द्वारका: भगवान श्रीकृष्ण की पवित्र नगरी और द्वारकाधीश मंदिर का इतिहास

गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित द्वारका, भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। यह ऐतिहासिक शहर अरब सागर और गोमती नदी के संगम पर बसा हुआ है, और यहां की भूमि को भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं अपने शासन के लिए चुना था। द्वारका न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक सुरम्य स्थान भी है, जो भक्तों और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है। भगवान श्री कृष्ण के किले और महलों से भरी यह नगरी, भारतीय संस्कृति और इतिहास का अमूल्य हिस्सा है।

द्वारका: भगवान श्री कृष्ण का राजमहल

महाभारत के अनुसार, जब मथुरा पर बार-बार हमला करके उसे नष्ट कर दिया गया था, तब भगवान श्री कृष्ण ने पश्चिम दिशा में एक नई नगरी बसाई, जिसे उन्होंने सोने की द्वारका कहा। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने अपने परिवार और प्रजाजनों के साथ निवास किया। द्वारका के ऐतिहासिक महलों और मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण का दिव्य रूप हमेशा के लिए प्रतिष्ठित है। यह नगरी भगवान के साथ-साथ उनके भक्तों के लिए भी एक अत्यंत पवित्र स्थल बन गई।

द्वारकाधीश मंदिर: धार्मिक केंद्र

द्वारका का प्रमुख स्थल है द्वारकाधीश मंदिर, जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। यहां पर भगवान कृष्ण द्वारकाधीश के रूप में विराजमान हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले सभी भक्त गोमती नदी में स्नान करते हैं, जो नदी गंगा नदी की सहायक मानी जाती है। स्नान के बाद भक्त मोक्स द्वार से होते हुए मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करते हैं। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की वास्तुकला भी भक्तों को मोहित कर देती है। भगवान कृष्ण के दर्शन करने के बाद भक्त तुला मंदिर की ओर बढ़ते हैं।

तुला मंदिर: अद्भुत धार्मिक परंपरा

द्वारकाधीश मंदिर के पास स्थित तुला मंदिर में भगवान बलराम जी का वास है। यहां पर एक बड़ी सी कांटी पर बैठकर भक्तगण अपने वजन के अनुसार दान करते हैं। यह परंपरा द्वापर युग के समय से चली आ रही है, जब भगवान श्री कृष्ण ने तुलादान (वजन का दान) किया था। यहां दान किए गए अनाज को प्रसाद रूप में भक्तों को वितरित किया जाता है। यह एक अद्भुत और महत्वपूर्ण धार्मिक रीति है, जिसे हर श्रद्धालु को अनुभव करना चाहिए।

द्वारकाधीश मंदिर की ध्वजा और ध्यान आकर्षित करने वाला शिखर

द्वारकाधीश मंदिर के शिखर पर एक विशेष 5 गज लंबी ध्वजा लहराती है। यह ध्वजा भक्तों द्वारा दिन में पांच बार बदली जाती है, और इसे बहुत ही श्रद्धा और उल्लास के साथ किया जाता है। यह धार्मिक क्रिया भक्तों के मन में एक अद्वितीय शांति और आस्था का संचार करती है।

समुद्र का किनारा और बीच

द्वारका में आने वाले भक्तों के लिए समुद्र के किनारे की सुंदरता भी आकर्षण का मुख्य केंद्र है। मंदिर परिसर के पास दो बीच स्थित हैं, जिनमें से एक बीच पर विशेष रूप से भक्तगण सुबह-सुबह समंदर की लहरों और ठंडी हवा का आनंद लेने के लिए आते हैं। यह स्थान शांति और प्राकृतिक सौंदर्य का आदर्श उदाहरण है, जहां से अरब सागर की लहरें शानदार दृश्य प्रस्तुत करती हैं।

गोमती घाट और समुद्र नारायण मंदिर

द्वारका के गोमती घाट पर स्थित गोमती नदी का पवित्र संगम देखा जा सकता है। यह नदी नेपाल के हिमालय से निकलकर कई राज्यों से होते हुए द्वारका पहुंचती है। यहां पर अरब सागर और गोमती नदी का संगम एक दिव्य दृश्य प्रस्तुत करता है। गोमती घाट के अंतिम छोर पर स्थित समुद्र नारायण मंदिर भगवान वरुण, देवी गोमती, मीराबाई, और भवानी देवी को समर्पित है। यह स्थान भक्तों के लिए आस्था और आशीर्वाद का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।

पंचानंद तीर्थ और पांच कुएं

गोमती नदी के पार स्थित पंचानंद तीर्थ में पांच पांडवों द्वारा बनाए गए पांच कुएं स्थित हैं। माना जाता है कि जुए में हारने के बाद पांडव यहां आए थे और ऋषियों के कहने पर इन कुओं से पांच अलग-अलग नदियों का पानी प्रकट हुआ था। इन कुओं का पानी बहुत मीठा है और यह स्थान एक विशेष धार्मिक महत्व रखता है।

रुक्मिणी माता का मंदिर

अगर आप द्वारका में भगवान श्री कृष्ण के दर्शन कर चुके हैं, तो रुक्मिणी माता के दर्शन करना न भूलें। रुक्मिणी माता का मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से लगभग ढाई किलोमीटर दूर स्थित है। यहां पर माता रुक्मिणी की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी जी का विवाह यहीं हुआ था। यह मंदिर द्वारका के धार्मिक महत्व को और भी बढ़ाता है।

भड़केश्वर महादेव मंदिर

द्वारका से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भड़केश्वर महादेव मंदिर अरब सागर के किनारे बने चट्टानों पर स्थित है। यह मंदिर चंद्रमौलेश्वर शिव जी को समर्पित है और इसके सामने नंदी महाराज विराजमान हैं। मंदिर का वातावरण शांति और भक्ति से भरपूर है। इसके पास स्थित सनसेट पॉइंट से अरब सागर का खूबसूरत दृश्य देखा जा सकता है। यहां पर सूर्यास्त का दृश्य अत्यंत लुभावना होता है।

शिवराजपुर बीच: स्विमिंग और वाटर स्पोर्ट्स का आदर्श स्थल

द्वारका से 12 किलोमीटर दूर स्थित शिवराजपुर बीच का पानी नीले रंग का है और यह स्विमिंग और वाटर स्पोर्ट्स के लिए आदर्श स्थान है। यहां पर आप कैमल राइडिंग, वाटर स्पोर्ट्स और अन्य एडवेंचर गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं। इस बीच को अपने खूबसूरत लैंडस्केप के कारण ब्लू फ्लैग का टैग भी मिला हुआ है। विशेष रूप से शाम के समय, यहां पर सूर्यास्त का दृश्य अत्यधिक आकर्षक होता है।

अन्य प्रमुख स्थल

द्वारका में और भी कई धार्मिक स्थल हैं, जैसे इस्कॉन मंदिर, स्वामीनारायण मंदिर और सावित्री वाव (प्राचीन कुआं)। इन स्थलों पर जाकर आप द्वारका के धार्मिक इतिहास और संस्कृति को और गहरे से समझ सकते हैं। सावित्री वाव का विशेष महत्व है क्योंकि माना जाता है कि द्वारकाधीश मंदिर की प्रतिमा यहीं प्रकट हुई थी।

निष्कर्ष

द्वारका न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह एक पर्यटन स्थल भी है, जो प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व से भरपूर है। यहां आने से न केवल आप भगवान श्री कृष्ण के दर्शन कर सकते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास का भी अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। द्वारका की यात्रा एक अद्वितीय अनुभव है, जो आपकी आत्मा को शांति और सुख प्रदान करती है।