भारत माता को समर्पित हरिद्वार का प्रसिद्ध मंदिर | Bharat Mata Mandir Haridwar
भारत माता मंदिर की परिकल्पना
पूज्य स्वामी श्री सत्यमित्रानंद जी के मन में यह संकल्प उद्भूत हुआ कि भारत के गाँव-गाँव, नगर-नगर, और गंगा के पावन तट पर अनेक मंदिर बने हैं, परन्तु जिस धरती पर हम खेले हैं, जिसका अन्न खाकर बड़े हुए "जिसकी संस्कृति को अनेक बार आक्रान्ताओं ने रौंदा। उनसे मुक्त कराने के लिए अनेक वीर-वीरांगनाओं ने बलिदान दिया,
मंदिर निर्माण का उद्देश्य
जिसकी मातृ शक्ति ने तिल-तिल जीकर भारत की संस्कृति का सिंचन किया, संतों ने साधना की, जिस धरती पर परमात्मा ने अनेक बार अवतार लिया, ऐसे वीरों, बलिदानियों, सन्तों, सतियों सहित शक्ति, विष्णु और देवाधिदेव महादेव के विभिन्न रूपों के साथ एक भव्य मंदिर का निर्माण हो। जिसमें 'हम सब की आराध्या भारत माता का भी पूजन और वंदन हो। इसी पावन दृष्टिकोण से हरिद्वार में भारत माता मंदिर का निर्माण किया गया। पूज्य स्वामी जी का विचार यह विचार था कि इस मंदिर के सात तलों के माध्यम से तीर्थयात्री यहाँ के सन्तों, महापुरुषों, बलदानियों, ऋषियों आदि के जीवन से प्रेरणा लेकर यह संकल्प कर सकें कि यह राष्ट्र हमारा है और हमारी संस्कृति अप्रतिम है, जिसके आधार पर भारत वर्ष विश्व गुरु कहलाया।
भारत माता की मूर्ति की स्थापना
आप के मन में यह विचार आ सकता है कि मंदिर तो भगवान का होता है फिर यहाँ भारत माता की मूर्ति क्यों? स्वामी जी के विचार से भारतमाता ही तो सम्पूर्ण राष्ट्र है और उसकी सम्पूर्ण शक्ति राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक में उद्भुत है - उस शक्ति का अनुभव कराने के लिए, और दर्शक राष्ट्रीय और सांस्कृतिक चेतना जागृत कर सकें इसीलिए भारतमाता की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया।
राष्ट्र और संस्कृति का रक्षण, पोषण और सम्बर्धन उस राष्ट्र के शूरवीर, मातृ शक्ति, और सन्त- आचार्यो के बिना असम्भव है। ये राष्ट्र के जीवन्त श्रद्धा केन्द्र होते हैं। अपना देश और देश के नागरिक इन विभूतियों से निरन्तर प्रेरणा लेते रहें। इसी लिए भारत माता मंदिर के
प्रथम तल पर शूर मंदिर जिसमे विभिन्न शूर-वीर, बलिदानी महापुरुषों की स्थापना की गई जिसमे महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवा जी, महारानी लक्ष्मीबाई, चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, अशफाक उल्ला खाँ, हेमू कालाणी, गुरुगोविन्द सिंह आदि प्रमुख हैं ।
इसी प्रकार द्वितीय तल पर मातृ मंदिर में मीराबाई, सती अनुसुइया मैत्रेयी, गार्गी, उर्मिला, मदालसाँ, सती सावित्री, सती पदमिनी, दमयन्ती, अण्डाल, भगिनी निवेदिता, माँ शारदा मणि आदि की प्रतिमायें प्रतिष्ठित हैं। राष्ट्र और संस्कृति निर्माण में इन माताओं का विशिष्ट स्थान रहा है। - अपने व्याग, तपस्या और बलिदान से जीवन्त भारत के निर्माण में ये अन्त; शक्ति के रूप में रहीं।
तृतीय तल - पर संत मंदिर में विभिन्न धर्म सम्प्रदाय के सन्त - आचार्यो की प्रतिमाएँ स्थापित की गयी हैं। इनमें आद्य शंकराचार्य, श्री रामानन्दाचार्य, श्री निम्बार्काचार्य, भी माधवाचार्य, भी वल्लभाचर्य, संत तुलसीदास, श्री रंग अवधूत, स्वामी, दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अब्दुल रहीम खानखाना, महर्षि वाल्मीकि, संत झूलेलाल आदि की प्रतिभाएँ दर्शकों को प्रेरणा देती हैं।
चतुर्थ तल- संस्कृति मण्डपम के नाम से जाना जाता है, जिसमे सनातन धर्म, पारसी, ईसाई बौद्ध, जैन, सिख आदि धर्मो के मूल मंत्र रजत पट्टिकाओं पर अंकित है ये संकेत देते हैं कि सभी धर्म सम्प्रदाय एक हैं। इन मूल मंत्रो के साथ ही विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ, सभी संस्कृतियों का मूल वेद ग्रंथ भी प्रतिष्ठित है। सभागार की सभी दीवारों पर भारत के सभी प्रान्तों की सांस्कृतिक झाँकियाँ चित्र रूप में अंकित है, जिसका डिजिटल प्रसारण अब स्क्रीन के माध्यम से भी किया जा रहा है। जो दर्शकों को भारतीय संस्कृति की विशालता और अनेकता में एकता का संदेश देती है।
पंचम तल पर शक्ति मंदिर है। शक्ति का स्थान राष्ट्र के जीवन में सर्वोपरि है, बिना ऊर्जा के कोई कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। हमारी संस्कृति में शक्ति उपासना का विशिष्ट स्थान है। इस तल पर, आदि शक्ति दुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रहमचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि महागौरी, सिद्धदात्री के साथ सरस्वती, गायत्री, गंगा, यमुना आदि की प्रतिमाएँ स्थापित हैं।
छठे तल - पर विष्णु मंदिर स्थित है। भारत जैसे विशाल देश में विष्णु के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है।" भिन्न रुचिर्हि लोको के आधार पर, इस तल पर भगवान लक्ष्मी नारायण, राधा-कृष्ण, सीता-राम, श्री नाथ जी भी रण दोणराय श्री व्यंकटेश बाला जी, स्वामी नारायण आदि रूपों की प्रतिमाएं स्थापित है।
सप्तम तल पर शिव मंदिर है। इस तल पर देवधिदेव भगवान शंकर का मंदिर है। शंकर राष्ट्र का स्वरूप है और उनकी जटाओं में बहती गंगा संस्कृति के रूप में प्रवाहमान है- जो सम्पूर्ण राष्ट्र को निरन्तर गतिमान रहकर अपनी लक्ष्य प्राप्ति की दिशा का कर्तव्य बोध दे रही है।
प्रेरणा का स्रोत
इस मंदिर में नटराज शिव, अर्धनारीश्वर शिव परिवार आदि हैं । इस तल से प्रकृति का अनुपम दर्शन होता है। यहाँ से गंगा जी की सप्त धाराओ का दर्शन होता है। अतः जो तथ्य और अनुभूति अनेक ग्रंथों के पठन से नहीं प्राप्त हो सकती वह भारत माता मंदिर के दर्शन कर सहज ही प्राप्त की जा सकती है। सम्पूर्ण राष्ट्र और विश्व इससे प्रेरणा लेता रहेगा और राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाने का प्रयत्न करेगा।
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