स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल - सी. राजगोपालाचारी | Bharat Mata
स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल - C. Rajagopalachari जी कहते थे,
Do not demand love,
Begin to love,
You will be loved.
और जैसा उन्होंने कहा था वैसा ही हुआ। इस देश के लोगों के हृदय मे उनका अलग स्थान था इसलिए सब उन्हे प्यार से C.R. या राजाजी बुलाते थे, और जन कल्याण हेतु किये गए कार्यों के लिए उन्हे इस देश का सर्वोच्चय नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया था। परंतु जिस समय इस देश मे अनगिनत स्वतंत्रता सेनानी और जन कल्याण कार्यकर्ता हुआ करते थे, उस समय राजाजी ने ऐसे क्या कार्य किये थे जिसके लिए उन्हे प्रथम भारत रत्न दिया गया। आईए जानते हैं.
सी. राजगोपालाचारी की जीवनी (biography)
राजाजी का जन्म एक साधारण परिवार मे वर्ष 1878 मे हुआ और पेशे से वो एक वकील थे। जब वो तमिल नाडु मे वकालत का अभ्यास कर रहे थे तब एक दिन अखबार से उन्हे एक ऐसे वकील के बारे मे पता चला जो साउथ अफ्रीका मे civil disobedience कानून के विरुद्ध अपनी लड़ाई लड़ रहा था, और ये वकील और कोई नहीं मोहनदास करमचंद गांधी थे। गांधी जी बिना किसी हिंसा के अपनी लड़ाई लड़ रहे थे जिससे राजाजी अत्यधिक प्रभावित हुए, और राष्ट्रपिता के इस संघर्ष के बारे मे सबको सूचित किया। इसी घटना के बाद वर्ष 1919 में गांधीजी के साथ राजाजी की व्यक्तिगत बातचीत ने उन्हें देश के स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह से शामिल होने के लिए अपना कानूनी पेशा छोड़ने के लिए प्रेरित किया। उनके बीच संबंध इतने मजबूत हो गए थे की महात्मा गांधी राजाजी को 'अपनी अंतरात्मा का रक्षक' कहते थे।
ये तो हुई चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी के राष्ट्रपिता के साथ संबंधों की बात। चलिए अब जानते हैं उनके राजनीतिक सफर के बारे मे....
राजाजी के लिए मानवता और समानता सर्वोपरि थी, इसलिए वर्ष 1900 मे सेलम म्यूनिसपल corporation की चेयरमैनशिप संभालते ही समाज मे समानता स्थापित करने के लिए उन्होंने पहली बार corporation मे एक दलित सदस्य की नियुक्ति की। उस समय इस देश मे दलितों की स्थति काफ़ी खराब थी। जिसके खिलाफ वर्ष 1924 मे राजाजी ने केरल मे vaikom सत्याग्रह शुरू किया, और इस कुप्रथा के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठाई।
वहीं वर्ष 1935 मे भारत को आंशिक स्वतंत्रता मिल गई थी, और भारत मे प्रांतीय चुनाव का आयोजन किया गया, और मद्रास प्रेज़िडन्सी के चुनाव मे राजाजी को अद्भुत विजय प्राप्त हुई। उन्हे प्रिमियर के पद से सम्मानित किया गया, और उन्होंने सबसे पहले The Temple Entry Authorization and Indemnity Act, 1939 पास किया। जिसके बाद दलितों को मंदिरों मे जाने की समानुमती प्राप्त हुई। उनके इस निर्णय के कारण उन्हे घोर आलोचना का सामना भी करना पड़ा परंतु उनके लिए अपने लोकप्रियता से महत्वपूर्ण समानता और मानवधिकार थे।
सी राजगोपालाचारी की उपलब्धियां (Books)
सी राजगोपालाचारी के जीवन की उपलब्धिओ के बीच जब एक समय विश्व युद्ध 2 का आया उस समय जब गांधी जी भारत छोड़ो आंदोलन का आरंभ कर रहे थे। लेकिन राजाजी इस विषय पर उनसे सहमत नहीं थे। उनका कहना था “There is no reality in the fond expectation that Britain will leave this country in simple response to a Congress slogan”. उनका मानना था की जब इंग्लैंड विश्व युद्ध मे जूझ रहा था, उस समय यह विद्रोह सही नहीं था। राजाजी के इन विचारों ने संसार को उनकी करुणा का परिचय दिया। इस देश को पता चला की वो जितने दयावान अपने लोगों के लिए थे, उतने ही अपने दुश्मन के लिए भी।
अपनी राजनीतिक उपलब्धियों के अतिरिक्त राजाजी एक प्रखर लेखक भी थे। उनकी सबसे लोकप्रिय कृतियों में अंग्रेजी में महाभारत (Mahabharata by C Rajagopalachari) और रामायण का पुनर्कथन और तमिल में रामायण - चक्रवर्ती थिरुमगन शामिल हैं।
अब आया वर्ष 1947, भारत को स्वतंत्रता मिली, और राजाजी का सबसे बड़ा सपना साकार हुआ। फिर जनवरी 1950 तक राजगोपालाचारी जी को स्वतंत्र भारत के प्रथम गोवर्नर जनरल के पद पर नियुक्त किया गया। वो पहले और आखिरी भारतीय थे जिन्हे इस पद पर बैठने का अवसर मिला।
और फिर आया वर्ष 1954 जब भारतीय राजनीति और साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
राजाजी के जीवन दर्शन से यह पता चलता है की उनकी कथनी और उनकी करनी मे कोई अंतर नहीं था। उन्होंने इस देश के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये जिसके लिए भारत समन्वय परिवार उन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
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