Maharishi Bhrigu | महर्षि भृगु ने क्यों किया भगवान विष्णु पर वार? | Why did the Sage kick Vishnu?

आदि और अंत की परिभाषित सीमा से कहीं ऊपर उठ कर जिस यथार्थ को मानव ने स्वीकारा उसे शाश्वत सनातन धर्म या वैदिक धर्म के नाम से जाना जाता है। इसे विश्व के सबसे प्राचीन धर्म होने का भी गौरव प्राप्त है। सम्पूर्ण धरती को एक ही परिवार मानने की अवधारणा “वसुदैव कुटुंबकम” के स्वरूप में इसी धर्म में अवतरित हुई।

वेद वाणी और महर्षियों का योगदान

वेद वाणी की मान्यता ईश्वरोपदेश के रूप में स्वीकृत है, लेकिन इसे जनमानस की जीवनशैली में परिवर्तित करने में कई महान महर्षियों का त्याग और प्रयास रहा है। आज हम इस परंपरा की प्रारंभिक कड़ी के रूप में महर्षि भृगु को नमन करते हैं। उनके जीवन से संबंधित कुछ मान्यताओं को जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है।

महर्षि भृगु: जीवन परिचय

महर्षि भृगु ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम ख्याति और उनके पुत्रों का नाम धाता और विधाता था। पुत्री के रूप में उन्हें देवी लक्ष्मी की प्राप्ति हुई, जिनका विवाह भगवान विष्णु से हुआ। महर्षि भृगु को ऋग्वेद के मंत्र रचयिता के रूप में भी ख्याति प्राप्त है।

भृगु संहिता और ज्योतिष विद्या

कहावत है कि “विधाता का लिखा कोई नहीं मिटा सकता,” लेकिन महर्षि भृगु ने अपनी रचना भृगु संहिता के माध्यम से इस तथ्य को चुनौती दी। इस ग्रंथ के माध्यम से भूत, भविष्य, और वर्तमान की घटनाओं को उजागर करना संभव है।

  • ज्योतिष शास्त्र में गणित और फलित का मुख्य स्थान है।
  • भृगु संहिता द्वारा तीन जन्मों की जन्मपत्री बनाई जा सकती है।
  • इस ग्रंथ में अजन्मे शिशु का भविष्य भी बताया गया है।

फलित ज्योतिष द्वारा मानव जीवन पर पड़ने वाले आकाशीय ग्रहों की गतिविधियों के प्रभाव का विश्लेषण संभव है। सहस्त्र वर्षों के अनुभवों तथा अन्वेषणों के आधार पर यह विद्या अब तक सुनिश्चित विज्ञान का स्थान ग्रहण कर चुकी है। तथा प्राणिमात्र के लिए परम उपयोगी भी सिद्ध हुई हैं। 
भृगु संहिता एक आलौकिक ग्रंथ है, इस शास्त्र से प्रत्येक व्यक्ति की तीन जन्मों की जन्म पत्री बनाई जा सकती है। प्रत्येक जन्म का विवरण इस ग्रंथ मे दिया गया है। यहाँ तक की अजन्मे शिशु का भविष्य बताने मे भी यह ग्रंथ समर्थ है. ज्योतिष शास्त्र का यह विशाल ग्रंथ महर्षि भृगु के दिव्य ज्ञान को दर्शाता है। भृगु संहिता के अतिरिक्त भी महर्षि भृगु द्वारा रचित कुछ प्रसिद्ध ग्रंथ हैं जैसे, भृगु उपनिषद, भृगु सूत्र, भृगु गीता, एवं भृगु स्मृति। भृगु संहिता अपने मूल स्वरूप मे आज भी उपलब्ध है। इसकी मूल प्रति नेपाल के पुस्तकालय मे ताम्र पत्र पर सुरक्षित रखी गए है। 

अधिक जानकारी के लिए देखें आदि ऋषि

महर्षि भृगु के अन्य योगदान

महर्षि भृगु ने:

  • अग्नि का उत्पादन और उपयोग करना सिखाया।
  • संजीवनी विद्या की खोज की।

धरती पर पहली बार महर्षि भृगु ने ही अग्नि का उत्पादन करना सिखाया था। उन्होंने ही बताया था कि किस प्रकार से अग्नि को प्रज्ज्वलित किया जा सकता है, और किस प्रकार से अग्नि का उपयोग किया जा सकता है। इसी कारण सर्व प्रथम भृगु कुल के लोगों ने ही अग्नि की आराधना करना शुरू किया था। 
महर्षि भृगु ने संजीवनी विद्या की भी खोज की थी। उन्होंने संजीवनी बूटी खोजी थी अर्थात मृत प्राणी को जीवित करने का उपाय भी उन्ही की खोज थी। एक बार सरस्वती नदी के तट पर ऋषि मुनि एकत्रित होकर इस विषय पर चर्चा कर रहे थे की की ब्रम्हा जी, शिव जी और श्री विष्णु मे सबसे बड़े और श्रेष्ठ कौन है? इसका कोई निष्कर्ष न निकलता देख कर उन्होंने त्रिदेवों की परीक्षा लेने का निश्चय किया और ब्रम्हा जी के मानस पुत्र महर्षि भृगु को इस कार्य के लिए नियुक्त किया। भृगु सर्वप्रथम ब्रम्हा जी के पास गए, उन्होंने ना तो प्रणाम किया और ना ही स्तुति की। यह देख तक ब्रम्हा जी क्रोधित हो गए किन्तु उन्होंने विवेक से अपने क्रोध को शांत किया। 
वहाँ से महर्षि भृगु कैलाश गए, वहाँ शिव जी ने उन्हे अपने आलिंगन मे लेना चाहा परंतु भृगु ने उन्हे अपमानित किया। शिव जी अत्यंत क्रोध मे आ गए किन्तु पत्नी सती द्वारा उन्हे किसी प्रकार शांत कराया गया। 

त्रिदेवों की परीक्षा

महर्षि भृगु ने ब्रह्मा जी, शिव जी, और विष्णु जी की परीक्षा ली। उनके अनुभव ने भगवान विष्णु को सर्वश्रेष्ठ देवता के रूप में स्थापित किया। महर्षि भृगु कैलाश गए, वहाँ शिव जी ने उन्हे अपने आलिंगन मे लेना चाहा परंतु भृगु ने उन्हे अपमानित किया। शिव जी अत्यंत क्रोध मे आ गए किन्तु पत्नी सती द्वारा उन्हे किसी प्रकार शांत कराया गया। 
इसके बाद भृगु बैकुंठ गए, उस समय भगवान श्री विष्णु देवी लक्ष्मी की गोद मे सर रख कर लेटे थे। भृगु ने जाते ही उनके वक्ष पर तेज लात मारी। भक्त वत्सल भगवान विष्णु शीघ्र ही अपने आसन से उठ कर खड़े होगए और उनको प्रणाम किया, उनके चरण सहलाते हुए बोले – “भगवन आपके पैर पे चोट तो नहीं लगी, कृपया इस आसन पर विश्राम करें।” 
भगवन मुझे आपके शुभ आगमन का ज्ञान ना था इसलिए मै आपका स्वागत ना कर सका। आपके चरणों का स्पर्श तो पवित्र करने वाला है। आपके चरणों के स्पर्श से आज मै धन्य हो गया। 
भगवान विष्णु का यह प्रेम व्यवहार देख कर महर्षि भृगु की आँखों से आँसू बहने लगे और वह ऋषि मुनियों के पास लौट आए। उनके अनुभव सुनकर सभी ऋषियों ने तभी से भगवान विष्णु को सर्वश्रेष्ठ मान लिया और उनका पूजा अर्चन करने लगे। 

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