राजस्थान का संपूर्ण इतिहास: The Land of Kings, Culture & Heritage | Rajasthan Documentary in Hindi

Heritage – Touch old stones and hear the stories they hold.

Culture – Let the bright colors of tradition fill your heart.

Fairs and Festivals – Enjoy the celebrations that make you fall in love with this place.

Wildlife – See the wild animals that inspire you to feel free.

Food – Taste dishes that delight and win you over.

Desert – Watch the sand shift, but remember the moments that last.

The epic land of art and culture – Rajasthan. 

राजस्थान – एक गौरवशाली भूमि (इतिहास)

राजस्थान का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है। यह सिंधु घाटी सभ्यता के साथ-साथ अहाड़ संस्कृति का केंद्र भी रहा है। सातवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक यहाँ चौहानों और उसके बाद अन्य राजपूतों, मुगलों आदि का शासन रहा। वर्ष 1818 में यहाँ की मारवाड़ जयपुर, बूंदी, कोटा, भरतपुर, अलवर आदि रियासतों ने वेल्जली की सहायक संधि को स्वीकार कर लिया। 1948 में यहाँ के कुछ राज्यों को मिलाकर मत्स्य संघ बनाया गया। 1949 तक इस संघ में बीकानेर, जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर आदि बड़ी-बड़ी रियासतें भी मिल गईं। 1958 में इसमें अजमेर, आबू रोड तालुका और सुनेलतापा के मिल जाने के बाद वर्तमान राजस्थान राज्य बना।

राजस्थान की वीरता और बलिदान

राजस्थान का इतिहास एवं संस्कृति गौरव पूर्ण रही है तथा यह वीर भूमि भी रही है। राजस्थान की धरती पर समय-समय पर बहुत सी महान विभूतियों ने जन्म लिया तथा अपने असाधारण व्यक्तित्व के कारण वे समाज में अलग पहचान बना पाए। इस भूमि पर जहाँ बापा रावल, मालदेव, पृथ्वीराज चौहान वीर दुर्गादास, महाराणा सांगा और महाराजा सूरजमल जैसे महान शासकों ने लोगों को वीरता से परिचित करवाया वहीं मीरांबाई, काली बाई, पन्नाधाय, अमृतादेवी और गोविन्द गुरु जैसे जन नायकों ने लोगों को एक नया रास्ता दिखाया। ये सभी राजस्थान के महान व्यक्तित्व हमारे गौरव है। 

राजपूताणो रजवाड़ो, कण-कण रो रगत सिनान

प्राण दियां जस मानै ऐड़ी भौम है राजस्थान

राजस्थान की धरती की यशगाथा सुनाते हुए आपको परिचय करवाते हैं, जहां कर्म बलिदान है और धर्म मातृभूमि की रक्षा है। मातृभूमि का मोल प्राणों से भी ऊपर है। अगर कोई इस पर बुरी नजर डाले तो उसकी आंखें फोड़ दी जाती है। यहाँ के योद्धा अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए शौर्य और बलिदान के प्रतीक रहे हैं। जैसलमेर में सागरमल गोपा ने आजादी के लिए कारावास भोगा, बीकानेर में बाबू मुक्ताप्रसाद ने संघर्ष किया, यहाँ कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी, कमलचंद गुप्ता, शोभालाल गुप्त, ताराचंद हरसोलिया, सैयद फैयाज अली, सूर्यमल मौर्य, और बैजनाथ शर्मा जैसी स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी का ऐसा बिगुल बजाया की एक दिन ऐसा आया कि हमारा तिरंगा, हमारी सत्ता हमें मिली। इस तरह राजस्थान बना। इस धरती का सौभाग्य है कि यहां महान वीर योद्धाओं ने जन्म लिया है।

राजस्थान का साहित्य भी अपने आप मे अनूठा है।

इस राज्य का साहित्य सांस्कृतिक पदचिह्न में योगदान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह अत्यंत विविध है जिसे सदियों से स्थानीय लोगों द्वारा मान्यता प्राप्त गद्य और कविता के रूप में संरक्षित किया गया है। राजस्थान के साहित्य को पाँच भागों में विभाजित किया गया है, 

जैन साहित्य - जैसा कि नाम से पता चलता है, साहित्य का यह रूप समय के साथ संस्थापकों और प्रचारकों द्वारा तैयार किया जाता है; यह वर्षों से मंदिरों और पुस्तकालयों में संरक्षित है और गद्य और पद्य दोनों रूपों में उपलब्ध है। प्राचीन काल के शुरुआती लेखों में से एक में, उद्योतन सूरी नाम के एक जैन मुनि ने "क्ववलयमाला" नामक एक कविता लिखी थी, जिसमें राजस्थानी भाषा को मरु भाषा के रूप में पेश किया गया है।

चारण साहित्य - ऐसा पाया गया है कि इस प्रकार के साहित्य की रचना चारण समुदाय के लोगों ने की है। इसका अधिकांश भाग कविता के रूप में रचा गया था, और यह अधिकतर गीतों के रूप में उपलब्ध है। इस शैली की कुछ कृतियों में दोहा, सोरथे , कुंडलियॉन, चैपयोन, झूलनो, सावइयन आदि शामिल हैं।

ब्राह्माणी साहित्य - साहित्य का यह रूप ब्राह्मणों द्वारा लिखा गया है और इस प्रकार इसे ब्राह्मणी साहित्य के रूप में स्वीकार किया जाता है। इस श्रेणी की कुछ लोकप्रिय कृतियों में बेताल पचीसी, सिंहासनबतिसी, भागवत पुराण, बिसलदेव रासो और रण मल चंद शामिल हैं।

संत साहित्य - मीरा, दादू, गोरखनाथ और जसनाथजी सहित कई संतों ने इस शैली में रचनाएँ की हैं। कई धर्मों के प्रचारक इस प्रकार के लेखन का अनुसरण करते हैं।

लोक साहित्य - साहित्य का यह रूप रोजमर्रा की जिंदगी में कहावतों, कविताओं, दोहों आदि के रूप में सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।

इस राज्य के कवि चंद्रवरदाई, कवि कलोल, केशवदास गाडेन, बिसलदेवरासो आदि अति प्रसिद्ध हैं।

राजस्थान को ‘राजाओं की भूमि’ भी कहा जाता है, और इसका प्रमुख कारण है, उनके बनाए हुए शक्तिशाली और सुंदर किले एवं स्मारक।

राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थल

अपनी रंगीन संस्कृति को बिखेरते हुए इस राज्य ने सिर्फ राष्ट्रीय पर्यटकों को ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को भी आकर्षित किया है। जयपुर की शानदार हवेलियों से लेकर, उदयपुर की झीलों तक, मंदिरों से लेकर जैसलमेर व बिकानेर के बालू टिब्बों तक-सब कुछ अत्यंत आकर्षक है। प्राकृतिक सौंदर्य से लेकर अद्भुत कला प्रदर्शन तक आपको सब प्रशंसनीय स्थल देखने मिलेंगे। राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों मे जयपुर, उदयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, रणथंभोर, अजमेर, पुष्कर, भरतपुर, अलवर व माउंट आबू अति प्रसिद्ध हैं। Explore more on Bharat Darshan

वहीं जयपुर के सिटी पैलेस, आमेर किला, जंतर मंतर वेधशाला, बिड़ला मंदिर आदि देखने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं।

उदयपुर के पिछोला झील, फतेह सागर झील, सिटी पैलेस, जग मंदिर, उदय सागर झील, जगदीश मंदिर, मानसून पैलेस, स्वरूप सागर, कुंभलगढ़ किला दशकों से आकर्षण का केंद्र है।

इन पर्यटन स्थलों के अलावा राजस्थान में संक्रांति, होली, दीवाली, विजयदशमी, आदि त्योहारों के अलावा अनेक मेले भी लगते हैं जिनमे शामिल होने के लिए लोग देश विदेश से आते हैं। इनमें तीज, गणगौर (जयपुर) के मेले, बिनेश्वर (डूंगरपुर) का कुंभ मेला, सवाई माधोपुर में श्री महावीर जी मंदिर का महावीर मेला, रामदेवरा (जैसलमेर), जंभेश्वर जी मेला (मुकाम-बीकानेर), कार्तिक पूर्णिमा, पुष्कर का पशु मेला तथा सिकार का श्यामजी मेला प्रमुख हैं। Join us for updates on Bharat Mata YouTube

जब भी राजस्थान की बात आती है सबसे पहले याद आते हैं यहाँ के किले फिर याद आता है यहाँ का खाना। राजस्थानी व्यंजन इसकी समृद्ध विरासत और शुष्क जलवायु परिस्थितियों से प्रभावित हैं। यहाँ का दाल बाटी चूरमा, मोहन थाल, मावा कचौरी, मिर्ची बड़ा, गट्टे, घेवर और कचरी, इमली, लहसुन, टमाटर की चटनी अत्यंत प्रसिद्ध हैं।

राजस्थान के लोक गीत और नृत्य

राजस्थान अपनी समृद्ध विरासत और संस्कृति के लिए जाना जाता है। इस राज्य मे मांड, मारू, ईंडोणी, कांगसियो, गोरबंद, पणिहारी, और लूर प्रमुख लोक गीत हैं और भवाई, छड़ी, गणगौर घूमर, गुगा आदि कई नृत्य प्रचलित हैं। छड़ी नृत्य में औरतें गेरुए वस्त्र पहनकर तथा सिर पर टोकणी रखकर नृत्य करती हैं। गणगौर नृत्य के बारे में यह कथा प्रचलित है कि गणगौर उदयपुर के राणा वीरमदास की सुंदर कन्या थी। उससे अनेक राजा ब्याह करना चाहते थे, जबकि राणा उसका विवाह बूंदी नरेश ईसर सिंह से करना चाहते थे। अंत में एक रात ईसर उसे भगाकर ले गया। पता लगने पर अन्य राजाओं ने उसका पीछा किया, परंतु रास्ते में गणगौर और ईसर की चंबल नदी में डूब जाने से मृत्यु हो गई। तभी से राजस्थान की महिलाएँ गणगौर को सती मानकर गणगौर नृत्य करती चली आ रही हैं। इस नृत्य के लिए होली के अगले दिन होली की राख से गणगौर तथा ईसर की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं। लड़कियाँ सुबह तथा शाम दोनों समय नृत्य करती हैं। नृत्य में गाँव की सबसे नई बहू को गणगौर तथा किसी लड़की को उसका पति ईसर बनाया जाता है। वे अपने सिरों पर क्रमशः गणगौर तथा ईसर की मूर्तियाँ रखकर गाँव के सात चक्कर काटती हैं। नृत्य के गीतों में नववधुओं के लिए अमर सुहाग की कामना की जाती है। 

राजस्थान का अधिकांश भाग रेगिस्तानी है अतः यहां नदियों का विशेष महत्व है। पश्चिम भाग में सिचाई के साधनों का अभाव है परिणाम स्वरूप यहां नदियों का महत्व ओर भी बढ़ जाता है। राजस्थान में प्रमुख नदियों का सबसे अधिक सतही जल चम्बल नदी में उपलब्ध है, जबकि बनास नदी का जलग्रहण क्षेत्र सबसे बड़ा है। राज्य की नदियाँ 13 जलग्रहण क्षेत्रों और 59 उपजल ग्रहण क्षेत्रों में विभाजित हैं। अरावली पर्वतमाला राज्य में जल विभाजक का कार्य करती है। अरावली पर्वत से निकलकर नदियाँ पश्चिम या पूर्व की ओर बहती हैं। पश्चिम की नदियाँ अरब सागर की ओर बहती हैं या मरु प्रदेश में विलीन हो जाती हैं, जबकि पूर्व की नदियाँ यमुना में मिल जाती हैं। दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में चम्बल और उसकी सहायक नदियाँ प्रमुख हैं, जबकि पश्चिमी राजस्थान में लूनी और उसकी सहायक नदियाँ होती हैं, जो नित्य प्रवाही नहीं हैं। प्रमुख नदियों में चम्बल, लूनी, बनास, माही, घग्घर, सोम, और जाखम शामिल हैं। Visit us at Bharat Mata Website or join us on YouTube

राजस्थान में नीले मिट्टी के बर्तन, धातु के काम, संगमरमर और पत्थर की मूर्तियाँ और सजावटी सामान जैसी अनूठी हस्तकला वस्तुएँ प्रसिद्ध हैं। यहाँ दर्पण का काम, कढ़ाई, बाटी का काम और टाई-एंड-डाई भी प्रसिद्ध हैं। ये यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए सुंदर स्मृति चिन्ह हैं।

जयपुर और जोधपुर शहर में फर्नीचर उद्योग अच्छी तरह से विकसित है। यह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह के फर्नीचर का उत्पादन करता है। जयपुर में खास तौर पर आम की लकड़ी, बबूल की लकड़ी और शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। फर्नीचर में पेंटिंग एक और खासियत है। फर्नीचर में रंग योजना मुख्य रूप से पारंपरिक है ताकि जगह की सांस्कृतिक विरासत को सामने लाया जा सके। राजस्थान में विभिन्न प्रकार की चट्टानों का समृद्ध भंडार पत्थर तराशने वालों को यहाँ आकर्षित करता है। यहाँ बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, रंगीन और सफ़ेद संगमरमर जैसे विशेष पत्थर पाए जाते हैं।

तो ये थी प्राचीन धरोहर और जीवंत संस्कृति की भूमि राजस्थान की जानकारी। आपको यहाँ के बारे मे क्या पसंद है ये हमे comment section मे बताए और subscribe करें भारत माता चैनल।