तिरुपति बालाजी मंदिर | Tirupati Balaji Mandir

विश्वपटल पर देवताओं की धरती के रूप में सुशोभित भारत.. कला.. संस्कृति.. सभ्यता एवं आस्था के लिए संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है भारत एक ऐसा देश है.. जहाँ ऐसे कई मान्यता प्राप्त.. धार्मिक और पवित्र मंदिर एवं तीर्थस्थल स्थित हैं.. जिनका अपना विशेष धार्मिक महत्व है और जिनसे लाखों अनुयायियों की आस्था जुड़ी हुई है।

इसी वृहद् श्रृंखला में एक अति-महत्वपूर्ण मंदिर है – आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर में स्थित.. तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर.. जो सम्पूर्ण संसार में तिरुपति बालाजी मंदिर के नाम से भी लोकप्रिय है। समुद्र तट से 3200 फ़ीट ऊँचाई पर.. तिरुमाला पर्वत पर स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर.. अपने अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य एवं रमणीय स्थल होने के कारण आकर्षण का केंद्र है। कई शताब्दी पूर्व निर्मित ये मंदिर.. दक्षिण भारत की उत्कृष्ट वास्तुकला एवं शिल्पकला का अद्वितीय उदाहरण ही नहीं है.. अपितु अलौकिक एवं चमत्कारिक रहस्यों का संग्रह भी है।

मान्यता है कि भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक.. तिरुपति बालाजी मंदिर में स्वयं श्री हरि विष्णु.. भगवान वेंकटेश्वर के रूप में साक्षात् विराजमान हैं।

तिरुमाला पर्वत की सातवीं चोटी.. वेंकटचला पर इस मंदिर के स्थित होने के कारण.. तीनों लोकों के स्वामी.. श्री हरि विष्णु को भगवान वेंकटेश्वर भी कहा गया है। अनुश्रुति है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए.. तिरुमाला के समीप स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था। तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ.. तिरुमाला.. शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिर‍ि' कहलाती हैं। सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी वेंकटाद्री पर स्थित ये मंदिर.. श्री वेंकटेश्वरैया के नाम से भी प्रचलित है।

इस मंदिर के इतिहास के विषय में विद्वानों में मतभेद है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है.. जब कांचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था और 15वीं सदी के पश्चात इस प्राचीन मंदिर की ख्याति में वृद्धि होने लगी। ऐसी भी मान्यता है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल.. होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में विशेष योगदान था। मान्यताओं में भिन्नता होने के पश्चात् भी.. इसमें कोई संदेह नहीं कि तिरुपति बालाजी मंदिर एक अत्यंत प्राचीन एवं सिद्ध मंदिर है.. जहाँ हर दिन भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करने हेतु भक्तों का तांता लगा रहता है।

अद्भुत वास्तुकला से युक्त तिरुपति बालाजी मंदिर का गर्भगृह.. जहाँ भगवान वेंकटेश्वर साक्षात् विराजमान हैं.. मंदिर के प्रांगण में ही स्थित है। पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम.. कृष्ण देवर्या मंडपम.. रंग मंडपम.. तिरुमला राय मंडपम.. आईना महल.. ध्वजस्तंभ मंडपम.. नदिमी पडी कविली.. विमान प्रदक्षिणम.. श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि मंदिर के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं

मंदिर का प्राकृतिक सौन्दर्य एवं उत्कृष्ट शिल्पकला के अतिरिक्त.. यहाँ के दैवीय एवं आश्चर्यजनक रहस्य.. मंदिर की ओर सभी की उत्सुकता में वृद्धि करते हैं और देश-विदेश से पर्यटकों को आकर्षित भी करते हैं।

 

मंदिर में बालाजी की आकर्षक प्रतिमा.. एक विशेष पत्थर से निर्मित है और ये इतनी जीवंत है कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे भगवान स्वयं ही विराजमान हैं ऐसा भी देखा गया है कि बालाजी की प्रतिमा को पसीना आता है.. प्रतिमा पर पसीने की बूंदें देखी जा सकती हैं.. इसलिए मंदिर में तापमान सदैव कम रखा जाता है

मान्यता है कि इस मंदिर में बिना घी और तेल के भी.. एक दीपक सदैव जलता रहता है। इस मंदिर का एक और विचित्र रहस्य है कि इस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा मध्य में स्थित है पर बाहर आने पर ये दायीं ओर दिखाई देती है।

मंदिर के मुख्य द्वार के दायीं ओर एक छड़ी है जिसके विषय में कहा जाता है कि इसी छड़ी से बालाजी की बालरूप में पिटाई की गई थी.. जिस कारण उनकी ठोड़ी पर चोट लग गई थी। तब से लेकर अब तक उनकी ठोड़ी पर चन्दन का लेप लगाया जाता है जिससे उनका घाव भर सके और उनकी पीड़ा कम हो सके। एक अन्य अत्यंत आश्चर्यजनक रहस्यमयी मान्यता है कि भगवान वेंकेटेश्वर की मूर्ति पर जो केश हैं.. स्वयं भगवान के केश हैं.. जो कभी भी आपस में नहीं उलझते। ये भक्तों की इस आस्था को बल प्रदान करता है कि भगवान स्वयं यहाँ विराजमान हैं

एक अन्य मान्यता अनुसार भगवान बालाजी के वक्षस्थल पर माँ लक्ष्मी निवास करती हैं.. हर गुरुवार को निजरूप दर्शन के समय भगवान बालाजी का चंदन से लेप किया जाता है.. उस चंदन को निकालने पर लक्ष्मीजी की छवि उस पर दिखाई देती है। कहा जाता है कि भगवान के इस रूप में मां लक्ष्मी भी समाहित हैं.. इसी कारण उनकी प्रतिमा को स्त्री और पुरुष दोनों के वस्त्र पहनाने की परम्परा है। एक रहस्य ये भी है कि बालाजी की प्रतिमा की पीठ पर कान लगाकर सुनने से समुद्रघोष सुनाई देता है।

इतने सारे चमत्कारिक रहस्यों के कारण.. भक्तों की अनन्य श्रद्धा का केंद्र तिरुपति बालाजी मंदिर.. सम्पूर्ण संसार के कौतुहल का विषय भी है।

पूर्ण रूप से भक्तिमय और पवित्रता की आभा से युक्त तिरुपति में.. कई त्यौहार मनाये जाते हैं जिनमें ‘ब्रह्मोत्सवम' तिरुपति का सबसे प्रसिद्ध त्यौहार है.. जो सितंबर में नौ दिनों तक भव्य स्तर पर मनाया जाता है।

भगवान तिरुपति बालाजी के दर्शनाभिलाशियों के लिए.. पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग का निर्माण किया गया है। आवागमन की दृष्टि से तिरुपति अत्यंत सुगम है और देश के अन्य स्थानों से हवाई.. रेल और सड़क मार्ग से भली-भांति जुड़ा हुआ है।

धन-धान्य से परिपूर्ण इस मंदिर में.. केश दान की परंपरा है.. जो वस्तुतः केश के प्रतीक में मानव के घमंड एवं दंभ का त्याग करने का प्रयास है। ऐसी मान्यता है कि तिरुपति मंदिर में जो भी भक्त अपने केशों का दान करता है.. भगवान उससे बहुत प्रसन्न होते हैं और उसकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं

तिरुपति बालाजी मंदिर सर्वदर्शनम है.. जो सनातन संस्कृति की वसुधैव कुटुम्बकम की परिपाटी की पुष्टि करता है।