झांसी का किला - ऐतिहासिक स्थल और उनसे जुड़ी कहानियां
ये है झांसी का किला। इस विश्व प्रसिद्ध किले का निर्माण वर्ष 1613 मे ओरछा के बुंदेला राजा वीर सिंह जूदेव द्वारा करवाया गया था। यह किला बुंदेल का सबसे शक्तिशाली किला हुआ करता था।
झांसी के किले का इतिहास - Historic places
झांसी के किले का इतिहास काफी महत्वपूर्ण है भारतीय इतिहास में। यह किला झांसी शहर में स्थित है 1700 में मोहम्मद खान बंगेज़ ने महाराजा छत्रसाल पर आक्रमण कर दिया था। इस आक्रमण से महाराजा छत्रसाल को बचाने में पेशवा बाजीराव ने सहायता की थी, जिसके बाद महाराजा छत्रसाल ने उन्हें राज्य का कुछ भाग उपहार में दे दिया था, जिसमें झांसी भी शामिल था। इसके बाद नारो शंकर को झांसी का सूबेदार बना दिया गया। उन्होंने केवल झांसी को ही नहीं विकसित किया बल्कि झांसी के आसपास की दूसरी इमारतों को भी बनवाया। चारों तरफ से ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा यह किला आज भी बड़ी शान से खड़ा है। इसके सभी दरवाजे काफी ऊंचे बनाए गए थे, ताकि अंग्रेज किले में प्रवेश न कर सकें। खास बात यह है कि इसके सभी दरवाजों को अलग-अलग नाम दिए गए हैं। झांसी के किले का इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। एक और खास बात जो इस किले के बारे में सुनने को मिली वो यह कि किला सूर्योदय के साथ खुलता है और सूर्यास्त के बाद बंद कर दिया जाता है।
झांसी के किले का रहस्य
झांसी किला भारत के सबसे भव्य और ऊंचे किलों में से एक माना जाता है। यह किला पहाड़ियों पर बसा हुआ है और इसकी ऊँचाई 285 मीटर है। यह किला उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के अधिकांश भागों में ग्रेनाइट से बना हुआ है। इसका ऐतिहासिक महत्व भी अद्वितीय है, क्योंकि यह भारत के सबसे विशाल ऐतिहासिक किलों में से एक है।
झांसी किला का क्षेत्रफल लगभग 15 एकड़ है और इसकी लंबाई 312 मीटर और चौड़ाई 225 मीटर है। इसमें विशाल घास के मैदान भी शामिल हैं। किले की बाहरी सुरक्षा दीवार भी पूरी तरह से ग्रेनाइट से निर्मित है जो इसे एक बहुत ही मजबूत रखवाली प्रदान करती है। इस दीवार की मोटाई 16 से 20 फीट है और दक्षिण में यह झांसी शहर की दीवारों से भी जुड़ी हुई है।
नारा शंकर के बाद, झांसी में कई सूबेदार बनाए गए थे, जिनमें रघुनाथ भी शामिल थे। उन्होंने महालक्ष्मी मंदिर और रघुनाथ मंदिर का निर्माण भी करवाया था। 1838 में रघुनाथ राव द्वितीय की मृत्यु के बाद, ब्रिटिश शासकों ने गंगाधर राव को झांसी के नए राजा के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने मणिकर्णिका से शादी की, जिसके बाद वे रानी लक्ष्मी बाई के नाम से विख्यात हुए। 1851 में उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया, लेकिन वह बच्चा चार महीने में ही निधन हो गया।
इसके बाद उन्होंने अपने भाई के पुत्र दामोदर राव को गोद लिया, और उसका नाम बदलकर दामोदर राव रख दिया। 1857 में गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने दामोदर राव को सिंहासन सौंपने से मना कर दिया। विद्रोह के दौरान, रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी को ब्रिटिश सेना के खिलाफ नेतृत्व किया और शहीद हो गई।
रानी लक्ष्मीबाई का किला(Rani Laxmi bai Fort): वीरता का प्रतीक
ब्रिटिश सरकार ने 1861 में झांसी के किले और शहर को जयाजीराव सिंधिया को सौंप दिया, लेकिन 1868 में ग्वालियर राज्य से झांसी को वापस ले लिया गया। झांसी का किला 1613 में ओरछा साम्राज्य के राजा वीर सिंह जी द्वारा बनवाया गया था। यह किला भारत का सबसे बड़ा और ऊंचा किला है, जिसकी दीवारें ग्रेनाइट से बनी हैं। इसका वर्तमान में उपयोग एक पुरातात्विक संग्रहालय के रूप में हो रहा है।
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