दुनिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालय को क्यों जलाया? इतिहास और पुनरुद्धार - नालंदा विश्वविद्यालय
विश्व गुरु के नाम से जाना जाने वाला भारत, प्राचीन काल से ही अपने आध्यात्मिक ज्ञान व वेदिक शिक्षा प्रणाली के कारण विश्व में प्रसिद्ध है। प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व को संपूर्णता प्रदान करना था, साथ ही उस समय गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत एवं प्रगति का मूल आधार भी शिक्षा ही थी। भारत प्राचीन काल से ही शिक्षा का विश्व प्रसिद्ध केंद्र रहा है।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास:
भारत में समुचित विकास व मानव कल्याण के लिए प्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों में तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशीला विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी थी। जिसमें नालन्दा विश्वविद्यालय को दूसरे प्राचीनतम व पहले सबसे बड़े विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त था । प्राचीन काल में शिक्षा के इस केंद्र की ख्याति संसार में फैली हुई थी। जहाँ निः शुल्क रहने, खाने और शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था उपलब्ध थी। इस विश्व विद्यालय के खर्च का वहन शासकों द्वारा दिए गए अनुदान से चलाया जाता था।
पांचवीं और छठी शताब्दी में गुप्त साम्राज्य द्वारा निर्मित नालंदा विश्व विद्यालय एक प्रशंसित महाविहार था जो न केवल भारत में, अपितु पुरे विश्व में अपनी शिक्षा व विशाल संरचना के लिए जाना जाता था। यह विश्वविद्यालय बिहार शरीफ शहर के पास पटना के लगभग 95 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में स्थित है।
इस विश्वविद्यालय में चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान, इंडोनेशिया आदि देश विदेश से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे, प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की थी।
एक मुख्य प्रवेश द्वार के साथ नालंदा विश्वविद्यालय विशाल चार दीवारी से घिरा हुआ था, इसके परिसर में मठों की कतार थी जिसके सामने अनेक सुंदर मंदिर स्थित थे। इस विशाल विश्व विद्यालय में करीब 300 कमरे और 7 बड़े हॉल मौजूद थे साथ ही विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए यहाँ तीन पुस्तकालय थे जिसमें सबसे विशाल 9 मंजिला पुस्तकालय था। इनके नाम 'रत्नरंजक', 'रत्नोदधि', और 'रत्नसागर' थे। विश्वविद्यालय के परिसर के मंदिरों में भगवान बुद्ध की सुंदर कलात्मक मूर्तियां भी स्थापित थीं। इन मूर्तियों और दीवारों के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। नालन्दा विश्व विद्यालय में छात्रों को नामांकन के लिए कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ता था। पूरी तरह से आवासीय इस विश्व विद्यालय में 10000 से ज्यादा छात्रों के एक साथ अध्ययन करने की व्यवस्था थी, तथा विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए लगभग 2000 अध्यापक भी नियुक्त थे।
नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण (Bakhtiyar Khilji का नालंदा यूनिवर्सिटी पर आक्रमण):
कहा जाता है नालंदा विश्व विद्यालय पर कुल तीन आक्रमण हुए थे, परन्तु बख्तियार ख़िलजी द्वारा किए गए आक्रमण ने विश्वविद्यालय को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया।
एक ऐतिहासिक कथा के अनुसार नालंदा विश्व विद्यालय के विनाश का कारण तब से आरंभ हुआ जब एक बार बख्तियार ख़िलजी बहुत बीमार पड़ गया, अनेकों हकीमों द्वारा उपचार करवाने पर भी कोई फायदा नहीं हुआ। उसी दौरान उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग की ख्याति के विषय में पता चला। तब ख़िलजी को विश्व विद्यालय के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से उपचार कराने की सलाह दी गई। ख़िलजी ने आचार्य को इलाज के लिए बुलाया और आचार्य के सामने एक शर्त रख दी। खिलजी ने कहा- बिना किसी आयुर्वेदिक दवा का सेवन किए उसके स्वास्थ्य को ठीक करना पड़ेगा और अगर वे ठीक नहीं कर पाए तो उन्हें मौत के घाट उतार दिया जायेगा । आचार्य द्वारा ख़िलजी की यह शर्त मंजूर कर ली गयी। कुछ दिनों बाद आचार्य, ख़िलजी के पास पहुंचे व उसे पवित्र कुरान उपहार स्वरूप भेंट में दी, आचार्य ने खिलजी को कुरान रोज़ाना पढ़ने का आदेश दिया। देखते ही देखते कुछ दिनों बाद ख़िलजी पूरी तरह स्वस्थ हो गया, किन्तु उसे समझ नहीं आया की वह बिना औषधि ग्रहण किये कैसे स्वस्थ हो गया। उसने आचार्य राहुल को पुनः बुलाया और पूछा, तब आचार्य ने कहा मैंने जो पवित्र कुरान तुम्हें पढ़ने के लिए दी थी वही औषधि थी, मैंने पुस्तक के पन्नो में औषधि लगी, जिसके पन्नों को तुमने अपने हाथों से पलटा, पन्ने पलटते समय तुम्हारा हाथ कई बार मुँह में भी गया होगा, इसी क्रम में कुरान में लगी दवा का अंश तुम्हारे शरीर में चला गया और तुम स्वस्थ हो गए।
Ruins of Nalanda University
स्वस्थ होने पर ख़िलजी खुश होने के बजाए क्रोधित हुआ। उसे हकीमों से बढ़कर इन भारतीय वैद्यों का ज्ञान श्रेष्ठ होना हजम नहीं हो रहा था। जिस कारण उसने भारत के प्राचीन ज्ञान को मिटाने का निश्चय किया, और उसने बौद्ध धर्म व आयुर्वेद का एहसान मानने के बजाय 1199 में नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला किया व विश्वविद्यालय को ध्वस्त कर पुस्तकालय में आग लगवा दी। कहा जाता है वहां इतनी पुस्तकें थीं कि आग में 03 महीनों तक पुस्तकें जलती रहीं साथ ही उसने हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु को भी जान से मार डाला।
नालंदा एक नाम नहीं पहचान: पुनरुद्धार - नालंदा विश्वविद्यालय
इस प्राचीन विश्वविद्यालय के खंडहर और अवशेष देखने से कई अहम बातों का पता चलता है कि कैसे तुर्क आक्रमणकारी ने इस विश्वविद्यालय के साथ भारतवर्ष के गौरवशाली इतिहास को मिटाने के लिए इसे आग के हवाले कर दिया। प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय का खंडहर सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत के गौरवपूर्ण अतीत की याद दिलाता है।
हाल ही मे ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन हुआ। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने बुधवार, 19 जून को नए परिसर का उद्घाटन किया। Nalanda University New Campus बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित है। उद्घाटन के अवसर पर प्रधान मंत्री जी ने कहा की “नालंदा केवल नाम नहीं है, नालंदा एक पहचान है, एक सम्मान है...| नालंदा एक मूल्य है, मंत्र है, गौरव है, गाथा है। नालंदा इस सत्य का उद्घोष है की आग की लपटों मे पुस्तकें भले जल जाएँ, लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकती।
भारत समन्वय परिवार का प्रयास है कि भारत द्वारा स्थापित आदर्श शिक्षा प्रणाली के रूप में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नालंदा विश्व विद्यालय से सम्बंधित ज्ञान को जन जन तक प्रेषित किया जाए, आज भी यह गौरवशाली परम्परा सामायिक है।
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