डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम : एक उल्लेखनीय जीवन | Dr. APJ Abdul Kalam | Missile Man

मज़िलें उन्हीं को मिलती हैं.. जिनके सपनों में जान होती है..

पंखों से कुछ नहीं होता है..

हौसलों से उड़ान होती है

 

अगर सूरज की तरह चमकना है.. तो पहले सूरज की तरह तपना सीखना होगा।

 

इससे पहले की सपने सच हों.. सपने देखने होंगे।

 

लक्ष्य भी अपने ही जीवन और प्रेरणा द्वारा संचालित होता है.. इसीलिए कभी हार नहीं माननी चाहिए और समस्याओं से ख़ुद को हारने नहीं देना चाहिए।

 

भारत रत्न स्वर्गीय ए. पी. जे. अब्दुल कलाम द्वारा कहे गए ये शब्द.. उनके अंतर्मन की अभिव्यक्ति के रूप में आने वाली पीढ़ियों का मार्ग-दर्शन युगों तक करते रहेंगे। पग पग पर विपरीत परिस्थितियों और संघर्ष का सामना करते हुए भी.. उन्होंने कभी अपने लक्ष्य को ओझल नहीं होने दिया और एक सशक्त भारत राष्ट्र की परिकल्पना को पूर्णता प्रदान की।

उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम में हुआ था। उन्होंने देश के युवाओं को ही देश की सच्ची पूँजी माना और विशेष रूप से बच्चों को बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित किया।

एक अख़बार बेचने वाले 8 साल के बालक से लेकर देश के राष्ट्रपति बनने तक की उनकी जीवन यात्रा और विचारों ने करोड़ों भारतीयों को प्रभावित भी किया और निराशा के वातावरण में आशा और प्रगति पथ का संचार भी किया

परिवार की गरीबी और साधन विहीनता के कारण.. उनका बचपन अत्यंत संघर्ष पूर्ण था। उनके पिता का नाम जैनुलाब्दीन था.. जो कि पेशे से नाविक थे.. गरीबी और अशिक्षा की परिस्थितियों में भी.. वो उच्च विचारों के धनी व्यक्ति थे और वो अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने के पक्षधर थे। उनकी माँ का नाम असीम्मा था.. जो एक गृहणी थीं। माँ के ममतामय व्यवहार और सदा अच्छाई में विश्वास रखने के स्वभाव ने बालक कलाम को अत्यधिक प्रभावित किया। घर की आर्थिक सहायता के लिए बालक कलाम पेपर बेचने का काम करते थे। 1939 में दूसरा विश्वयुद्ध आरम्भ हुआ.. तब वो मात्र 8 साल के थे। उस समय रामेश्वरम स्टेशन पर गाड़ियों का रुकना बंद कर दिया गया और पेपर के बंडल को चलती ट्रेन से रामेश्वरम और धनुषकोड़ी के बीच सड़क पर फेंक दिया जाने लगा। इस प्रकार से फेंके गए गट्ठरों को इकठ्ठा करना और फिर उनका वितरण करने के कार्य को किसी भी बचपन के लिए एक चुनौती कहा जा सकता है।

बचपन के इन संघर्षों और विपरीत परिस्थितियों में भी कलाम ने अपनी शिक्षा जारी रखी और उन्होंने  रामनाथपुरम जाकर “श्वार्ट्स हाई स्कूल” में एडमिशन लिया और इसी विद्यालय से अपनी मैट्रिक की शिक्षा पूरी की। प्रारम्भिक शिक्षा के इसी दौर में उनको सरंक्षक के रूप में श्री अय्यादुराई सोलोमन का सानिध्य प्राप्त हुआ। उनके द्वारा प्राप्त मार्गदर्शन का.. कलाम के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। ख्वाहिश यकीन और उम्मीद की.. उनके द्वारा प्राप्त प्रेरणा से वो संघर्षों में भी अडिग रहे और सेंट जोज़फ़ कॉलेज से उन्होंने BSc की डिग्री प्राप्त की।

समुद्र के किनारे खड़े होकर.. दूर गगन में उड़ते हुए पक्षियों को देखकर.. वो बुलंद उड़ानों का सपना सजा रहे थे। अपनी शिक्षा.. संकल्प और प्रयासों से उनका एडमिशन.. मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में हो गया और उनका इच्छित विषय “एरोनौटिक्स” भी उन्हें मिल गया। इस इंस्टिट्यूट में एडमिशन के लिए एक हज़ार रूपए की आवश्यकता थी.. जिसकी व्यवस्था किसी भी प्रकार से करना उन्हें संभव नहीं लग रहा था। उनकी बहन ज़ोहरा ने.. अपने हाथ की चूड़ियाँ और गले की चेन बेचकर.. उनके लिए इस धन की व्यवस्था की और इस प्रकार MIT में उनकी शिक्षा प्रारंभ हुई।

प्रो. स्पौंडर.. प्रो. पंडलई और प्रो. नरसिम्हा राव के दिशा निर्देशन में उनकी शिक्षा में अच्छी प्रगति हुई और वो दिन रात मेहनत और लगन से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते गए और उन्हें इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने में सफलता मिल गयी।

उन्होंने इसके बाद Air Force में पायलट बनने की इच्छा से इंटरव्यू भी दिया परन्तु कुछ कारण वश उन्हें इस सौभाग्य से वंचित रहना पड़ा। भले ही उनके लिए ये चिंता और निराशा का पल था परन्तु विधि का विधान देश के पक्ष में था और वो भारत को एक महान वैज्ञानिक से वंचित नहीं रखना चाहता था।

अगले चरण में मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेन्स में उन्हें DRDO में senior scientific assistant के पद पर नियुक्ति मिल गयी और इसी क्रम में डॉ. साराभाई ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और “Indian satellite vehicle” की अपनी कार्ययोजना में उनको स्थान दिया।

डॉ. अब्दुल कलाम को प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में भारत का पहला स्वदेशी प्रक्षेपास्त्र SLV -III बनाने का श्रेय हासिल है

उन्होंने 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया था। इसके अतिरिक्त पोखरन में दूसरा न्यूक्लीयर विस्फोट भी उनके सरंक्षण में संपन्न हुआ और साथ ही भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की क्षमता प्राप्त करने में सफलता अर्जित की।

भारत के मिसाइल कार्यक्रम का उन्हें जनक माना जाता है। उन्होंने सफलता पूर्वक “पृथ्वी” और “अग्नि” मिसाइल जो पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है.. बनाकर विश्व में भारत को एक सशक्त राष्ट्र के रूप में पहचान दिलाई।

परमाणु और मिसाइल कार्यक्रमों में उनके समर्पित योगदान के कारण उन्हें “मिसाइल मैन ऑफ़ इंडिया” भी कहा जाता है। विज्ञान के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 1981 में “पद्मभूषण”.. 1990 में “पद्मविभूषण” और 1997 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया।

18 जुलाई 2002 को लगभग 90% बहुमत द्वारा.. उन्हें भारत का राष्ट्रपति चुना गया और उन्हें 25 जुलाई 2002 को अशोक कक्ष में भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में पद की शपथ दिलाई गयी। उनका कार्यकाल 25 जुलाई 2007 को समाप्त हुआ। वो प्रथम वैज्ञानिक थे जिन्हें राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित किया गया।

राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद भी वो सदा युवाओं और विद्यार्थियों के लिए एक प्रेरणा के रूप में सक्रिय रहे।

27 जुलाई 2015 को डॉ. कलाम लगभग 84 साल की उम्र में भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में “पृथ्वी – एक रहने योग्य ग्रह” विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे.. तभी उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वो स्टेज पर ही बेहोश हो गए। उन्हें Bethany hospital में एडमिट करवाया गया.. जहाँ उन्होंने अंतिम सांस ली।

30 जुलाई 2015 को उनके पैतृक निवास के पास रामेश्वरम में उनका अंतिम संस्कार हुआ। भारत को एक विकासशील देश से विकसित राष्ट्र बनाना उनका सपना था।

उन्होंने कहा था –

“आओ हम सब मिलकर “आज” का बलिदान करें.. ताकि हमारे बच्चों का “कल” आज से बेहतर हो सके”

हम भारत समन्वय परिवार की ओर से डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की प्रतिभा.. आदर्श और राष्ट्र सेवा को नमन करते हैं। हमारा प्रयास है कि उनकी चेतना भारत के युवाओं में सदा जीवंत रहे और सशक्त भारत के.. उनके निर्माण का स्वप्न साकार हो।

IF MY ABSENCE DOES NOT AFFECT YOUR LIFE

THEN MY PRESENCE HAS NO MEANING IN IT