पुष्कर मंदिर: प्रसिद्ध मंदिर - Bharat Mata

भारत के धार्मिक स्थलों में से एक प्रसिद्ध मंदिर पुष्कर मंदिर हैं| सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की जगह खली और ऋषि की तपस्या स्थली तीर्थ गुरु पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है। यहां प्रतिवर्ष विश्व विख्यात कार्तिक मेला लगता है। सर्वधर्म समभाव की नगरी अजमेर से उत्तर-पश्चिम में करीब 11 किलोमीटर दूर पुष्कर में अगस्त्य रामदेव, जमदग्नि, भर्तहरि इत्यादि रिसीव के तपस्या स्थल के रूप में उनके गुफाएं आज भी नाक पहाड़ में स्थित है।

Pushkar Brahma Temple History in Hindi

ब्रह्मा जी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा सी तक यज्ञ किया था जिस की स्मृति में अनादिकाल से यहां कार्तिक मेला लगता रहा है। पुष्कर के मुख्य बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्मा जी का मंदिर बना हुआ है आदि शंकराचार्य ने संबद्ध 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। मंदिर। वर्तमान स्वरूप गोकुल चंद पारेख ने 18 सो 9 ईस्वी में बनवाया था। यह मंदिर विश्व में ब्रह्मा जी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पीछे रत्नागिरी पहाड़ पर जमीन तल से 2369 फुट की ऊंचाई पर ब्रह्मा जी के प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है। यज्ञ में शामिल नहीं किए जाने से कुपित होकर सावित्री ने केवल पुष्कर में ब्रह्मा जी की पूजा किए जाने का श्राप दे दिया था। तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्म शास्त्रों में 5 तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर कुरुक्षेत्र गया हरिद्वार और प्रयास को पंचतीर्थ कहा गया है और चंद्राकार आकृति में बनी पवित्र और पौराणिक पुष्कर झील, धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है।

पुष्कर मंदिर : Brahma Temple Pushkar Lake

झील की उत्पत्ति के बारे में किवदंती है। ब्रह्मा जी के हाथ में यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ था जिससे इस झील का उद्भव हुआ। यह मान्यता भी है कि झील में डुबकी लगाने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। झील के चारों ओर 52 घाट वह अनेक मंदिर बने हुए हैं। इनमें गऊघाट वराह घाट ब्रह्म घाट जयपुर घाट प्रमुख है। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत दुर्लभ और अद्भुत नजर आता है। महाभारत के 1 पद के अनुसार योगिराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने भी पुष्कर में विश्राम किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का स्वाद पुष्कर में ही संपूर्ण किया था। पुष्कर के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सभी धर्मों के देवी देवताओं का। यहां आगमन होता रहा है।

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