भारत माता मंदिर | हरिद्धार | यहाँ भगवान के साथ होती है शहीदो की पूजा
पवित्र पावन शब्द मंदिर.. वास्तव में उपासना स्थल के रूप में परिभाषित है.. साथ ही आस्था के प्रतीक चिन्ह के रूप में भी इन्हें जाना जाता है।
भारत की प्राचीनतम समृद्ध संस्कृति ने सम्पूर्ण भारत भूमि को ही एक ऐसा आध्यात्मिक केंद्र बना दिया कि ये सम्पूर्ण विश्व के लिए एक पावन “देवस्थान” के रूप में अलंकृत है। भारत भूमि की इसी अलौकिक अवधारणा ने इसे विश्व गुरु के गौरव से सम्मानित किया।
भारत की विविधता और अनेकता में विभिन्न धर्मों.. सम्प्रदायों और मतों का अस्तित्व रहा है किन्तु राष्ट्र-धर्म ही सर्वोच्च धर्म और भारतीयता ही हमारी पहचान रही है।
राष्ट्र प्रेम की इसी भावधारा से भारत माता मंदिर का उद्भव हुआ और श्रद्धेय गुरु स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज के अथक प्रयासों से इसे साकारता प्राप्त हो सकी। सदियों तक आने वाली पीढ़ियाँ उनके इस उपकार के लिए उनकी कृतज्ञ रहेंगी।
श्रद्धेय स्वामी जी ने भारत माता को ही अपनी प्रथम आराध्या देवी के रूप में माना और उनके प्रति निष्ठा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना दिया। राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र भक्ति का ये एक ऐसा अनूठा उदाहरण है जो युगों तक प्रेरणास्त्रोत बनकर भारतवासियों का पथ प्रशस्त करेगा।
“हम सब एक हैं”.. हमारी माता “भारत माता है” का सन्देश भारत को एक सूत्र में पिरोने के प्रयास में सफलता अर्जित करेगा और भारत को एक महान राष्ट्र बनने की प्रेरणा प्रदान करता रहेगा।
इस मंदिर में सिक्ख.. ईसाई.. इस्लाम.. पारसी आदि धर्म धाराओं के श्रेष्ठ मूल मंत्रों को रजत पट्टिकाओं पर अंकित गया है। इस प्रकार अपने देश की विविध संस्कृतियों की धाराओं को हरिद्वार में बहने वाली गंगा की पावन धारा से जोड़ कर.. ऐसे संगम के निर्माण का प्रयास किया गया है.. जो पवित्रता की परिभाषा को एक नया और पवित्रतम अर्थ प्रदान करेगा।
भारत माता मंदिर सप्त्सरोवर क्षेत्र में स्थित है। ये मंदिर लगभग 180 फ़ीट ऊँचा है और इसमें 7 मंज़िल हैं। ये मंदिर विशेष रूप से उन सभी ज्ञात और अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित है.. जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपने त्याग एवं बलिदान से इतिहास को गौरवान्वित किया।
राष्ट्र और संस्कृति का रक्षण.. पोषण और संवर्धन.. उस राष्ट्र के शूरवीर.. मातृ शक्ति और संत आचार्यों के बिना असंभव है। देश के नागरिक इन विभूतियों से निरंतर प्रेरणा प्राप्त कर सकें.. इसीलिए इस मंदिर में इन्हें प्रमुखता से स्थान दिया गया है।
भारत माता मंदिर के भूतल पर प्रमुखता से भारत माता की भव्य मूर्ती स्थापित है। ये मूर्ती राष्ट्रीय प्रेम और देश के प्रति अपार श्रद्धा की परिचायिका है।
मंदिर के प्रथम तल पर “शूर मंदिर” स्थापित है.. जिसमें विभिन्न शूरवीर और बलिदानी महापुरुषों की प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं। इनमें महात्मा गांधी.. मदनमोहन मालवीय.. सुभाषचंद्र बोस.. महाराणा प्रताप.. छत्रपति शिवाजी.. गुरु गोविन्द सिंह.. महारानी लक्ष्मी बाई.. चंद्रशेखर आज़ाद.. भगत सिंह.. अशफ़ाकुल्लाह ख़ान.. हेमू कालानी.. वीर सावरकर आदि प्रमुख हैं। इन महान चेतनाओं के दर्शन मात्र से मन में राष्ट्र प्रेम के साथ साथ देश के गौरवशाली इतिहास से परिचय प्राप्त होता है और देश के प्रति त्याग और समर्पण की भावना जागृत होती है।
द्वितीय तल पर “मातृ मंदिर” की स्थापना की गयी है। इसमें मीराबाई.. सती अनुसूया.. मैत्रयी.. गार्गी.. उर्मिला.. मदालसा.. सावित्री.. पद्मिनी.. दमयंती.. माँ शारदा.. भगिनी निवेदिता आदि मातृ शक्तियों की प्रतिमाएं प्रतिष्ठापित हैं।
राष्ट्र गौरव और संस्कृति निर्माण में इन माताओं का विशिष्ठ स्थान एवं योगदान रहा है।
तृतीय तल पर “संत मंदिर” में विभिन्न धर्म संप्रदाय के संत आचार्यों की प्रतिमाएं स्थापित की गयीं हैं। इनमें आदि गुरु शंकराचार्य.. श्री रामानंदाचार्य.. श्री निम्बकाचार्य.. श्री माधवाचार्य.. श्री वल्लभाचार्य.. संत तुलसीदास.. श्री रंग अवधूत.. स्वामी दयानंद सरस्वती.. स्वामी विवेकानंद.. रामकृष्ण परमहंस.. अब्दुल रहीम खानखाना.. महर्षि वाल्मीकि.. संत झूलेलाल आदि की प्रतिमाएं दर्शकों को निरंतर प्रेरणा देती हैं।
चतुर्थ तल.. “संस्कृति मंडपम” के नाम से जाना जाता है.. जिसमें सनातन धर्म.. इस्लाम.. पारसी.. ईसाई.. बौद्ध.. जैन.. सिक्ख धर्मों के मूल मंत्र.. रजत पट्टिकाओं पर अंकित होकर अपना प्रकाश विकीर्ण कर अवबोध देते हैं कि सभी धर्म एवं मत एक हैं।
साथ ही विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ और सभी संस्कृतियों का मूल “वेद भगवान” प्रतिष्ठित है। सभागार की चतुर्दिक दीवारों पर भारत के सभी प्रान्तों की सांस्कृतिक झांकियां चित्र रूप में दर्शकों को भारतीय संस्कृति की विशालता और विविधता का सन्देश देती हैं।
पंचम तल पर “शक्ति मंदिर” है। शक्ति का स्थान राष्ट्र के जीवन में सर्वोपरि है। बिना उर्जा के कोई कार्य संपन्न नहीं हो सकता। हमारी संस्कृति में शक्ति उपासना का विशिष्ट स्थान है। इस मंदिर में आदि शक्ति दुर्गा के नौ शक्ति रूपों के साथ सरस्वती.. गायत्री.. गंगा.. यमुना की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं।
षष्ठम तल पर “विष्णु मंदिर” है। इस मंदिर में भगवान लक्ष्मी नारायण.. राधा कृष्ण.. सीता राम.. श्री नाथ जी.. श्री हरिविष्णु.. श्री वेंकटेश बालाजी.. श्री अक्षर पुरषोत्तम.. स्वामी नारायण.. विट्ठल रुक्मणी आदि की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
सप्तम तल में शिव मंदिर स्थित है। इस मंदिर में नटराज.. शिव.. अर्धनारीश्वर.. शिव परिवार आदि रूपों में भगवान शंकर प्रतिष्ठित हैं। पार्श्व भाग में हिमालय के शिखरों का आकर्षक दृश्य है।
यहाँ से पतित पावनी भागीरथी गंगा की सप्त्धाराओं का दर्शन होता है।
जो तथ्य और अनुभूति.. असंख्य प्रवचनों.. ग्रंथों के पठन से नहीं प्राप्त की जा सकती.. वो भारत माता मंदिर के दर्शन कर सहज ही प्राप्त की जा सकती है। भारत माता की संतान होने के नाते हम सब एक हैं। इस दृष्टि से हम सबका कर्त्तव्य है कि हमारा चिंतन.. आचरण सदैव भारत माता के अनुकूल हो।
संक्षेप में यदि भारत माता मंदिर की व्याख्या करनी हो तो इसे संघनित भारत की संज्ञा से विभूषित किया जा सकता है।
पुरातन भारतीय संस्कृति और उच्च आदर्शों के प्रतीक चिन्ह के रूप में भारत माता मंदिर के निर्माता परम श्रद्धेय गुरूजी स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज के श्री चरणों में Bharat Mata परिवार की ओर से शत-शत नमन एवं वंदन।
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