गंगोत्री धाम: गंगा नदी का पावन उद्गम स्थल | भारत माता

देवी सुरेश्वरी भगवती गंगे त्रिभुवनतारिणी द्रवतरङ्गे ।
शंकरमौलिविहारिनि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥1॥ 

यह सब नाम हमें एक अद्वितीय स्थान की ओर ले जाते हैं, वह स्थान जो हर भारतीय के दिल में बसा हुआ है। यह भूमि उत्तराखंड के रूप में जानी जाती है, जो हरि द्वारा रचित ऊंची पहाड़ियों से घिरी हुई है और इसे 'देवभूमि' के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड के अद्भुत तीर्थस्थलों में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसी पवित्र भूमि शामिल हैं। इन सभी स्थल भारत के धार्मिक धरोहर के रूप में हमें दिव्यता का एहसास कराते हैं। गंगोत्री, जो देवभूमि उत्तराखंड के नाम को सिद्ध करता है, एक ऐसा धाम है जो उत्तरकाशी जिले में स्थित है और यह विशेष रूप से तीर्थयात्रियों के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है।

गंगोत्री धाम: गंगा नदी का उद्गम स्थल

गंगोत्री धाम को गंगा नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। यह भागीरथी नदी के किनारे पर स्थित है, जो यहाँ से निकलकर पूरे भारत को पवित्र करती है। हर साल, मई से अक्टूबर तक, दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु गंगा माता के दर्शन करने यहाँ आते हैं। गंगा देवी को हिंदू धर्म में सबसे पूजनीय नदी के रूप में पूजा जाता है, और उनका उद्गम स्थल गंगोत्री शहर से लगभग 18 किलोमीटर दूर गंगोत्री हिमनद ग्लेशियर में स्थित गोमुख है।

गंगा अवतरण की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी गंगा राजा भागीरथ के पूर्वजों के पापों को धोने के लिए धरती पर अवतार लेने आई थीं। राजा भागीरथ ने अनेक वर्षों तक कठिन तपस्या की ताकि उनके पूर्वजों के लिए मोक्ष प्राप्त हो सके। गंगा के धरती पर आने के लिए भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की, ताकि गंगा के वेग को वह संभाल सकें। भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को समाहित कर लिया, जिससे वह शांत रूप से धरती पर प्रवाहित हुईं और राजा भागीरथ के पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हुआ।

गंगोत्री धाम का ऐतिहासिक महत्व

इसी कारण गंगा को 'भागीरथी' के नाम से भी जाना जाता है। जैसे-जैसे गंगा का जल देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलता है, गंगा का स्वरूप और पवित्रता और भी गहरा हो जाता है। एक मान्यता है कि पांडवों ने महाभारत युद्ध के दौरान अपने मारे गए परिजनों की आत्मा की शांति के लिए इस स्थान पर आकर एक महायज्ञ किया था।

18वीं सदी में गढ़वाल के सेनापति अमर सिंह थापा ने गंगोत्री मंदिर का निर्माण कराया था, और बाद में जयपुर के राजा माधव सिंह द्वितीय ने 20वीं सदी में इसकी मरम्मत भी करवाई। मंदिर के पास एक प्राकृतिक शिवलिंग है, जो भागीरथी नदी में डूबा हुआ है। यह शिवलिंग अपने आप में एक अद्वितीय और आकर्षक दृश्य प्रस्तुत करता है, जो श्रद्धालुओं को दिव्य शक्ति का अनुभव कराता है।

गंगोत्री से लगभग 10 किलोमीटर नीचे जाट गंगा (जिसे जानवी नदी भी कहा जाता है) भागीरथी में मिल जाती है, और इस स्थान पर भैरवनाथ का मंदिर है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने भैरवनाथ को इस क्षेत्र का रक्षक नियुक्त किया था। यहाँ आने से भक्तों को पुण्य की प्राप्ति होती है, और यह यात्रा उनके जीवन में शुभ परिणाम लाती है।

गंगोत्री धाम की यात्रा

गंगोत्री धाम के आस-पास कई अन्य धार्मिक स्थल भी हैं, जिनमें मुखड़ा गांव, भैरों घाटी, हर्षिल, नंदनवन, तपोवन, चिर्वासा और केदार लाल प्रमुख हैं। गंगोत्री धाम, बद्रीनाथ, केदारनाथ और यमुनोत्री के साथ मिलकर गंगा नदी के समर्पित कर धाम यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

हर साल दिवाली के दिन, मंदिर के पुजारी तेल के दीपक लेकर मंदिर के कपाट बंद करते हैं, और नवंबर से अप्रैल तक यह मंदिर बंद रहता है। गंगोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के दिन भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं। गंगोत्री की यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक परिवर्तन का भी कारण बनती है।

इस प्रकार, गंगोत्री धाम और उसके आसपास के धार्मिक स्थल भारत की धार्मिक समृद्धि और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाते हैं। यहाँ की यात्रा करने से एक व्यक्ति को शांति, पुण्य और आंतरिक दिव्यता का अनुभव होता है।