Gangotri Dham | Origin of Ganga | भारतीय धरोहर का प्रतीक

देवि सुरेश्िरर भगिति गङ्गे
विभुिनिाररणि िरलिरङ्गे ।
शङ्करमौणलविहाररणि विमले
मम मतिरास्तां िि पदकमले ॥


वहमालय की गोद में बसा छोटा सा राज्य उत्तराखंड। हरी भरी ऊंची पहाव़ियों से तिरा यह राज्य देिभूवम
कहलािा है। केदार नाथ, बद्रीनाथ , गंगोिी और यमुनोिी यह चार धाम देिभूवम उत्तराखंड के नाम को ससद्ध
करिे है। इन्ही चार धाम में से एक धाम गंगोिी उत्तरकाशी सिले में बसा एक लोकविय िीथथस्थल है।
गंगोिी को गंगा नदी का उद्गम स् थल कहा िािा है। यह भागीरथी नदी के िट पर बसा हु आ है। हर साल मई
से अक्टूबर के महीनो के बीच देश के कोने-कोने से गंगा मािा के दशथन करने के णलए हिारों की संख्या
िीथथयािी यहां आिे है।
गंगा देिी वहन्दुओं की सबसे पूिनीय नवदयों में से एक हैं। इनका उद्गम स् थान गंगोिी शहर से लगभग 18
वकलोमीटर दू र गंगोिी वहमनद ग् लेसशयर में सस्थि गोमुख है। पौराणिक कथाओं के अनुसार देिी गंगा रािा
भगीरथ के पूिथिों के पापों को धोने के णलए धरिी पर आईं थीं।
धरिी लोक पर रािा भागीरथ ने कई िर्षों की कविन िपस्या वक िावक उसके मृि पूिथिों को मोक्ष िाप्त हो
िाए। गंगा धरिी पर बह कर उनके पूिथिो की असस्थयों को स्प शथ कर ले िावक िे मोक्षपद को िाप्त हो सके।
इस कायथ के णलए भागीरथ ने श्र ीमुख पिथि पर िोर िपस्या की और ब्रह्म ा के कमंडल में रहने िाली गंगा को
धरिी पर आने के णलए रािी कर णलया। लेवकन अब सिाल यह था वक गंगा िब धरिी पर आएगी िो
उसके िचंड िेग को कौन संभालेगा.। इस कायथ को करने के णलए भागीरथ ने सशि िी की िपस्या की। गंगा
िब िकट हु ई िो भगिान सशि ने उन्हें अपनी िटाओं में संभाल णलया।
िटा से गंगा शांि रू प में धरिी पर वनकलीं और उनके िल से भीग कर भागीरथ के पूिथि मोक्ष िाप्त कर स्व
गथ लोक को चले गए। भागीरथ के इन ियासों के कारि गौमुख से वनकलिी हु ई गंगा को भागीरथी के
नाम से भी िाना िािा है। थो़िी दू र बहने के बाद िब िे देिियाग में अलकनंदा नदी से वमल िािी हैं िो िे
गंगा कहलािी हैं।
ऐसी मान्यिा है वक पांडिों ने भी महाभारि के युद्ध के दौरान मारे गए अपने पररिनों की आत्म की शांति के
णलए इसी स् थान पर आकर एक महान देि यज्ञ का अनुष्ठान वकया था।
गढ़िाल के गुरखा सेनापति अमर ससंह थापा ने 18िीं सदी में गंगोिी मंवदर का वनमाि सेमिाल पुिाररयों
केेेेे वनिेदन पर उसी िगह कराया िहां भागीरथ ने िप वकया था। माना िािा है वक ियपुर के रािा माधो
ससंह वििीय ने 20िीं सदी में मंवदर की मरम्मि करिायी। इस मवन्दर के पास सशिललंग के रू प में एक
िाकृतिक चट्टान भागीरथी नदी में डूबी हु ई है। यह नजारा बेहद खूबसूरि और आकर्षथक होिा है।
िाकृतिक रू प से वनर्मथि सशिललंग के दशथन से वदव्य शवि का ित्यक्ष अनुभि होिा है। गंगोिी मंवदर के पास
शाम के समय िब गंगा का िलस्तर कम हो िािा है उस समय गंगोिी नदी में डूबे हु ए पविि सशिललंग के
दशथन होिे हैं। गंगोिी मंवदर की कथा के अनुसार भगिान सशि ने अपनी िटाओं को फैलाया था और इसी स्
थान पर विरािमान होकर अपने िुंिराले बालों में मां गंगा को लपेट णलया था।
गंगोिी धाम से लगभग 10 वकलोमीटर नीचे, िहाँ िाध गंगा सिसे िाह्निी नदी भी कहा िािा है , भागीरथी में
विलीन हो िािी है उस स् थान पर भैरों नाथ का मंवदर है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भैरों नाथ को भगिान सशि ने इस क्षे ि के रक्षक के रू प में चुना था। और यह
भी मान्यिा है वक गंगोिी मंवदर की हर यािा के बाद भैरों के मंवदर के दशथन करने पर भी पुण्य लाभ वमलिा हैं।
भैरों िाटी से लगभग 3 वकमी की दू री पर चलकर लंका चट्टी पहुुँचिे हैं िहाँ इस क्षे ि का सबसे ऊुँचा नदी पुल
सस्थि है; िाह्निी नदी पर बना यह पुल अपने आप में एक अद्भुि दृश् य है।
गंगोिी मंवदर सूयथ की िरह चमकिा है। मंवदर छह महीने िक खुला रहिा है और सर्दथयों के अंि में भारी
बफथबारी के दौरान बंद कर वदया िािा है।
गंगोिी के आसपास के कई अन्य धार्मथक स् थल हैं। इनमें मुखबा गांि , भैरों िाटी, हर्र्षथल , नंदनिन िपोिन,
गंगोिी तचरबासा और केदारिाल िमुख हैं।
बद्रीनाथ , केदारनाथ और यमुनोिी के साथ गंगा नदी को समर्पथि यह मंवदर चारधाम यािा का एक िमुख
वहस्सा है। वदिाली के वदन मंवदर के पुिारी िेल के दीपक िलाकर मंवदर के कपाट को बंद करिे है । निंबर से
अिैल िक सर्दथयों के मौसम के दौरान मंवदर बंद रहिा है। गंगोिी मंवदर के कपाट अक्षय िृिीया के शुभ
अिसर पर भिो के णलए खोल डाइट िािे है।
अिैल से िून और ससिम्बर -अक्टूबर गंगोिी िाने के णलए अच्छा समय है। बाक़ी समय में िण्ड और बाररश
के कारि यहाँ िाना और थो़िा सा मुसश्क़ल हो िािा है।
गंगोिी धाम की यािा धार्मथक विशेर्षिा के साथ-साथ आध्यातत्मक पररििथन भी लािी है।