मीनाक्षी अम्मन मंदिर, मदुरै |Meenakshi Amman Temple, Madurai
पौराणिक काल से ही धर्म ने मानव को सत्य की राह पर ले जाने और मानव का मार्ग दर्शन करने का कार्य किया है।
भारत में कई हजारों छोटे बड़े मंदिर है , जो की सनातन धर्म में भगवान के प्रति मानव की श्रद्धा और आस्था को दर्शाते है। इतना ही नहीं , जीवन में आने वाली कठिनाइयों से लड़ने के लिए हमारी मानसिक शक्ति को प्रेरित करने की ऊर्जा भी हमें मंदिरों से प्राप्त होती है। इसी लिए तो विश्व के सबसे विशाल और बड़े 17 मंदिर भी भारत में स्थित है। जिसमें से अधिकांश मंदिर दक्षिण भारत में है।
दक्षिण भारत के प्राचीन व विशाल मंदिरों में से एक मंदिर ,जो तमिलनाडु राज्य के , मदुरई नगर में मीनाक्षी सुंदरेश्वर या मीनाक्षी अम्मां मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर पांड्य काल के शासन के दौरान बनाया गया मंदिर है जो की मदुरई शहर के केंद्र में स्थित है। इस मंदिर के चारों और कमल की आकृति में मदुरई शहर बसा है। यह मंदिर राजयश्री वाश्तु कला , जटिल नक्काशी , सुन्दर पेंट , उत्कृष्ट मूर्तियों का एक सुनहरा उदाहरण है। और मंदिर से जुड़ा प्राचीन महत्वपूर्ण पौराणिक तथ्य इस मंदिर को दक्षिण भारत में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले मंदिरों की श्रेणी में लेकर आता है।
यह मंदिर 2500 वर्ष पुराना है। मदुरई शहर को शिवलिंग के चारों ओर स्थापित किया गया है। पांच प्रवेश द्वार वाला यह विशाल मंदिर परिसर 17 एकड़ तक फैला है जिसमें 4500 खंभे तथा 14 टॉवर व पवित्र जल कुंड उपस्थित है।
मीनाक्षी अम्मां या मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर का महान पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। ये माना जाता है कि भगवान शिव ने सुंदरेश्वर रूप में मीनाक्षी रूप में अवतरित, माता पार्वती से विवाह किया था,और जिस स्थान पर उन्होंने विवाह किया वर्तमान में वहां पर मंदिर स्थित है। ये मंदिर दक्षिण भारत के मुख्य आकर्षणों में से एक है जहां हर दिन हजारों भक्त इसका दर्शन करने दूर दूर से आते है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पाण्ड्य राजा मलय – ध्वज के पूर्व जन्म में किये घोर तप के परिणामस्वरूप माँ पार्वती को पुत्री के रूप में पाया था।
राजा मलय ध्वज व रानी कंचनमलायी की कोई संतान न थी। इसलिए राजा ने भगवान शिव से उन्हें पुत्र प्राप्त करने की कामना की। जिसके बाद एक यज्ञ के पुण्य स्वरूप राजा को कन्या प्राप्ति हुई जो की शारीरिक रूप से असामान्य थी। कन्या की इस असामान्य स्थिति पर राजा और उनकी पत्नी ने अपनी चिंता व्यक्त की, तो भगवान शिव ने स्वयं राजा के सपने में आ कर उन्हें लड़की की शारीरिक स्थिति पर ध्यान न देने का आदेश दिया। और कहा जब कन्या अपने भावी पति से मिलेगी तो स्वयं सामान्य हो जायेगी। कन्या की बड़ी और सुन्दर आँखों की वजह से राजा ने उसका नाम मीनाक्षी रखा और कुछ ही समय ने उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
मीनाक्षी ने प्राचीन शहर मदुरई पर शासन किया और पड़ोसी राज्यों को भी अपने अधीन कर लिया। कहा जाता है की मीनाक्षी ने इंद्र लोक को भी अपने अधीन किया। जिसके बाद वह भगवान शिव के निवास स्थान को भी अपने अधीन करने कैलाश पहुंची। जब भगवान शिव उनके सामने आये तो मीनाक्षी की शारीरिक स्थिति सामान्य हो गयी। जिसके बाद उन्हें यह ज्ञात हो गया की शिव ही उनके पति है और वह दोनों मदुरई लौट आये।
मदुरई आकर भगवान शिव और मीनाक्षी का विवाह हुआ इस विवाह ने सभी देवी देवता आये क्योंकि माता पार्वती ने ही मीनाक्षी रूप में भगवान शिव से विवाह किया था। और स्वयं भगवान विष्णु ने माता पार्वती का कन्यादान किया था। आज भी इस शादी समारोह को हर साल चिथिरायी के रूप में मनाया जाता है जिसे तिरु कल्याणम या भव्य विवाह के रूप में भी जाना जाता है। यह त्यौहार मदुरई में अप्रैल के महीने में बड़े पैमाने में मनाया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार भगवान इंद्र ने कदम वन में पवित्र सव्यंग लिंग की खोज की थी। भगवान शिव के लिंग की खोज करने के बाद उन्होंने इस लिंग को मंदिर में स्थापित किया। मंदिर परिसर में दो प्रमुख गर्भग्रह स्थित है जिसमे से एक मीनाक्षी जिससे देवी पार्वती की अभिव्यक्ति तथा दूसरी भगवान शिव को समर्पित है।
भारत समन्वय परिवार का प्रयास है कि सनातन आस्था के केंद्र, अपने प्राचीन मंदिरों की भव्यता और पौराणिक मान्यताओं को जन मानस तक प्रेषित करें और इस सांस्कृतिक विरासत के प्रति प्रेम और श्रद्धा भाव को चिर स्थायी बनाये।