमय॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय॥
मृत्योर्मामृतम् गमय॥"

अर्थात हे ईश्वर, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो।

स्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण

स्वामी विवेकानंद ने सन 1863 में शिकागो की विश्व धर्म संसद में सनातन धर्म के परिपेक्ष्य में अपने संभाषण में कहा था, "मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से सम्बन्ध रखता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति दोनों सिखाया है। हम सभी धर्मों को सच मानते हैं और उन्हें ईश्वर प्राप्ति के मार्ग के रूप में स्वीकार करते हैं।"

सनातन धर्म की महानता

केवल धर्म की प्राचीनता उसे महान नहीं बनाती.. लेकिन कई धर्मों की उत्पत्ति का कारण बनने और ज्ञान का प्रचार प्रसार करने में ही किसी धर्म की महानता अभिव्यक्त होती है। सनातन धर्म के आधार स्तम्भ वेद हैं और प्राचीनतम अभिलेख होने के साथ साथ, ईश्वर प्रदत्त शिक्षा और मार्गदर्शन से परिपूर्ण हैं।

मोक्ष और मुक्ति

मोक्ष, मुक्ति या परम गति की धारणा का जनक वेद ही है। मोक्ष एक वृहत्तर विषय है – “मोक्ष का अर्थ है गति का रुक जाना, स्वयं प्रकाश हो जाना। ऋषियों ने मोक्ष की धारणा और इसे प्राप्त करने का पूरा विज्ञान विकसित किया है।“

सनातन धर्म के बारे में अधिक जानें

जीवन का उद्देश्य

सनातन धर्म के अनुसार जीवन केवल “प्रभु” है और जीवन का उद्देश्य उसकी खोज है। इन प्रयासों से जीवन में सत्यता, शुभता और सकारात्मकता का समावेश होता है और शांति तथा निर्मलता की प्राप्ति होती है। मोक्ष मन की शांति पर निर्भर करता है। जीवन का संतुलन अर्थ और काम के बीच आवश्यक होता है। अर्थ है ज्ञान, शक्ति और धन का अर्जन और काम है उसका उपभोग। यदि अर्थ और काम धर्म से संतुलित होंगे, तो आत्मा को शांति एवं मोक्ष की प्राप्ति होगी।

धर्म का मार्ग

धर्म के संभल से अर्थ, काम,मोक्ष तथा दायित्वों का सामंजस्य ही जीवन जीने की कला है और जीवन की सफलता का मार्ग भी।

हिंदू धर्म की वैज्ञानिक दृष्टि

प्रत्येक व्यक्ति परमात्मा की अनुपम कृति है और उसे वैचारिक स्वतंत्रता का अधिकार है। यही कारण रहा कि हिंदू धर्म में हज़ारों वैज्ञानिक, समाज सुधारक और दार्शनिक हुए जिन्होंने धर्म से बाहर से आ गयी बुराइयों की समय समय पर आलोचना भी की और सुधार का मार्ग प्रशस्त किया। हिंदू धर्म सदा से विस्तारवादी सोच का विरोधी रहा है। सहिष्णुता, उदारता, मानवता और परिवर्तनीयता के भाव से ही सह अस्तित्व और सभी को स्वीकारने की भावना का विकास होता है।

सनातन धर्म में प्रेम और अहिंसा

भारत एक ऐसा देश है, जहाँ उसकी विभिन्नताएँ ही उसकी एकता और प्रगति का कारण हैं। भारत के प्रत्येक समाज और प्रांत के अलग अलग त्योहार, उत्सव, पर्व, परंपरा और रीती रिवाज हैं, परन्तु गहराई से देखने पर इन सभी त्योहार, उत्सव, पर्व और परंपराओं में समानता है, अर्थात एक ही पर्व को मनाने के विभिन्न तरीके हैं। इसी प्रकार से विभिन्न भाषाओं के मूल में संस्कृत हैं। हिंदू धर्म में ब्रह्मांड की संरचना और उत्पत्ति का वर्णन पूर्णतया विज्ञान सम्मत है। जीवन के हर क्षेत्र और प्रकृति को समझकर ही, जो संस्कार और कर्तव्य बताए गए हैं वो मनोविज्ञान और विज्ञान पर ही आधारित हैं। हिंदू धर्म सदा से विस्तारवादी सोच का विरोधी रहा है। इतिहास इस तथ्य को प्रमाणित करता है, कि इस धर्म के अनुयायियों ने भौगोलिक सीमाओं की विजय के लिए, मर्यादा और सिद्धांतों को नहीं हारने दिया, और सभी धर्मों को अपने यहाँ फलने फूलने के लिए अवसर भी उपलब्ध कराए। ये धर्म सिखाता है कि कंकर कंकर शंकर की पृष्ठभूमि में, कण कण में ईश्वर की अनुभूति ही धर्म का सार है। प्रकृति को ईश्वर की अनुपम कृति के रूप में अंगीकार करना, वास्तव में मानव जीवन के अस्तित्व को स्वीकारना और सहेजना ही है।

सनातन धर्म का संदेश

 

सनातन धर्म के अनुसार ईश्वर सर्वव्यापक है। सभी को ईश्वरमय और ईश्वरीय समझना ही सत्य, धर्म, न्याय और मानवता की सोच को बढ़ावा देता है। उपरोक्त भावना ही अहिंसा का आधार है। सभी प्राणियों में ईश्वर दर्शन का मार्ग, वास्तव में प्रेम और अहिंसा का मूलमंत्र है। संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानने की विशाल भावना,भारतीयता और सनातन धर्म के संदेश में समाविष्ट है। इस वसुंधरा के पुत्र, सभी एक ही कुटुम्ब के सदस्य हैं। भले ही कोई किसी भी धर्म, प्रांत, समाज, जाति या देश का हो, सभी एक ही कुटुम्ब के हैं। ऐसी भावना ही मनुष्य के प्रति, मनुष्य के प्रेम का उद्गम और स्थायी शांति के लिए आवश्यक है। पर एवं उपकार इन दो शब्दों से निर्मित शब्द परोपकार का अर्थ है, निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा और सहायता करना और दूसरों के दुखों का निवारण करना। ये परोपकार का भाव.. सनातन धर्म का प्राथमिक संदेश है।
 

 

पुनर्जन्म और कर्म

सनातन धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। इसका अर्थ है कि आत्मा, जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुर्नावर्तन की शिक्षात्मक प्रक्रिया से गुज़रती हुई, अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। जन्म और मृत्यु का यह चक्र तब तक चलता रहता है, जब तक कि आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो जाती।

श्रीमद्भगवद गीता और पुनर्जन्म

श्रीमदभगवद गीता के दूसरे अध्याय के 22 में श्लोक में कहा गया है - 

"जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र को त्याग कर, नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार यह जीव आत्मा भी पुराने शरीर को त्यागकर, नया शरीर धारण करती है।"

प्रारब्ध का अर्थ ही है पूर्वजन्म अथवा पूर्व काल में किए हुए, अच्छे और बुरे कर्म, जिसका वर्तमान में फल भोगा जा रहा हो। यही कारण है कि व्यक्ति को कर्मों के अनुसार जीवन मिलता है और वो अपने कर्मों के अनुसार फल भोगता रहता है।

जीवन के शाश्वत सत्य

आकाश, वायु, जल, अग्नि और पृथ्वी, ये सभी शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं। ये अपना रुप बदलते रहते हैं किंतु समाप्त नहीं होते। प्राण की भी अपनी अवस्थाएं हैं, प्राण, अपान, समान और यम। इसी तरह आत्मा की अवस्थाएं हैं, जागृत, स्वप्न, सुसुप्ति और तुर्या। उक्त सारे भेद तब तक विद्यमान रहते हैं  जब तक आत्मा मोक्ष को प्राप्त न कर ले। यही सनातन धर्म का सत्य है।

 

For more information on Sanatan Dharma, visit Bharat Mata and explore related topics in Dharm.