Pran Pratishtha: क्यों की जाती है मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा | राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा

समर के जख्म सहते है, उन्ही का मान होता है,
छिपा इस वेदना मे भी, अमर बलिदान होता है,
सृजम मे चोट खाता है, जो छेनी और हथौड़ी की,
वही पाषाण मंदिर मे कभी भगवान होता है। 

प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ - Prana Pratishtha

प्राण प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ है “जीवन शक्ति” की स्थापना करना या ईश्वरत्व को जीवन मे लाना। हिन्दू धर्म मे प्राण प्रतिष्ठा से पहले किसी प्रतिमा को पूजा के योग्य नहीं माना जाता। प्राण प्रतिष्ठा के माध्यम से निर्जीव प्रतिमा मे शक्ति का संचार कर उन्हे देव स्वरूप मे बदला जाता है। किसी प्रतिमा को जागृत मूर्ति के स्वरूप मे बदलने की प्रक्रिया ही प्राण प्रतिष्ठा है। इसके लिए मंत्रोच्चारण और पूजा विधि का एक निर्धारित विधान है जिसे पूरा करना आवश्यक होता है। 

सनातन धर्म में प्राण-प्रतिष्ठा का महत्व

प्राण प्रतिष्ठा की यह परंपरा हमारी सांस्कृतिक मान्यता और विश्वास की एक श्रंखला है। हमारे आध्यात्मिक ज्ञान क्रम मे वास्तव मे पूजा तो महत चेतना और दिव्य सत्ता की की जाती है। मूर्ति तो केवल सांकेतिक उपक्रम है। सनातन धर्म के प्रारंभ से ही देव मूर्तियाँ ईश्वर प्राप्ति के साधनों के रूप मे एक अति महत्वपूर्ण साधन की भूमिका निभाती रही है। अपने इष्ट देव की सुंदर सजीली और जीवंत प्रतिमा मे भक्त प्रभु का दर्शन करके परमानन्द का अनुभव करता है और धीरे-धीरे ईश्वरोन्मुख हो जाता है। देव प्रतिमा की पूजा से पहले उन्मे प्राण प्रतिष्ठा करना मात्र परंपरा नहीं है, इसमे सम्पूर्ण एवं परिपूर्ण तत्व दर्शन समाहित है। 

प्राण-प्रतिष्ठा का उद्देश्य

शस्त्रों मे किसी पाषाण प्रतिमा अथवा पार्थिव मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा बहुत प्रतीकात्मक है। सनातन धर्म मे पाषाण प्रतिमा बनाने के पीछे जो गूढ़ उद्देश्य है वह यह है की परमात्मा के प्रेम, भक्ति, व श्रद्धा से हमारी दृष्टि इतनी सूक्ष्म व संवेदनशील हो जाए की हमे संसार की सबसे जड़ वस्तु पाषाण मे भी परमात्मा के दर्शन होने लगे। 

प्राण प्रतिष्ठा से आशय केवल इतना है की एक ना एक दिन हमे अपनी इस पाँच महाभूतों से बनी देह प्रतिमा मे उस परमात्मा को जो इसमे पहले से ही उपस्थित है साक्षात्कार कर प्रतिष्ठित करना है। जब हम अपनी देह मे उस परमात्मा तत्व को अनुभूत कर पाएंगे तभी हम संसार के समस्त जड़ चेतन मे उस ईश्वर का दर्शन कर पाएंगे। पाषाण मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा इसी आध्यात्मिक संदेश की प्रेरणा है। 

विश्वास और श्रद्धा के कारण ही मनोकामना की पूर्ति होती है। 
विश्वास और श्रद्धा ही जीवन मे सफलता का आधार हैं। 

आदिकाल से हमने जटायु के कटे हुए पंखों मे, शबरी के जूठे बेरों मे, और रामसेतु के पाषाणों मे अपने इष्ट मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की मर्यादा की अनुभूति की है, और उनकी संवेदनशीलता को नमन किया है। 

भारत समन्वय परिवार की ओर से राम जन्म भूमि मे प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर उनके संदेशों को जन-कल्याण की भावना से जन-जन तक प्रेषित करने का हमारा प्रयास है। 

To Watch More Video:- Bharat Mata Channel