Markandeya Rishi | वो ऋषि जिन्होंने प्राप्त कर ली थी मृत्यु पर विजय | Is Markandeya Rishi Immortal?

'अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।' 
उपयुक्त श्लोक से यह ज्ञात होता है की ऋषि मार्कन्डेय पुराणों में वर्णित अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं। मार्कंडेय हिंदू पौराणिक कथाओं में एक प्रतिष्ठित ऋषि हैं, जो भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट भक्ति और अविश्वसनीय ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। उनकी कहानी विश्वास और दृढ़ता की शक्ति का प्रमाण है और वर्तमान समय मे भी लोगों को प्रेरित करती है। पद्मपुराण के उत्तरखंड के अनुसार महान ऋषि मृकण्डु और उनकी पत्नी मरुदमती महादेव के अनंत भक्त थे और उन्होंने भगवान शिव से पुत्र प्राप्ति का वर मांगा था। परिणाम स्वरूप उन्हे दो विकल्प दिए गए। पहला एक अल्प आयु वाला धर्म निष्ठ और गुणवान पुत्र, दूसरा दीर्घ आयु वाला मूर्ख पुत्र। मृकण्डु और मरुदमती ने प्रथम विकल्प का चयन किया, और मार्कंडेय को महादेव द्वारा एक अनुकरणीय पुत्र होने का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। 
भगवान शिव के आशीर्वाद अनुरूप, मार्कंडेय युवावस्था से ही अविश्वसनीय रूप से बुद्धिमान थे, और उन्होंने अपने बचपन का अधिकांश समय ध्यान और धर्मग्रंथों का अध्ययन करते हुए व्यतीत किया।
16 वर्ष की आयु मे मार्कन्डेय को यह ज्ञात होता है की शीघ्र ही उनकी मृत्यू हो जाएगी। इस दुर्भाग्यपूर्ण बात से परिचित होते हुए भी, वह और अधिक उत्साह के साथ भगवान शिव के प्रति समर्पित रहे, उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे। अपने अठारहवें जन्म दिवस पर, जब वह भगवान शिव के मंदिर में प्रार्थना कर रहे थे, उसी क्षण मृत्यु के देवता, यम, उन्हे ले जाने के लिए उनके सामने प्रकट हुए। 
यम आगमन के पश्चात भी, मार्कंडेय शिव लिंग से चिपके रहे और जाने की बात सुनकर अस्वीकृति दे दी। भले ही यम ने उन्हें खींच लिया, परंतु उनकी भक्ति और दृढ़ संकल्प को देखकर, भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और यम को पराजित कर मार्कंडेय को शाश्वत जीवन प्रदान किया।
उस दिन से, मार्कंडेय को "चिरंजीवी" और सदा सर्वदा अमर के रूप में जाना जाने लगा और उन्होंने स्वयं को भगवान शिव के प्रति समर्पित रखा। वह हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे महान संतों में से एक बन गए, जो अपनी बुद्धि व भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं। अधिकांश पुराणों में ऋषि मार्कण्डेय का सादर स्मरण किया गया है। स्वयं मार्कण्डेय के नाम से एक ‘मार्कण्डेय पुराण’ भी है। इस पुराण मे आश्रमों के कर्तव्यों, राजधर्म, श्राद्ध, नरकों, कर्मविपाक, सदाचार और योग सहित भूगोल का वर्णन प्राप्त होता है। मान्यता है कि मार्कंडेय पुराण का सर्व प्रथम संस्करण नर्मदा नदी के निकट ऋषि मार्कंडेय द्वारा रचा गया था, जो विध्यांचल पर्वत शृंखला और पश्चिमी भारत के विषय में बहुत कुछ वर्णित करता है। मार्कंडेय पुराण भारत के पूर्वी भाग जैसे उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में विशेष रूप से लोकप्रिय है। 
ऋषि मार्कंडेय की कथा एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि विश्वास और भक्ति के साथ, हम सबसे कठिन चुनौतियों पर भी नियंत्रण कर सकते हैं। मृत्यु की मंडराती विपदा के बावजूद, भगवान शिव के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता उन सभी के लिए प्रेरणा है जो आध्यात्मिक ज्ञान और आंतरिक शांति की कामना करते हैं।
इसके अतिरिक्त, उनकी कहानी सांसारिक सुखों के ऊपर ज्ञान के महत्व और प्रतिकूल परिस्थितियों में दृढ़ता के मूल्य को चुनने का संदेश देती है। यह हमें सिखाती है कि सच्ची सफलता भौतिक धन या दीर्घायु से नहीं मापी जाती, अपितु  हमारी आध्यात्मिक समझ की गहराई और उच्च उद्देश्य की पूर्ति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता से मापी जाती है।
ऋषि मार्कन्डेय समस्त संसार को विश्वास, भक्ति व ज्ञान प्राप्ति हेतु प्रेरित करते हैं। इन सभी सद्गुणों को समर्पित भारत समन्वय परिवार ऋषि मार्कन्डेय को शत-शत नमन करता है। 
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