Birbal Sahani : भारतीय पुरा वनस्पति विज्ञान के जनक | Bharat Mata

लखनऊ विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य चल रहा था। कुछ भी ठीक तरह से संचालित नही था, उसी समय कुछ विदेशी वैज्ञानिकों का दल विश्वविद्यालय के वनस्पति अध्ययन विभाग पहुँचा और विभगाध्यक्ष से मिलने की इच्छा प्रकट की। विभाग के कर्मचारी द्वारा उसी कमरे में एक कोने की मेज कि ओर संकेत करने से आगंतुकों को ज्ञात हुआ कि विभगाध्यक्ष महोदय शोध पत्रों और किताबों से लदी उस मेज के कोने में सूक्ष्म दर्शी में नज़रें गड़ाए व्यस्त है। दल के सदस्य आश्चर्य से उन्हें देख कर बोले "सर आपके पास यहाँ तो व्यवस्थित शोधालय (लॅब) भी नहीं है। भला आप यहां काम कैसे कर लेते है ? क्योंकि वो जानते थे कि अपने काम मे संलग्न ये व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि विश्वविख्यात पुरावनस्पति वैज्ञानि बीरबल साहनी है। आगंतुकों के इस प्रश्न को सुनते ही बीरबल साहनी मुस्कुराते हुए बोले, 'कुछ भी करने के लिए संसाधनों से अधिक इच्छाशक्ति का होना जरूरी है, अपने कार्य मे म रम गया तो मेज़ का कोना भी पर्याप्त है।
अपने काम से अथक प्रेम करने वाले जिला शाहपुर यानी अब के पाकिस्तान में एक छोटे से शहर बेहरा में 14 नवम्बर 1891 को जन्मे बीरबल साहनी ने अपनी इसी दृढ इच्छा शक्ति से वनस्पति विज्ञान और भूविज्ञान की नई परतों को खोला । बीरबल साहनी में विज्ञान के प्रति रुचि उनके पिता के कारण थी क्योंकि उनके पिता रुचि राम साहनी स्वयं रसायन विज्ञान के प्राध्यापक और वैज्ञानिक थे। कार्य के प्रति लगनशीलता व सरलता बीरबल साहनी को अपनी माता ईश्वरी देवी से नैसर्गिक रूप से मिली थी।
बाल्यकाल से ही बिरलबल साहनी ने न जाने कितने ही पेड़ पौधों का संचयन और अध्ययन अपने घर के कमरे में शुरू कर दिया था। प्रोफेसर साहनी की वनस्पति और पुरा वनस्पति के प्रति रुचि प्रतिभा और अध्ययन तब और गतिमय हुआ जब 1911 में पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक करते ही उन्हें कैम्ब्रिज विश्विद्यालय के इमैन्युल कॉलेज में दाखिला मिल गया। जहाँ उन्हे सर अल्बर्ट चार्ल्स सेवर्ड के निर्देशन में कार्य करने का अवसर मिला ।
बीरबल साहनी ने 1913 में प्राकृतिक विज्ञान ट्राइपोज़ के भाग में प्रथम श्रेणी प्राप्त की और 1915 में ट्राइपोज का भाग ॥ पूरा किया। 1919 में लंदन विश्वविद्यालय द्वारा पुरावनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में उनके शोध के लिए उन्हें डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि से सम्मानित किया गया। यह प्रोफेसर साहनी का वनस्पति प्रेम ही था जो उन्हें सुदूर पहाड़ों, जंगलों और घाटियों की तरफ खींचता था अथवा उनके भीतर की यायावरी ने उन्हें वनस्पति प्रेमी बना दिया यह कहना कठिन है पर भारत भर के सघन वनस्पति क्षेत्रों में उनके द्वारा की गई यात्राओं ने उनके शोध कार्य मे नए आयामों की नींव डाली। यहाँ तक कि कैम्ब्रिज जाते वक्त भी वो किल्बा बुरानपास दर्रे से कुछ एक लाल शैवाल लेते गए थे जिसपर वहीं रहते हुए उन्होंने अपना शोध कार्य पूरा किया।
भारत लौटने पर प्रोफेसर साहनी ने 121 में पहले बनारस हिंदू विश्वविद्यालय फिर पंजाब विश्विद्यालय में कुछ वर्ष तक कार्य किया फिर लखनऊ विश्वविद्यालय में स्थायी रूप से पहले तो वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर रूप में कार्यभार संभाला और फिर भूविज्ञान विभाग की भी स्थापना की। यहीं पर अध्यापन के दौरान उनका विवाह सावित्री जी से हुआ जो न केवल साहनी जी के लिए ऊर्जा स्रोत थी साथ ही उनके प्रत्येक सपने को पूरा करने में बराबर की भागीदार भी रहीं।
प्रोफेसर बीरबल की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा भारत में पुरावनस्पति अनुसंधान को संगठित आधार पर स्थापित करना था। प्रारंभ में उन्होंने 1929 में पौधों के जीवाश्मों का एक संग्रहालय स्थापित किया। 1939 में उन्होंने द पैलियोबोटैनिकल सोसाइटी' नाम से भारतीय पुरावनस्पतिशास्त्रियों की समिति का गठन किया और भारत में अनुसंधान क्षेत्रों के समन्वय और विकास के लिए एक बैठक बुलाई। जिसके परिणामस्वरूप संयुक्त प्रांत सरकार ने सितंबर 1948 में लखनऊ विश्वविद्यालय के बगल में एक भूमि उपहार में दी जिस पर भवन निर्माण की व्यापक योजना तैयार हुई जिसकी आधारशिला भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 3 अप्रैल 1949 को रखी।
दुर्भाग्यवश, शिलान्यास समारोह आयोजित होने के एक सप्ताह बाद 10 अप्रैल 1949 को बीरबल साहनी का निधन हो गया और वह अपने पोषित सपने उस संस्थान को आगे बढ़ते और विकसित होते नहीं देख सके। पर उनकी सच्ची मित्र और पत्नी होने का दायित्व निभाते हुए सावित्री साहनी ने उनके संस्थान का भरण पोषण पूर्ण मनोयोग से किया। बीरबल साहनी द्वारा देखे गए सपने अर्थात उस संस्थान का नाम भी प्रोफेसर बीरबल साहनी के नाम पर
ही रखा गया जिसे हम आज बीरबल साहनी पुरावनस्पतिविज्ञान संस्थान के नाम से जानते हैं । प्रोफेसर साहनी न केवल विज्ञान के जगत में प्रेरणा के रूप में देखे जाते है साथ ही वो एक भविष्य दृष्टा और श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में भी हम सबके लिए आदर्श स्थापित कर गए है। प्रोफेसर बीरबल साहनी ने अपने विचरों और कार्यों से समस्त विश्व को सपने देखने और उन्हें पूरा करने के साहस की नई प्रेरणा और प्रोत्साहन प्रदान किया जिसके लिए हम सब सदैव उनके आभारी रहेंगे।

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