भगवान परशुराम जयंती, जन्म एवं कथा | Bhagwan Parshuram Jayanti

महान ऋषि परशुराम का चित्रण – राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी काव्य-कृति रश्मिरथी में महान ऋषि परशुराम का अद्वितीय चित्रण किया है।

उनके शब्दों में –

“किन्तु कौन नर तपोनिष्ठ है यहाँ धनुष धरनेवाला?

एक साथ यज्ञाग्नि और असि की पूजा करनेवाला?

कहता है इतिहास जगत में हुआ एक ही नर ऐसा

रण में कुटिल काल-सम क्रोधी तप में महासूर्य-जैसा!

मुख में वेद पीठ पर तरकस कर में कठिन कुठार विमल

शाप और शर दोनों ही थे जिस महान् ऋषि के सम्बल।

यह कुटीर है उसी महामुनि परशुराम बलशाली का

भृगु के परम पुनीत वंशधर व्रती वीर प्रणपाली का।

महान ऋषि परशुराम का जन्म और परंपरा

भारतीय ऋषि परंपरा में एक अत्यंत गौरवान्वित नाम है – महान ऋषि परशुराम का। उनका जन्म भृगुवंश में हुआ था। उनकी माता का नाम रेणुका तथा पिता का नाम जमदग्नी था। महर्षि जमदग्नी द्वारा आयोजित पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र के वरदान के फलस्वरूप माता रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीय को जिसे अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है उनका जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि परशुराम भगवान विष्णु के छठे आवेशावतार थे। उन्होंने ऋषि जमदग्नी और माता रेणुका की पांचवीं संतान के रूप में जन्म लिया। पितामह भृगु द्वारा उनका नाम “राम” रखा गया था। जमदग्नी का पुत्र होने के कारण उन्हें जमदग्नेय तथा भृगुवंश में जन्म लेने के कारण उन्हें भार्गव नाम से भी जाना जाता है।

परशुराम का शिक्षा और कार्य

परशुराम स्वभावतः एक आज्ञाकारी बालक थे और अपने से बड़े सभी का सम्मान एवं आदर करते थे। परशुराम की प्रारंभिक शिक्षा उनकी माता रेणुका के द्वारा पिता जमदग्नी के आश्रम में ही संपन्न हुई। उनका लालन पालन आश्रम में प्र ति के सुरम्य वातावरण में हुआ था। वन्य जीवों और प्रकृति से उनका जीवंत संबंध था वो न केवल पशु-पक्षियों की बोली समझते थे बल्कि उनसे संवाद करने में भी सक्षम थे। वन के हिंसक पशु भी उनसे मित्रवत व्यवहार करते थे।

पिता के आश्रम में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद परशुराम ने महर्षि विश्वामित्र और महर्षि ऋचीक के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त की। उनकी गुरुभक्ति और योग्यता से प्रभावित होकर महर्षि ऋचीक ने उन्हें अपना दिव्य धनुष तथा तत्कालीन महर्षि कश्यप ने वैष्णवी मन्त्र प्रदान किया।

शिव भक्ति और परशु प्राप्ति

प्रारम्भ से ही वो अनन्य शिव भक्त थे। उन्होंने कैलाश पर्वत पर जाकर कठोर तपस्या की तथा भगवान शिव को प्रसन्न करके उनसे विद्युदमी नामक परशु प्राप्त किया। इस परशु प्राप्ति के बाद वो परशुराम कहलाये। रशुराम जगत में वैदिक संस्कृति का प्रचार प्रसार करना चाहते थे। उन्होंने स्वयं ब्राह्मण होते हुए भी शस्त्र धारण करके क्षत्रियोचित व्यवहार कर वर्ण व्यवस्था की इस धारणा को मिथ्या साबित किया कि मनुष्य का वर्ण जन्म से निर्धारित होता है कर्म से नहीं।

नारी सम्मान के प्रति परशुराम की प्रतिबद्धता

परशुराम नारी के सम्मान के प्रति कटिबद्ध थे। उन्होंने ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूया और महर्षि अगस्त्य की पत्नी लोपमुद्रा के साथ नारी जागृति हेतु अथक प्रयास किया। महाभारत काल में गंगा पुत्र भीष्म ने जब काशीराज की पुत्री अम्बा का अपहरण कर लिया था तो उसके सम्मान की रक्षा के लिए.. उन्होंने भीष्म से भी युद्ध किया था। यद्यपि भीष्म को प्राप्त इच्छा मृत्यु के वरदान के कारण वो उन्हें कई दिनों के युद्ध के उपरांत भी परास्त नहीं कर सके थे।

शिव धनुष और श्री राम से मुठभेड़

त्रेता युग में सीता स्वयंवर समारोह में भगवान श्री राम ने जब शिव जी के धनुष को तोड़ा था तो उसकी गर्जना से सारा ब्रह्माण्ड प्रभावित हुआ। शिव धनुष की गर्जना सुनकर परशुराम मिथिला पहुंचे तथा टूटे हुए धनुष को देखकर क्रोधित हुए। इस विषय में उनका श्री राम के अनुज लक्ष्मण के साथ विवाद भी हुआ था  लेकिन जब उन्हें ज्ञात हुआ कि मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम ने धनुष भंग किया है तब जाकर उनका क्रोध शांत हुआ और वे धनुष श्री राम को सौंपकर  शांत भाव से वहां से चले गए।

परशुराम का युद्ध और विजय

परशुराम परम गौ भक्त भी थे। महिष्मति के हैहयवंशी शासक कार्तवीर्य अर्जुन ने कठोर तपस्या से भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न कर एक सहस्त्र भुजाओं का बल तथा अपराजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया था। सहस्त्र भुजाओं के कारण उसे सहस्त्रबाहु भी कहा जाने लगा। अपनी अपार शक्ति के अहंकार में सहस्त्रबाहु ने ऋषि जमदग्नी के आश्रम से देवराज इंद्र द्वारा प्रदत्त कपिला कामधेनु का अपहरण कर लिया। परशुराम को इस घटना का पता चला तो वे अत्यंत क्रोधित हुए उन्होंने सहस्त्रबाहु का संहार कर दिया और कामधेनु को सम्मान के साथ वापस आश्रम ले आए।

जब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नी का वध कर डाला परशुराम की माँ रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट होकर सती हो गयीं। इस घोर घटना से परशुराम अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने संकल्प लिया “मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर दूंगा”।

इस कठोर प्रतिज्ञा के प्रतिपालन हेतु उन्होंने दुष्ट और अहंकारी हैहय क्षत्रियों से 21 बार युद्ध किया। क्षुब्ध परशुराम जी ने प्रतिशोधवश हैहय वंशी राजाओं को नगरी महिष्मति पर भी अधिकार कर लिया और इस वंश का समूल नाश कर दिया।

दानवीर परशुराम का अश्वमेध यज्ञ

परशुराम दानवीर भी थे हैहय वंशीय राजाओं को परास्त करके उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया तथा सम्पूर्ण भूमि महर्षि कश्यप को दान में दे दी। इस घटना के बाद उन्होंने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए और महेंद्र पर्वत पर जाकर तप साधना में लीन हो गए।

चिरंजीवी परशुराम

पुरानों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि संसार में सात ऐसे महापुरुष हैं जो चिरंजीवी हैं तथा सभी दिव्य शक्तियों से भी संपन्न हैं। उनमें परशुराम भी एक हैं तथा मान्यता के अनुसार महेंद्र पर्वत पर विद्यमान हैं।

पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि श्री राम ने परशुराम जी को द्वापर युग तक सुदर्शन चक्र की सुरक्षा का भार सौंपा था। जब श्री कृष्ण ने अपने गुरु संदीपन से शिक्षा प्राप्त कर ली थी तभी उन्हें परशुराम के द्वारा सुदर्शन चक्र प्राप्त हुआ था। एक अन्य कथा के अनुसार भगवान गणेश का एक दांत परशुराम जी के फरसे के वार से टूट गया था। इसी कारण गणेश जी को एक दन्त भी कहते हैं।

परशुराम का भारत के भूगोल पर प्रभाव

कहा जाता है कि भारत के अधिकांश भाग और ग्राम परशुराम के द्वारा बसाए गए हैं। परशुराम जी का कहना था कि राजा का धर्म.. वैदिक जीवन का प्रसार करना है अपनी प्रजा से आज्ञा पालन करवाना नहीं है। वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्मे अवश्य थे लेकिन कर्म से क्षत्रिय थे और उन्होंने किसी क्षत्रिय को नहीं बल्कि अपने पिता के हत्यारे और एक अहंकारी और आततायी राजा तथा उसके पुत्रों का वध किया था और इस कार्य के लिए उन्हें 21 बार युद्ध करना पड़ा था। एक विशेष घटनाक्रम में उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी माता का भी वध कर दिया था परन्तु पिता से वरदान प्राप्त कर उन्हें पुनर्जीवित भी कर दिया था।

Bharat Mata परिवार की ओर से ऋषि गौरव भगवान परशुराम के श्री चरणों में शत शत नमन। हमारा प्रयास है कि इन व्रती तपोनिष्ठ और संस्कृति रक्षक के संदेशों को जन जन तक प्रेषित करें और अपनी प्राचीनतम धरोहर के प्रकाश से घर घर को आलोकित करें।

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