बद्रीनाथ | Badrinath | Bharat Mata

बद्रीनाथ मंदिर को बद्रीनारायण मंदिर भी कहा जाता है जो अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है। यह हिंदुओं के चार धाम में से एक धाम है। ऋषिकेश से यह 294 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। यह पंच बद्री में से एक बद्री भी है। उत्तराखंड में पंच बद्री पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिंदू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बद्रीनाथ धाम चारों धामों में से एक है। इस धाम के बारे में यह कहावत है कि जो जाए बद्री चौधरी यानी जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे पुणे माता के उधर यानी गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता। शास्त्रों में बताया गया है मनुष्य! जीवन में कम से कम एक बार बद्रीनाथ के दर्शन जरूर करना चाहिए। बद्रीनाथ के चरण पकड़ती है। अलकनंदा सतयुग तक यहां पर हर व्यक्ति को भगवान विष्णु के साक्षात् दर्शन हुआ करते थे। त्रेता में यहां देवताओं और साधुओं को भगवान के साक्षात दर्शन मिलते थे।

द्वापर में जब भगवान श्री कृष्ण रूप में अवतार लेने वाले थे, उस समय भगवान ने यह नियम बनाया कि अब से यहां मनुष्य को उनके विग्रह के दर्शन होंगे। बद्रीनाथ को शास्त्रों और पुराणों में दूसरा बैकुंठ कहा जाता है। एक बैकुंठ शिवसागर है जहां भगवान विष्णु निवास करते हैं और विष्णु का दूसरा निवास बद्रीनाथ है जो धरती पर मौजूद है। बद्रीनाथ के बारे में यह भी माना जाता है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था, लेकिन विष्णु भगवान ने इस स्थान को शिव से मांग लिया।चार धाम यात्रा में सबसे पहले गंगोत्री के दर्शन होते हैं। यह है गोमुख जहां से मां गंगा की धारा निकलती है। इस यात्रा में सबसे अंत में बद्रीनाथ के दर्शन होते हैं।

बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों के बीच बसा है। इसे नर नारायण पर्वत कहा जाता है। कहते हैं यहां पर भगवान विष्णु के नर और नारायण ने तपस्या की थी। नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण हुए थे। बद्रीनाथ की यात्रा में दूसरा पड़ाव यमुनोत्री है। यह है देवी यमुना का मंदिर यहां के बाद केदारनाथ के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि जब केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं, उस समय मंदिर में दीपक जलता है। इस दीपक के दर्शन का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि 6 महीने तक बंद दरवाजे के अंदर इस देश को।देवता जलाए रखते हैं। जोशीमठ स्थित नरसिंह मंदिर का संबंध बद्रीनाथ से माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान नरसिंह की एक बाजू काफी पतली है। जिस दिन यह टूट कर गिर जाएगी। उस दिन नर नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ के दर्शन वर्तमान स्थान पर नहीं हो पाएंगे। बद्रीनाथ तीर्थ का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा यह अपने आप में एक रोचक कथा है। कहते हैं एक बार देवी लक्ष्मी जब भगवान विष्णु से रूठकर मायके चली गई तब भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे। जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई तो वह भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आए। उस समय यहां बद्री का 1 यानी बेड का जंगल था। बद्री के वन में बैठकर भगवान ने तपस्या की थी। इसलिए देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम दिया।

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