स्वर्ण मंदिर का इतिहास | History of Golden Temple Amritsar | Bharat Mata
अमृतसर का स्वर्ण मंदिर केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का मशहूर मंदिर है। धर्म के मशहूर तीर्थ स्थलों में से एक है। इस मंदिर का ऊपरी माला 400 किलो सोने से निर्मित है। इसलिए इस मंदिर को स्वर्ण मंदिर नाम दिया। बहुत कम लोग जानते हैं लेकिन इस मंदिर को हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है। कहने को तो यह सिखों का गुरुद्वारा है लेकिन मंदिर शब्द का जोड़ना इसी बात का प्रतीक है कि भारत में हर धर्म को एक समान माना गया है। यही वजह है कि यहां सिखों के अलावा हर साल विभिन्न धर्मों के श्रद्धालु भी आते हैं जो स्वर्ण मंदिर और सिख धर्म के प्रति अटूट आस्था रखते हैं। इस मंदिर के चारों ओर बने दरवाजे सभी धर्म के लोगों को यहां आने के लिए आमंत्रित करते हैं। अमृतसर। इतिहास करीब 400 साल पुराना है। अमृतसर का मतलब है। अमृत का टैंक 5 में सिख गुरु गुरु अर्जन देव जी ने इस पवित्र सरोवर व टांग के बीच में हरमंदिर साहिब यानी स्वर्ण मंदिर का निर्माण किया और यहां सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ आदि ग्रंथ की स्थापना की। श्री हरमंदिर साहिब परिसर अकाल तख्त का भी घर माना जाता है। एक और संस्करण में बताया गया है कि सम्राट अकबर ने गुरु रामदास की पत्नी को भूमि दान की थी। फिर 1581 में गुरु अर्जुन दास ने इसका निर्माण शुरू किया। निर्माण के दौरान यह सरोवर सूखा और खाली रखा गया था। हरमंदिर साहिब के पहले संस्करण को पूरा करने में 8 साल का समय लगा। यह मंदिर 1604 में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ था खाना।कई बार स्वर्ण मंदिर को नष्ट किया गया लेकिन 17वीं शताब्दी में महाराज सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया द्वारा इसे फिर से बनवाया गया था। मार्बल से बने इस मंदिर की दीवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है जो देखने में बहुत ही सुंदर लगती है। स्वर्ण मंदिर के गुरुद्वारे में होने वाले लंगर में हर कोई शामिल हो सकता है कि आपको हैरत हो लेकिन स्वर्ण मंदिर की रसोई में हर रोज 40000 लोगों से ज्यादा लोगों को निशुल्क लंगर खिलाया जाता है और छुट्टी में चार लाख तक बढ़ जाती है।
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