सबरीमला मंदिर का रहस्य | भगवान अयप्पा की अद्भुत कथा और परंपराएं

सबरीमला मंदिर का रहस्य

भारत के केरल राज्य में स्थित सबरीमला मंदिर, न केवल अपनी भव्यता के लिए बल्कि अपने गहरे रहस्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। यह मंदिर भगवान अयप्पा की पूजा का केंद्र है, जो भगवान शिव और भगवान विष्णु के मिलन से उत्पन्न हुए पुत्र माने जाते हैं। लेकिन यह कैसे संभव हुआ और इसके पीछे की पूरी कहानी क्या है? इस मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमयी बातें हैं, जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे।

कहा जाता है कि इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश निषेध है। यह क्यों है? आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़े कुछ दिलचस्प और रहस्यमय पहलुओं के बारे में।

भगवान अयप्पा का जन्म

कहा जाता है कि भगवान अयप्पा का जन्म भगवान शिव और भगवान विष्णु के मिलन से हुआ था। एक पुरानी कथा के अनुसार, जब महिषासुर ने अत्याचार बढ़ा दिया था, तो सभी देवताओं ने माता दुर्गा के रूप में पार्वती से उसे नष्ट करने का अनुरोध किया। महिषासुर के वध के बाद उसकी बहन महिषी ने बदला लेने की योजना बनाई और भगवान ब्रह्मा से एक वरदान प्राप्त किया कि उसका वध केवल भगवान शिव और भगवान विष्णु के मिलन से होने वाले पुत्र से ही संभव होगा। इस तरह भगवान अयप्पा का जन्म हुआ।

राजा राजशेखर और अयप्पा की कहानी

एक दिन राजा राजशेखर, जो निसंतान थे, जंगल में तपस्या कर रहे थे। अचानक उन्हें एक बांस की टोकरी में एक दिव्य बच्चा मिला। यह बच्चा कोई और नहीं, बल्कि भगवान अयप्पा थे। उन्होंने इस बच्चे को मणिकांत नाम दिया। मणिकांत ने अपनी असाधारण शक्तियों से सबको आश्चर्यचकित किया।

राजा ने मणिकांत को अपना उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया, लेकिन दरबार का एक मंत्री, जो स्वयं राजा बनने की आकांक्षा रखता था, उसने मणिकांत को मारने की साजिश रच दी। इस साजिश के तहत मंत्री और रानी ने मणिकांत को बाघिन का दूध लाने के लिए भेज दिया, ताकि वह जंगली जानवरों से मारा जाए। लेकिन मणिकांत ने अपने साहस और तप से महिषी का वध किया और बाद में भगवान अयप्पा के रूप में पूजे गए।

सबरीमला मंदिर और उसकी अनूठी परंपराएं

जब राजा राजशेखर को भगवान अयप्पा का दिव्य रूप पता चला, तो भगवान अयप्पा ने उन्हें निर्देश दिया कि वह सबरीमला पर्वत पर एक मंदिर का निर्माण करें और वहां उनकी मूर्ति स्थापित करें। इस मंदिर में तपस्या, ब्रह्मचर्य और 41 दिनों के व्रत का पालन करना आवश्यक होता है।

सबरीमला मंदिर का प्रमुख आकर्षण उसकी 18 पवित्र सीढ़ियाँ हैं। इन सीढ़ियों का प्रतीकवाद है। 18 सीढ़ियाँ जीवन के 18 प्रमुख पहलुओं का प्रतीक मानी जाती हैं।

महिलाओं का प्रवेश निषेध

सबरीमला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश निषेध क्यों है? इसका कारण महिषी के वध से जुड़ी एक कथा में छिपा हुआ है। जब महिषी को भगवान अयप्पा ने हराया, तो वह एक सुंदर स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गई और उसने भगवान अयप्पा से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन अयप्पा ने यह कहकर विवाह से इनकार कर दिया कि वह ब्रह्मचारी हैं। इसके बाद भगवान अयप्पा ने जंगल में तपस्या शुरू कर दी और उन्होंने यह वचन लिया कि वह तब तक विवाह नहीं करेंगे, जब तक भक्तों का आना नहीं रुक जाएगा।

इस कारण से सबरीमला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित किया गया। इसे एक धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यता के रूप में देखा जाता है।

मस्जिद की परिक्रमा

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि सबरीमला यात्रा के दौरान एक मस्जिद की परिक्रमा क्यों करनी पड़ती है? दरअसल, यह मस्जिद एक सूफी संत की है, जिन्हें भगवान अयप्पा में गहरी श्रद्धा थी। लगभग 500 वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है कि सभी भक्त इस मस्जिद की परिक्रमा करते हैं, जिससे धार्मिक सहिष्णुता और सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है।

मकर विलाकुडी यात्रा

सबरीमला मंदिर में एक और महत्वपूर्ण उत्सव है, जिसे मकर विलाकुडी कहा जाता है। यह उत्सव भगवान अयप्पा के दर्शन और उनकी भक्ति का प्रतीक है। इस यात्रा के दौरान भक्तों को 41 दिनों की कठिन तपस्या करनी होती है। यह यात्रा मकर संक्रांति के दिन समाप्त होती है और इस दिन भगवान अयप्पा अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए प्रकट होते हैं।

निष्कर्ष

सबरीमला मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह तपस्या, संयम और भक्ति का प्रतीक है। यहां के नियम और परंपराएं हमें धैर्य और आस्था की सीख देती हैं। यदि आप इस मंदिर की यात्रा करते हैं, तो इस अद्भुत स्थान की गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को समझने की कोशिश करें।

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