गोरखनाथ मंदिर से जुड़ी परंपरा का क्या है रहस्य ?|Gorakhnath Temple History

दैविक कथाओं और सांस्कृतिक महिमाओं के लिए भारत को देव धरा कहा जाता है. हमारे देश की पावन भूमि अनेक मंदिरों तथा धार्मिक स्थलों का विशाल संग्रह है, और इनसे जुड़ीं कहानियां व भक्त जनों का विश्वास समस्त विश्व में विख्यात हैं.  इसी संग्रहण का एक अंश है उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जनपद में स्थित – गोरखनाथ मंदिर. 
हमारे धार्मिक गुरुजनों के अनुसार इस मंदिर का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा हुआ है.  और बढ़ते समय के साथ गोरखनाथ मंदिर के प्रति लोगों की आस्था भी विस्तृत हुई है. वर्तमान में यहाँ के महंत योगी आदित्य नाथ जी हैं. मान्यता है की गोरखनाथ मंदिर के नाम की उत्पत्ति संत गोरक्षनाथ जी के नाम पर हुई थी जिन्हें महादेव का अवतार माना गया है. गोरखपुर में ही गुरु गोरक्षनाथ जी का समाधि स्थल भी है. इतिहास ने संत गोरक्षनाथ जी को मत्स्येन्द्रनाथ जी का मानस पुत्र भी कहा है, यही कारण है की इस मंदिर को नाथ सम्प्रदाय का शाश्वत प्रतीक और शक्ति केंद्र माना जाता है. हिन्दू धर्म में नाथ सम्प्रदाय का एक उच्च और प्रमुख स्थान है, तथा भारत में स्थित नाथ सम्प्रदाय के सभी मंदिरों व मठों का कार्यभार गोरखनाथ मंदिर पर है. गुरु जी द्वारा ज्वलित अखंड ज्योति मंदिर में उसी प्रकार आज भी जल रही है और इसकी भभुति श्रद्धालुओं को प्रमुख प्रसाद के रूप में दी जाती है. 
 भारतीय इतिहास में स्वामी गोरक्षनाथ जी की अपने गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के प्रति गुरु भक्ति अत्यंत प्रसिद्ध है. भक्तजन मंदिर में स्थापित स्वामी गोरक्षनाथ जी की चरण पादुका के दर्शन और पूजा के लिए हर मंगलवार और शनिवार को एकत्रित होते हैं. प्रति वर्ष मकर संक्रांति के पावन अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में एक माह तक चलने वाला भव्य मेला आयोजित किया जाता है, जिसे पूरे विश्व में खिचड़ी मेला के नाम से भी जानते हैं. माना जाता है की संसार में सर्वप्रथम खिचड़ी का भोग गुरु गोरक्षनाथ जी को ही लगाया गया था. इस मेले में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं में भारतियों के साथ समस्त विश्व के पर्यटक भी आते हैं.  
साहित्य तथा लोक कथाओं से यह ज्ञात होता है की स्वामी गोरक्षनाथ जी ने अपने काल में मानव जीवन की सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों में अनेक सुधार किये. स्वामी जी हठयोग आचार्य और अहिंसा विश्वासी थे तथागत उन्होंने अपने भक्तों को योग शिक्षा और  सन्यासी दीक्षा प्रदान की, स्वामी जी ने अपने शिष्यों को धैर्य की शिक्षा दी, जिससे व्यभिचार समाप्त हुआ तथा स्त्रियों के सम्मान में वृद्धि हुई और इन सब बातों का सभी जाति व वर्णों के लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा. मान्यताओं के अनुसार स्वामी जी गौ सेवा भी करते थे, आज भी गोरखनाथ मंदिर की गौशाला में 300-400 गाय हैं. 
चार स्तंभों पर निर्मित इस मंदिर में भीम सरोवर भी स्थित है. कथानुसार भीम यहाँ किसी कारणवश आये थे जिसके पश्चात वे विश्राम के लिए इसी सरोवर के पास रुक गए थे. इसी प्रकार मंदिर के समक्ष शतकों पुराना बरगद का वृक्ष भी है. भक्तिमयता से सुसज्जित यह मंदिर भारत के पड़ोसी देश नेपाल के लिए भी अति महत्वपूर्ण है. 
इतिहासकारों की मानें तो प्राचीन समय में मुग़लों ने कई बार आक्रमण कर मंदिर की दुर्दशा की परन्तु वर्ष 1896 में महंत अवैद्यनाथ तथा महंत दिग्विजय नाथ जी ने गोरखनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया जिसके फलस्वरूप मंदिर परिसर में इन दोनों महंतों के मंदिर भी है. 
आज भी तीर्थयात्री इस मंदिर के प्रति समर्पित अपनी आस्था व भक्ति के लिए मीलों का सफ़र तय कर के प्रत्येक वर्ष आते हैं जिससे उन्हें शांति का आभास होता है, और गुरु गोरक्षनाथ जी की दी हुई शिक्षा व ज्ञान का पालन करते हैं जो सभी के जीवन की अनेक समस्यायों के समाधान में सहायता करती हैं.   

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