Kaal Bhairav | Kaal Bhairav Rahasya | कौन है उज्जैन नगरी का कोतवाल?

अकाल मृत्यु से रक्षा करने वाले भगवान महाकाल की नगरी है उज्जैन। महाकाल की इस नगरी की रक्षा के लिए स्वयं महादेव ने काल भैरव को तैनात किया है। मोक्षदायिनी क्षिप्रा कही जाने वाली क्षिप्रा नदी के किनारे काल भैरव का मंदिर ओखलेश्वर जाग्रत शमशान के समीप भैरव पर्वत नामक स्थान पर स्थित है।
शास्त्रों के अनुसार भगवान काल भैरव का अवतरण मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। इस दिन मध्याह्न में भगवान शिवशंकर के अंश से काल भैरब उत्पत्ति हुई थी जिन्हें शिव का पांचवा अवतार माना गया है। 
ऐसी मान्यताएं हैं कि एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ था. जिसे सुलझाने के लिए तीनों लोकों को देव ऋषि मुनि के पास पहुंचे. ऋषि मुनि विचार-विमर्श कर बताया कि भगवान शिव ही सबसे श्रेष्ठ हैं. ये बात सुनकर ब्रह्मा रुष्ट हो गए और उन्होंने महादेव के सम्मान को ठेस पहुंचाना प्रारंभ कर दिया. ये देखकर शिवजी क्रोध में आ गए. भोलेनाथ का ऐसा स्वरूप देखकर समस्त देवी-देवता घबरा गए. कहा जाता है कि शिव के इसी क्रोध से कालभैरव का जन्म हुआ था. 
महादेव के रूद्र रूप कालभैरव को तंत्र का देवता माना गया है,इसलिए तंत्र-मंत्र की साधना निर्विघ्न संपन्न करने के लिए सबसे पहले काल भैरव की पूजा की जाती है। कालभैरव शत्रुओं और संकट से भक्तों की रक्षा करते हैं।

उज्जैन के काल भैरव मंदिर का इतिहास लगभग 6000 साल पुराना माना जाता है। कहा जाता है की काल भैरव मंदिर को लगभग 1000 साल पहले परमार राजाओं द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। इस निर्माण कार्य के लिए केवल मंदिर की पुरानी सामग्री का उपयोग किया गया था। 

भैरव का शाब्दिक अर्थ होता है भयानक। भैरव अर्थात भय से रक्षा करने वाला। भैरव को दंडपाणी भी कहा जाता है दण्डपाणी का अर्थ है पापियों को दंड देने वाले इसीलिए काल भैरव का अस्त्र डंडा और त्रिशूल है। भैरव का वाहन श्वान है इसलिए उन्हें स्वासवा भी कहा जाता है।

उज्जैन स्थित काल भैरव के इस मंदिर में मुख्य रूप से मदिरा का ही प्रसाद चढ़ता है। मंदिर के पुजारी भक्तों के द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद को एक प्याले में उढ़ेल कर भगवान काल भैरव के मुख से लगा देते हैं और देखते ही देखते भक्तों की आंखों के सामने ये प्रसाद भगवान भैरोनाथ पी जाते हैं। 

मंदिर में भगवान कालभैरव की प्रतिमा सिंधिया पगड़ी पहने हुए दिखाई देती है। यह पगड़ी भगवान ग्वालियर के सिंधिया परिवार की ओर से आती है। यह प्रथा सैकड़ों सालों से चली आ रही है।
इस संबंध में मान्यता है कि लगभग 400 वर्ष पूर्व सिंधिया घराने के राजा महादजी सिंधिया शत्रु राजाओं से बुरी तरह पराजित हो गए थे। उस समय जब वे कालभैरव मंदिर में पहुंचे तो उनकी पगड़ी यहीं गिर गई थी। तब महादजी सिंधिया ने अपनी पगड़ी भगवान कालभैरव को अर्पित कर दी और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान से प्रार्थना की।
इसके बाद राजा ने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और लंबे समय तक कुशल शासन किया। भगवान कालभैरव के आशीर्वाद से उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी कोई युद्ध नहीं हारा। इसी प्रसंग के बाद से आज भी ग्वालियर के राजघराने से ही कालभैरव के लिए पगड़ी आती है।

स्कंद पुराण में इसी श्री कालभैरव मंदिर का अवंतिका खंड में वर्णन मिलता है। यह क्षेत्र भैरवगढ़ कहलाता है। राजा भद्रसेन द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। उसके बाद राजा जयसिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। इस मंदिर के प्रांगण में स्थित एक संकरी और गहरी गुफा में पाताल भैरवी का मंदिर है। यह स्थान तांत्रिक साधना का एक महत्वपूर्ण स्थल है।

महाकाल की नगरी होने से भगवान काल भैरव को उज्जैन नगर का सेनापति तथा शहर का कोतवाल कहा जाता है। अगर कोई उज्जैन आकर महाकाल के दर्शन करे और कालभैरव न आए तो ऐसा मानते है कि उसे महाकाल के दर्शन का आधा ही लाभ मिलता है। इसलिए महाकाल के दर्शन के पश्चात बाबा काल भैरव का आशीर्वाद लेना भी अति आवश्यक है।
भारत समन्वय परिवार हिन्दू धर्म के पावन व अद्भुत प्रतीकों को सादर प्रणाम करता है. 
ऐसी ही अन्य महत्वपूर्ण व धार्मिक जानकारियों के लिए subscribe करें भारत माता चैनल