इस्कॉन : भटकाव से स्थायित्व की ओर | ISKCON | International Society of Krishna Consciousness

इस्कॉन : भटकाव से स्थायित्व की ओर | ISKCON | International Society of Krishna Consciousness

इस्कॉन जैसे समग्र विश्व इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्ण कॉन्शसनेस या अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मेरे पसंद के नाम से जानता है। वास्तव में जगत कल्याण के उद्देश्य दिया गया। एक अध्यात्मिक संदेश है। इसकी आधारशिला श्री कृष्ण कृपा श्री मूर्ति श्री अभय चरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने 13 जुलाई 1966 को अमेरिका स्थित न्यूयॉर्क सिटी में रखी थी। स्वामी जी श्रीला प्रभुपाद नाम से भी विख्यात है। जब-जब विश्व में भौतिकवाद और धर्म संचयन की अधिकता से शारीरिक सुख की प्राप्ति का प्रयास बढ़ता है तब तक मानसिक अशांति और परमात्मा से दूरी के वातावरण का जन्म होता है और मानव जीवन के मूल सिद्धांतों और आदर्शों से दूर होने लगता है। दिशा विहीन समाज को सत्य पत्र दिखाने की प्रक्रिया सदा से विश्व गुरु भारत से ही प्रचारित और प्रसारित होती रही है। इसी क्रम में परम पूज्य स्वामी श्रीला प्रभुपाद को उनके गुरु भक्ति संदेश सरस्वती गोस्वामी जी ने इस कार्य के लिए प्रेरित और आदेशित किया था। अत्यंत सीमित साधनों और विषम परिस्थितियों में भी स्वामी श्रीला प्रभुपाद ने अपने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य किया और अत्यंत अल्प अवधि में अपने गुरु के महान कार्य को न केवल प्रारंभ किया बल्कि मात्र 10 वर्षों में 107 इस्कॉन मंदिरों का शुभारंभ किया। आज एक संस्था के लगभग 8:30 सौ से अधिक मंदिरों की स्थापना विश्व के अनेक देशों में पूर्ण हो चुकी है। इस संस्था का मूल तत्व हजारों वर्ष पुरानी भगवत गीता पर ही आधारित है तब शौच दया एवं सत्य।जो कि मानव जीवन के मूलभूत सिद्धांत हैं। इन्हीं चार कीर्ति स्तंभ ऊपर इस पावन संदेश की नींव रखी गई है। यही वह प्रेरणा है जिस से प्रेरित होकर विदेशों में भी बड़ी। संख्या में विदेशी महिलाओं को परंपरागत भारतीय परिधानों में चंदन की बिंदी और पुरुषों को धोती कुर्ता और गले में तुलसी माला के साथ हरे रामा हरे कृष्णा के भजन में लीन देखा जा सकता है। इस कौन किए अन्याय सकल विश्व में गीता एवं हिंदू धर्म संस्कृति का प्रचार प्रसार करते हैं। दर्शन कला साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र में इस्कॉन का आज अतुलनीय योगदान है। मानवता को आधार मानकर अपने सर्वसाधारण नियमों और सभी जाति एवं धर्म के प्रति समभाव के कारण इस संस्था के अनुयायियों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। पर वह मनुष्य जो भगवान श्री कृष्ण के संदेशों से प्रभावित होकर उन में लीन होना चाहता है, उसका इस संस्था में स्वागत है।परम पूज्य स्वामी श्रीला प्रभुपाद के शब्दों में थोड़ा समय उसके लिए भी बिजी है जो हर चीज का कारण है और संयोगवश कोई कृष्ण को भूल भी जाए तो कृष्ण उसे कभी नहीं बोलते। कृष्ण ही सभी जीवात्मा ओके परमात्मा है। जैसे-जैसे परमात्मा के लिए भाव और श्रद्धा का प्रवेश हमारे हृदय में होता है, पापों का नाश स्वता होने लगता है। 13 जुलाई 1966 को न्यूयॉर्क से प्रवाहित हुई भक्ति की निर्मल गंगा आज संपूर्ण विश्व में प्रवाहित हो रही है और निश्चित है। आज हरे रामा हरे कृष्णा के पावन भजन से निरंतर गुंजायमान है।

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