रामेश्वरम | जहाँ है 22 कुंड का रहस्य जिन्हें प्रभु श्री राम ने अपने बाणों से बनाया | Rameshwaram

रामेश्वरम मंदिर की लंबाई एक हजार फीट और चौड़ाई 650 फीट है। मंदिर परिसर में कुल 22 कुंड हैं ऐसा माना जाता है कि इन सभी कुंडों का निर्माण भगवान राम ने स्वयं अपने अमोघ बाणों से किया था। इसके अलावा रामेश्वरम धाम में स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर, गंधमादन पर्वत, लक्ष्मण तीर्थम, थिरुप्पुल्लामी मंदिर, एकांत राम और धनुष्कोडी जैसे मंदिरों अपने आप में प्रसिद्ध हैं। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के पहले और मुख्य तीर्थ अग्नि तीर्थम में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। उत्तर भारत में जो महत्व काशी का है दक्षिण भारत में वही महत्व रामेश्वरम को दिया जाता है। एक मान्यता के अनुसार रामेश्वरम तीर्थ में शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। रामेश्वरम धाम हिंदुओं की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। हर साल लाखों की संख्या में भक्त यहां भगवान के दर्शन के लिए आते हैं।

हिन्दू धर्म में आदिकाल से ही तीर्थों का एक विशेष महत्व रहा है। तीर्थ का अर्थ एक ऐसी जगह जो अत्यंत पवित्र हो और पौराणिक महत्व रखती हो। ठीक ऐसी ही एक जगह हिंदुओं का पवित्र तीर्थ रामेश्वरम भी है। रामेश्वरम तीर्थ देश के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के रामनाथपुरम में स्थित है, चार धाम यात्रा और भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के कारण रामेश्वरम का महत्व और बढ़ जाता है। शंख के आकार वाला रामेश्वरम चारों ओर से हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। तमिल साहित्य की सर्वश्रेष्ठ रचना कंब रामायण में इस तीर्थ से जुड़ी एक कथा का उल्लेख भी मिलता है। 

महर्षि कंबन द्वारा रचित कंब रामायण में वर्णित एक कथा के अनुसार भगवान राम लंका पर चढ़ाई करने के लिए जब समुद्र के किनारे पहुंचे तो उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से एक शिवलिंग की स्थापना और यज्ञ करने का निश्चय किया। यज्ञ की पूर्ति के लिए किसी योग्य आचार्य का होना आवश्यक था, ऐसे में किसी ने भगवान राम को सुझाव दिया कि रावण एक प्रकांड पंडित होने के साथ साथ शिवजी का परम भक्त भी है, इसलिए यदि रावण इस यज्ञ के लिए आचार्य पद स्वीकार कर ले तो आपका मनोरथ अवश्य ही सिद्ध होगा। भगवान राम ने जामवंत के माध्यम से रावण के पास आचार्य पद स्वीकार करने का प्रस्ताव भिजवा दिया। जब रावण को इस बात का पता चला कि राम लंका पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से यज्ञ करने जा रहे हैं और इस यज्ञ के लिए रावण को आचार्य बनाना चाहते हैं, तो वह राम की बुद्धिमता का कायल हो गया। रावण ने मन ही मन कहा कि वाह राम वाह ये जानते हुए कि भगवान शिव की पूजा में आचार्य बनने से रावण कभी मना नहीं करेगा, तुमने मुझे आचार्य पद ग्रहण करने का प्रस्ताव दे दिया। तनिक देर विचार करने के बाद रावण ने जामवंत से कहा कि राम से जाकर कहना कि रावण ने आचार्य पद स्वीकार कर लिया है और वह माता सीता को लेकर यज्ञ के लिए पहुंच जाएगा। अपने वचनानुसार रावण यज्ञ के लिए माता सीता को साथ लेकर आचार्य बनकर पहुंच गया। रामजी के कहने पर हनुमान जी को कैलाश से शिवलिंग लाने के लिए चले गए। जब काफी देर होने पर भी हनुमान जी नहीं लौटे तब माता सीता ने स्वयं अपने हाथों से मिट्टी के एक शिवलिंग का निर्माण किया और विधिपूर्वक उसका पूजन किया गया। इस प्रकार रावण के आचार्यत्व में यज्ञ सम्पन्न हुआ। यज्ञ सम्पूर्ण होने पर भगवान राम और माता सीता ने आचार्य रावण को अत्यंत नम्रता के साथ प्रणाम किया और आचार्य रावण ने भी भगवान राम को विजयी होने और माता सीता को अखंडसौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार रावण ने स्वयं अपने शत्रु को उसके अभीष्ट की पूर्ति के लिए आशीर्वाद दिया। अपने परम भक्त रावण के आचार्यत्व में हुए इस यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भी श्रीराम को विजयश्री का आशीर्वाद दिया। विजयश्री का आशीर्वाद मिलने के बाद श्रीराम ने भगवान शंकर से वहीं निवास करने की विनती की, श्रीराम की भक्ति और पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर वहीं विराजमान हो गए। इसके पश्चात जब हनुमानजी शिवलिंग लेकर लौटे तो सारा वृत्तान्त सुनकर अत्यंत दुखी हुए, भगवान राम ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन जब वे नहीं माने तो श्रीराम ने उन्हें स्थापित किए हुए शिवलिंग को उखाड़कर अपना लाया हुआ शिवलिंग स्थापित करने को कहा। अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद जब हनुमान जी उस शिवलिंग को उसके स्थान से नहीं हटा सके तो भगवान राम ने हनुमानजी द्वारा लाए हुए शिवलिंग को उसी शिवलिंग के बगल में स्थापित कर दिया। इस प्रकार भगवान राम के शिवलिंग को रामलिंगम और हनुमान द्वारा लाए गए शिवलिंग को विश्वलिंगम कहा गया। शिवलिंग की स्थापना के बाद जब ऋषियों ने भगवान राम से रामेश्वरम का अर्थ पूछा तब भगवान राम ने रामेश्वरम शब्द की व्याख्या करते हुए कहा था कि ‘रामस्य ईश्वरः यः सः रामेश्वरः अर्थात जो राम के ईश्वर (भगवान शंकर) हैं, वही रामेश्वर हैं। रामजी द्वारा की हुई  व्याख्या सुनने के बाद भगवान शंकर मुस्कुराते हुए माता पार्वती से बोले हे देवी श्रीराम की ये व्याख्या उनकी उदारता का स्वरूप है। जब माता पार्वती ने शिवजी से रामेश्वरम का अर्थ पूछा तब शिवजी ने इस शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि रामः ईश्वरो यस्य सः रामेश्वरः अर्थात राम जिनके ईश्वर हैं वही रामेश्वर हैं।

रामेश्वरम की भौगोलिक स्थिति, इसकी शिल्प कला और बनावट इसकी सुंदरता में चार चांद लगाने का काम करती है। रामेश्वरम का गलियारा उत्तर दक्षिण में 197 मीटर जबकि पूर्व पश्चिम में 133 मीटर तक फैला हुआ है। 6 मीटर चौड़ाई और 9 मीटर ऊंचाई वाले इस गलियारे को विश्व का सबसे लंबा गलियारा होने का दर्जा प्राप्त है। रामेश्वरम मंदिर की लंबाई एक हजार फीट और चौड़ाई 650 फीट है। मंदिर परिसर में कुल 22 कुंड हैं ऐसा माना जाता है कि इन सभी कुंडों का निर्माण भगवान राम ने स्वयं अपने अमोघ बाणों से किया था। इसके अलावा रामेश्वरम धाम में स्थित पंचमुखी हनुमान मंदिर, गंधमादन पर्वत, लक्ष्मण तीर्थम, थिरुप्पुल्लामी मंदिर, एकांत राम और धनुष्कोडी जैसे मंदिरों अपने आप में प्रसिद्ध हैं। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के पहले और मुख्य तीर्थ अग्नि तीर्थम में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। उत्तर भारत में जो महत्व काशी का है दक्षिण भारत में वही महत्व रामेश्वरम को दिया जाता है। एक मान्यता के अनुसार रामेश्वरम तीर्थ में शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। रामेश्वरम धाम हिंदुओं की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। हर साल लाखों की संख्या में भक्त यहां भगवान के दर्शन के लिए आते हैं।

Bharat Mata परिवार का प्रयास है कि हमारे पवित्र पावन तीर्थों की महत्ता और पावनता का संदेश जन जन तक प्रेषित हो और इनमें निहित मानव कल्याण के संदेशों से भावी पीढ़ियां प्रेरित एवं लाभान्वित हों। 

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