विजयनगर साम्राज्य: सबसे शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य का उदय और पतन | The Forgotten Hindu Empire | Hampi
मध्यकालीन भारत में विजयनगर का महत्व
इतिहास से वर्तमान तक जब भी भारत के मध्यकालीन इतिहास का जिक्र होता है, तो सबसे पहले हमारे दिमाग में मुगलों का नाम आता है और उनके साम्राज्य के बारे में चर्चा होती है। हालांकि, इस काल में मुगलों के अलावा भी कई और साम्राज्य थे, जिनकी समृद्धि, संस्कृति और धरोहर अत्यधिक महत्वपूर्ण और देखने लायक थी। इनमें से एक साम्राज्य था विजयनगर साम्राज्य, विजयनगर सिर्फ एक राज्य नहीं था, यह संकल्प, शक्ति और उस अडिग भावना का प्रतीक था जो असंभव से आगे बढ़ने का सपना देखती थी। भारत माता वेबसाइट पर और भी ऐतिहासिक आलेख पढ़ें।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की पृष्ठभूमि
13वीं शताब्दी के आसपास, जब दिल्ली में तुगलक वंश का शासन था, मुहम्मद बिन तुगलक एक प्रमुख शासक के रूप में सामने आए थे। यह वही वंश था जिसने भारत में नहरों की व्यवस्था को प्रचलित किया और उसे संस्थागत रूप से लागू किया। हालांकि, मुहम्मद बिन तुगलक के शासन में एक और पहलू था, जो विवादों के घेरे में था – उन्होंने लोगों पर इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव डाला, जो अंततः विजयनगर साम्राज्य की नींव रखने का कारण बना।
विस्तार और शासन प्रणाली
सन 1336 के आस-पास, जब मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली के शासक थे, उस समय हरिहर और बुक्का नामक दो हिंदू भाई थे। इन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया गया, लेकिन उन्होंने इसका विरोध किया। तो इन दोनों को कैद कर लिया गया, लेकिन बाद में उन्होंने इस्लाम धर्म अपनाने का झूठा वादा किया और दिल्ली से भागकर दक्षिण की ओर बढ़ गए। वहां गुरु विद्यारण्य के मार्गदर्शन में उन्होंने एक नया राज्य स्थापित किया, जो बाद में विजयनगर साम्राज्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के पीछे एक दिलचस्प कहानी भी है। कहा जाता है कि जब हरिहर और बुक्का दक्षिण पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि दक्षिण भारत में कोई मजबूत राज्य नहीं था और उत्तर-पूर्वी राज्यों का यहां कोई खास प्रभाव नहीं था। इस अवसर का उपयोग करते हुए, उन्होंने विद्यारण्य के मार्गदर्शन में विजयनगर राज्य की नींव रखी। विजयनगर साम्राज्य का विस्तार वर्तमान केरल, तमिलनाडु, कर्नाटका, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गोवा और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों तक था। इस साम्राज्य में कई वंशों का शासन रहा, जैसे संगम वंश (1336 से 1450 ई.), शालू वंश (1485 से 1505 ई.), तुलु वंश (1550 से 1570 ई.) और बाद में आर बिंदु वंश का शासन रहा। हरिहर और बुक्का संगम वंश के संस्थापक माने जाते हैं, और 1336 में हरिहर पहले राजा बने।
इनके शासन के दौरान, विजयनगर और बहमनी साम्राज्य के बीच संघर्ष शुरू हो गया था, विशेष रूप से कृष्णा और गोदावरी नदियों के आसपास। बहमनी साम्राज्य, जो उत्तर से आने वाले मुस्लिम शासन के तहत था, विजयनगर के साथ व्यापारिक संबंधों में हस्तक्षेप करने लगा। इसके परिणामस्वरूप विजयनगर साम्राज्य और बहमनी साम्राज्य के बीच संघर्ष की शुरुआत हुई।
1356 में बुक्का देव राय का शासन शुरू हुआ और उन्होंने 1371 में मदुरई पर विजय प्राप्त की, जिससे उनका साम्राज्य रामेश्वरम तक फैल गया। इस दौरान दक्षिण में कृष्णा-गोदावरी दोआब क्षेत्र पर लगातार संघर्ष होते रहे। देवराय प्रथम के शासन के दौरान, यह संघर्ष और भी तीव्र हो गया। उन्होंने बहमनी साम्राज्य के साथ संधि की, लेकिन फिरोज शाह बहमनी से बुरी तरह हार गए। इसके बाद, देवराय ने 1420 में अपनी ताकत फिर से स्थापित की और बहमनी को हराकर अपना साम्राज्य फिर से मजबूत किया।
हंपी: संस्कृति और निर्माण की राजधानी
देवराय प्रथम ने कई महत्वपूर्ण संरचनाएं बनवायीं, जिनमें भद्र और हरिद्रा नदियों पर बांध, मल्लिकार्जुन मंदिर, और हंपी का प्रसिद्ध किलाबद्ध शहर शामिल हैं। हंपी, जो विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी, व्यापार और संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र था। यहां 1600 से ज्यादा संरचनाएं पाई गईं, और पर्शियन यात्री अब्दुल रज्जाक ने 1440 में हंपी की 7-टायर किलाबद्ध संरचना की तारीफ की।
कृष्णदेवराय के शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य का स्वर्णिम युग था। उन्होंने युद्ध में अपनी वीरता और प्रशासनिक दक्षता के कारण अपार ख्याति प्राप्त की। उन्होंने बहमनी सल्तनत के टूटने के बाद 1520 में बीजापुर को हराया और गजपति शासकों को पराजित किया। कृष्णदेवराय को उनके शानदार प्रशासन के लिए कई काव्यकारों और लेखकों ने सराहा। उनके दरबार में आठ प्रमुख तेलुगू कवियों का समूह था, जिन्हें "अष्ट दिग्गज" कहा जाता था, जिनमें तेनाली राम, जिन्हें दक्षिण भारत के बीरबल के नाम से भी जाना जाता है, भी शामिल थे।
कृष्णदेवराय ने अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए कई मंदिरों का निर्माण कराया, जिनमें विट्ठल मंदिर और हंपी स्टोन चेरियट शामिल थे। कृष्णदेवराय की मृत्यु 1539 में हुई, जिसके बाद उनके भाई अच्युत देव राय उत्तराधिकारी बने। फिर 1565 तक तुलु वंश के तहत विजयनगर साम्राज्य का शासन रहा, लेकिन इस समय साम्राज्य का प्रशासन राम राजा के अधीन था। राम राजा ने पुर्तगालियों से संधि की, जो बाद में साम्राज्य के लिए हानिकारक साबित हुई।
तालीकोटा का युद्ध और पतन
1565 में बीजापुर, गोलकुंडा और अहमदनगर ने मिलकर विजयनगर साम्राज्य पर हमला किया, जिसे "ताली कोठा" या "रक्षा तागड़ी युद्ध" के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में विजयनगर साम्राज्य का पतन हुआ, लेकिन इसके बाद भी हिंदू राजवंशों की परंपरा लगभग 100 वर्षों तक जीवित रही।
विजयनगर साम्राज्य का अंतिम राजवंश आर बिंदु था, जिसका शासन तिरुमला देवराय के तहत 1542 में शुरू हुआ था। इसके बाद श्री रंग तृतीय के शासन में 1646 में विजयनगर साम्राज्य समाप्त हो गया।
हंपी, जो आज यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट है, विजयनगर साम्राज्य का सबसे प्रमुख स्थल था। क्या आप भारतीय संस्कृति और इतिहास के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं? तो कमेंट में "मेरा भारत महान " लिखिए और वीडियो को लाइक और चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें।
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