भगवान दत्तात्रेय: Powerful Avatar Of Vishnu, Shiva & Brahma | कैसे दत्तात्रेय बने त्रिदेव का स्वरूप?
कल्पना कीजिए—एक ऐसी दिव्य शक्ति, जो ब्रह्मा की सृष्टि, विष्णु की पालन और शिव के संहार का अद्वितीय संगम हो। एक ऐसा योगी, जिनकी साधना में प्रकृति के 24 गुरु समाहित हों, जिनके स्मरण मात्र से जीवन की हर उलझन सुलझ जाए।
क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म के त्रिदेव, यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश, एक ही रूप में अवतरित होकर मानवता को ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का मार्ग दिखा गए?
जी हां, हम बात कर रहे हैं—भगवान दत्तात्रेय की।
भगवान दत्तात्रेय का जन्म और दिव्यता
उनकी कथा में है रहस्य, और ऐसी दिव्यता, जो आज भी करोड़ों लोगों के जीवन को दिशा देती है।
उनका जन्म हुआ ऋषि अत्रि और माता अनुसूया के तप और पतिव्रता के फलस्वरूप। पौराणिक कथा के अनुसार, त्रिदेवों ने माता अनुसूया की पतिव्रता शक्ति की परीक्षा ली, और जब वे सफल रहीं, तो त्रिदेवों ने वरदान स्वरूप स्वयं उनके पुत्र रूप में जन्म लिया।
इसी से जन्मे—चंद्रमा (ब्रह्मा अंश), दुर्वासा (शिव अंश), और दत्तात्रेय (विष्णु अंश)।
लेकिन दत्तात्रेय सिर्फ विष्णु के ही नहीं, बल्कि त्रिदेवों के समग्र स्वरूप हैं।
दत्तात्रेय का जीवन और ज्ञान
दत्तात्रेय का जीवन साधारण नहीं था। वे योग, ध्यान और आत्मज्ञान के प्रतीक माने जाते हैं।
उनकी सबसे अनूठी बात थी—ज्ञान प्राप्ति की उनकी विधि। उन्होंने 24 अनूठे गुरु बनाए—कोई ऋषि-मुनि नहीं, बल्कि प्रकृति के तत्व, पशु-पक्षी, अग्नि, जल, वायु, कुत्ता, मछली, अजगर, मकड़ी, मधुमक्खी—इन सबसे उन्होंने जीवन के गूढ़ रहस्य सीखे।
उनका संदेश था—ज्ञान कहीं से भी मिल सकता है, बस दृष्टि और मन निर्मल होना चाहिए।
भक्तों और अद्वितीय शक्तियां
भगवान दत्तात्रेय को स्मृतिगामी कहा गया है—यानी वे अपने भक्तों के स्मरण मात्र से प्रकट हो जाते हैं। उनके भक्तों में प्रह्लाद, भरत, कार्तवीर्य अर्जुन जैसी महान विभूतियां रही हैं। कार्तवीर्य अर्जुन को उन्होंने हजार भुजाओं का वरदान दिया, जिससे वह चक्रवर्ती सम्राट बना।
दत्तात्रेय जी ने भोग और त्याग दोनों को आत्मज्ञान का साधन बताया—वे संसार में रहते हुए भी उससे निर्लिप्त रहे। एक बार देवताओं और दैत्यों के युद्ध में, जब देवता हारने लगे, तो वे दत्तात्रेय की शरण में पहुंचे। दत्तात्रेय ने कहा—दैत्यों को मेरे आश्रम में बुलाओ, मेरा दृष्टिपात ही उनके विनाश का कारण बनेगा। जैसे ही दैत्य आए, दत्तात्रेय की दृष्टि से उनका बल क्षीण हो गया और देवताओं की विजय हुई।
योगी का मार्ग और समाज से परे आचरण
उनका आचरण कभी-कभी समाज की सीमाओं से परे था—कभी वे स्त्रियों के साथ विहार करते दिखे, कभी मद्यपान करते। लेकिन ये सब उनकी लीलाओं का हिस्सा था—माया का भेदन, अंतस की परीक्षा। उन्होंने दिखाया कि योगी का मार्ग आडंबर से नहीं, बल्कि सच्चे आत्मज्ञान से तय होता है।
दत्तात्रेय के प्रमुख अवतार और आस्था
दत्तात्रेय के प्रमुख अवतार—श्रीपाद श्रीवल्लभ, श्री नृसिंह सरस्वती और स्वामी समर्थ (अक्कलकोट)—ने दक्षिण भारत में आध्यात्मिक जागरण फैलाया। आज भी महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में उनके मंदिर लाखों श्रद्धालुओं के आस्था केंद्र हैं। दत्तात्रेय जयंती मार्गशीर्ष पूर्णिमा को मनाई जाती है—इस दिन उनके भक्त जप, तप, व्रत और भजन में लीन रहते हैं।उनके उपदेश—दत्तात्रेय स्तोत्र, अवधान शतक, गुरुचरित्र—आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।
जीवन में शांति, सेवा और भक्ति
उनकी पूजा से जीवन में शांति, समृद्धि और आत्मिक विकास की प्राप्ति होती है। भगवान दत्तात्रेय केवल पूजा के देवता नहीं, बल्कि साधना का पथ हैं। वे सिखाते हैं—गुरु का स्थान सर्वोच्च है, सच्ची भक्ति दिखावे से नहीं, प्रेम और समर्पण से होती है। जब जीवन की नाव डगमगाए, तो दत्तात्रेय का स्मरण ही उसे किनारे लगा देता है।
उनकी कथा सिर्फ पौराणिक नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन है—जो आज भी हर साधक के लिए प्रकाशपुंज है। अगर आपको ऐसी और दिव्य कथाओं की जानकारी चाहिए, तो हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें और बेल आइकन दबाएं।
जय दत्तात्रेय!