Mysteries of Banke Bihari Temple
हिन्दू धर्म में मंदिर का एक विशेष महत्व है, मंदिर का अर्थ है कोई ऐसा पवित्र स्थान जहां आकर लोग अपनी आस्था को परमात्मा को समर्पित करते हैं। हिन्दू धर्म में कंकर कंकर शंकर की अवधारणा निहित है, हिन्दू धर्म के अनुसार सृष्टि के हर एक कण में यहाँ तक कि स्वयं मनुष्य के भीतर भी ईश्वर विद्यमान है लेकिन मंदिरों के निर्माण में वास्तुशास्त्र का विशेष ध्यान रखा जाता है इसलिए यहाँ का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है। मंदिर में बजने वाले शंख और घंटियाँ मन मस्तिष्क को असीम शांति देती हैं और इनसे सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। ये तो बात हुई मंदिर की लेकिन क्या आपने कभी ये सुना है कि भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर या उसके दुख से व्याकुल होकर भगवान मंदिर छोड़कर भक्त के साथ चल दिए हों। यह भले ही सुनने में थोड़ा अजीब हो लेकिन ऐसा हुआ है और वृंदावन का बांकेबिहारी मंदिर इसके लिए प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि एक बार श्रीकृष्ण का एक भक्त उनके दर्शन के लिए आया, वो भक्त मंदिर में स्थापित श्रीराधाकृष्ण के विग्रह को एकटक निहार रहा था जिससे श्रीकृष्ण उसपर प्रसन्न हो गए और उस भक्त के साथ चले गए। जब मंदिर के पुजारी ने विग्रह को गायब देखा तो वो उस भक्त के पास पहुंचे और विग्रह को मंदिर में वापस ले आए। इस घटना के बाद से ऐसी धारणा बन गई कि जो भी इस विग्रह को प्रेम से निहारता है श्रीकृष्ण उसी के साथ चल देते हैं, यही कारण है कि यहाँ आने वाले श्रद्धालु बंद आँखों से भगवान को नहीं देखते बल्कि वे आँखें खोल कर बड़े अनुराग के साथ भगवान को निहारते हैं तथा उनके दर्शन करते हैं। कोई भी उन्हें एकटक निहार ना सके इसलिए उनके विग्रह के आगे हर दो मिनट पर पर्दा डाला जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहरी आस्था रखने वाले स्वामी हरिदास जी ने वर्ष 1864 में इस मंदिर की स्थापना की थी। ऐसा कहा जाता है कि स्वामी हरिदास हर रोज निधिवन जाकर बड़े अनुराग से भजन गाकर श्रीकृष्ण और माता राधा को रिझाने की कोशिश करते। उनके भक्ति भाव से प्रसन्न होकर श्रीराधाकृष्ण उन्हे रोज दर्शन भी देते। एक बार उनके शिष्यों ने उनसे विनती की कि आप तो हर रोज प्रभु के दर्शन करते हैं कभी हमें भी प्रभु के दर्शन का लाभ लेने दें। उनकी विनती सुनकर स्वामी हरिदास उन्हें लेकर निधिवन चले गए और भजन गाकर प्रभु को रिझाने लगे। उनका भजन सुनकर भगवान श्रीकृष्ण मां राधा के साथ प्रकट हुए, श्रीकृष्ण ने हरिदास जी से विनती कि हम अब आपके साथ ही रहना चाहते हैं। इस पर स्वामी हरिदास जी बोले कि हे प्रभु मैं एक संत हूँ आपकी व्यवस्था करना मेरे लिए सहज होगा लेकिन माता राधा के लिए वस्त्र और आभूषण की व्यवस्था किस प्रकार कर पाऊँगा। यह सुनकर प्रभु मुस्कुराये और श्री कृष्ण तथा माता राधा एक ही में समाहित हो गए और एक विग्रह के रूप में प्रकट हुए। भगवान कृष्ण और मां राधा का सम्मिलित स्वरूप होने के कारण आधे विग्रह पर पुरुष तथा आधे विग्रह पर नारी का श्रंगार किया जाता है। पहले इस विग्रह को निधिवन में ही स्थापित किया गया था लेकिन बाद में जब बांकेबिहारी मंदिर का निर्माण हुआ तब इस विग्रह को मंदिर में स्थापित कर दिया गया। भक्तों का ऐसा विश्वास है कि निधिवन में आज भी श्रीकृष्ण मां राधा और गोपियों के साथ रास रचाते हैं और इसके पश्चात विश्राम करते हैं। भगवान के विश्राम में कोई बाधा ना हो इसलिए यहाँ मंगला आरती भी नहीं की जाती। भक्तों को सिर्फ अक्षय तृतीया के दिन ही इस मंदिर में बांके बिहारी के चरणों के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। वृंदावन एक ऐसा पवित्र धाम है जहां की हर एक गली श्रीकृष्ण की लीलाओं की साक्षी है और यहाँ का कोना कोना ऐसे ही अद्भुत मंदिरों से भरा हुआ है। तो अगले वीडियो में आप किस मंदिर के बारे में जानना चाहते है कमेंट्स सेक्शन में जरूर बताएँ जिससे मंदिरों से जुड़ी कुछ विशिष्ट जानकारियाँ हम आप तक पहुंचा सकें।