अमरनाथ धाम | Amarnath Temple | अमरनाथ की गुफा मे दो कबूतरों का रहस्य
प्रकृति के अद्भुत चमत्कार एवं भगवान शिव के अद्वितीय प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध अमरनाथ धाम.. हिन्दू धर्म की आस्था का गौरव ध्वज है | हिमालय की गोद में स्थित.. महादेव को समर्पित अमरनाथ मंदिर असंख्य श्रद्धालुओं एवं भक्तों की श्रद्धा का केंद्र है | हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक अमरनाथ धाम में हिम अर्थात बर्फ़ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्माण होना.. इस मंदिर की प्रमुख विशेषता है और प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। अमरनाथ में स्थित शिव लिंग के बर्फ़ से निर्मित होने के कारण इसे बाबा बर्फ़ानी भी कहा जाता है।
भारत के मस्तक जम्मू कश्मीर.. की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर से लगभग 135 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित अमरनाथ मंदिर.. वास्तव में देश के मुकुट मणि के रूप में सुशोभित है | समुद्र तल से लगभग 13 हज़ार 600 फ़ुट की ऊँचाई पर स्थित अमरनाथ गुफ़ा में.. हर वर्ष प्राकृतिक रूप से निर्मित होने वाले.. लगभग 10 से 15 फ़ुट के हिम शिवलिंग के दर्शन हेतु लाखों श्रद्धालु कठिन यात्रा करके पहुँचते हैं | भगवान शिव को पूर्णरूप से समर्पित अमरनाथ मंदिर की गुफ़ा की लंबाई 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है और ये गुफ़ा 11 मीटर ऊँची है। भोलेनाथ की महिमा का अद्भुत प्रतीक - अमरनाथ शिवलिंग.. भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है |
ऐसी मान्यता है कि इस अद्भुत धाम के दर्शन मात्र से भक्तों का कल्याण हो जाता है | इसी कारण बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए भक्त "बाबा बर्फ़ानी की जय" के नारों के साथ इस दुर्गम यात्रा पर जाते हैं | अमरनाथ यात्रा के विषय में कई पौराणिक कथाएं भी हैं। मान्यता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती को इसी अमरनाथ गुफ़ा में अमरत्व के रहस्य से जुड़ी अमर कथा सुनाई थी और जिस समय भगवान शिव माता पार्वती को यह कथा सुना रहे थे उस समय उनके अतिरिक्त एक श्वेत कबूतर का जोड़ा भी वहीँ उपस्थित था.. जो यह कथा सुनकर अमर हो गया एवं आज भी अमरनाथ के दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालुओं को यह कबूतर को जोड़ा दिखाई देता है। यह भी कहा जाता है कि भोलेनाथ ने अमर कथा को सुनाते समय अमरनाथ यात्रा एवं उसके मार्ग में आने वाले पवित्र स्थलों का वर्णन किया था |
जनश्रुति के अनुसार एक बार कश्मीर की घाटी जलमग्न हो गई तब जगत के प्राणियों की रक्षा के उद्देश्य से ऋषि कश्यप ने इस जल को अनेक नदियों और छोटे-छोटे जलस्रोतों में परिवर्तित कर दिया | उसी समय भृगु ऋषि पवित्र हिमालय पर्वत की यात्रा कर रहे थे | उस समय जल स्तर कम होने के कारण हिमालय की पर्वत श्रृखंलाओं में सर्वप्रथम भृगु ऋषि को अमरनाथ की पवित्र गुफ़ा और हिम शिवलिंग के दर्शन प्राप्त हुए |
कहा ये भी जाता है कि भगवान शिव इस गुफा में श्रावण की पूर्णिमा को आए थे.. इसलिए उस दिन अमरनाथ की यात्रा का विशेष महत्व है। साथ ही यात्रा के लिए सुविधाजनक माह श्रावण का ही है.. अतः अधिकतर श्रद्धालु जुलाई और अगस्त के माह में अमरनाथ धाम के दर्शनों के लिए पहुँचते हैं | इस वर्ष भक्तगण 1 जुलाई से 21 अगस्त तक अमरनाथ यात्रा करके अमरनाथ धाम के दर्शन कर सकेंगे | अमरनाथ गुफ़ा जाने के लिए दो रास्ते प्रमुख हैं - पहला पहलगाम जो कि पारंपरिक रास्ता है और जिसमें चंदनवाड़ी.. पिस्सू टॉप.. शेषनाग और पंचतरणी पवित्र स्थलों के दर्शनों का लाभ प्राप्त होता है.. और दूसरा बालटाल से.. जिसमें श्रद्धालुओं को ट्रैकिंग करके जाना होता है।
भारत सरकार.. देश के प्रमुख तीर्थ स्थल अमरनाथ की यात्रा करने वाले भक्तों की सुरक्षा एवं सुविधा का पूर्ण रूप से ध्यान रखती है | मार्ग में आने वाली कठिनाईयां या आतंकी घटना की आशंका से भक्तों की दृढ आस्था एवं भगवान शिव शंकर के प्रति उनकी असीम श्रद्धा तनिक भी विचलित नहीं होती है | ये सत्य है कि अमरनाथ यात्रा अत्यंत कठिन होती है और श्रद्धालु इस यात्रावधि में थक जाते हैं परन्तु अमरनाथ मन्दिर में पहुँचते ही उनकी सारी थकावट समाप्त हो जाती है तथा उन्हें अद्भुत एवं अद्वितीय आनंद की अनुभूति होती है। इस प्रकार अमरनाथ धाम तीर्थों के तीर्थ के रूप में भारतीय सनातन संस्कृति का दैदीप्यमान प्रतीक है |
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