Mathematician Srinivasa Ramanujan | शून्य से अनंत तक - श्रीनिवास रामानुजन के अनुभव

श्रीनिवास रामानुजन, वह व्यक्ति जिन्होंने गणितीय विश्लेषण (mathematical analysis), अनंत श्रृंखला (infinite series), निरंतर भिन्न (continued fractions), संख्या सिद्धांत (number theory) और गेम सिद्धांत (game theory) सहित कई गणितीय डोमेन में अपने विभिन्न योगदानों के साथ बीसवीं सदी के गणित को नया आकार दिया। रामानुजन जी ने गणित में ऐसा महत्वपूर्ण योगदान दिया है जो कुछ लोगों के लिए ही संभव हो पाया है। एक रोचक तथ्य यह है की उन्हें कभी भी गणित का कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं प्राप्त हुआ। उनकी अधिकांश गणितीय खोजें मात्र अंतर्ज्ञान पर आधारित थीं और अंततः सही सिद्ध हुईं। प्रति वर्ष, 22 दिसंबर को रामानुजन की जयंती को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के तमिलनाडु के इरोड में जन्मे रामानुजन ने कम आयु में ही गणित की असाधारण सहज समझ प्राप्त कर ली थी। जब वे 15 वर्ष के थे, तब उन्होंने George Shoobridge Carr’s Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics की एक प्रति प्राप्त की। सैकड़ों प्रमेयों (theorems) के इस संग्रह ने रामानुजन की प्रतिभा को जागृत किया था। कैर की पुस्तक में परिणामों को सत्यापित (verify) करने के बाद, रामानुजन अपने स्वयं के प्रमेयों और विचारों को विकसित करते हुए बहुत आगे निकल गए। वर्ष 1903 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय में छात्रवृत्ति प्राप्त की, लेकिन गणित की खोज में अन्य सभी अध्ययनों की उपेक्षा करने के कारण अगले वर्ष ही उन्होंने वह छात्रवृत्ति खो दी। 

रामानुजन ने बिना रोजगार और बहुत कठिन  परिस्थितियों में जीवन व्यतीत करते हुए अपना काम जारी रखा। 1909 मे उन्होंने स्थायी रोजगार की खोज आरंभ की, जिसकी परिणति एक सरकारी अधिकारी, रामचन्द्र राव के साथ एक साक्षात्कार में हुई। रामानुजन के गणितीय कौशल से प्रभावित होकर, राव ने कुछ समय के लिए उनके शोध का समर्थन किया, लेकिन रामानुजन, दान पर निर्भर रहने के इच्छुक नहीं थे, और उन्होंने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में एक लिपिक पद प्राप्त किया। वर्ष 1911 में रामानुजन ने अपना पहला पेपर जर्नल ऑफ़ द इंडियन मैथमैटिकल सोसाइटी (Journal of the Indian Mathematical Society) में प्रकाशित किया। समय के साथ उनकी प्रतिभा को पहचान मिली और वर्ष 1913 में उन्होंने ब्रिटिश गणितज्ञ गॉडफ्रे एच. हार्डी के साथ पत्राचार (correspondence) शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय से विशेष छात्रवृत्ति और ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज से (a grant) अनुदान मिला। वर्ष 1914 में रामानुजन ने इंग्लैंड की यात्रा की, जहाँ हार्डी ने उन्हें पढ़ाया और सहयोग किया। वर्ष 1918 में, रामानुजन रॉयल सोसाइटी के फेलो के रूप में शामिल होने वाले दूसरे भारतीय बने। 

रामानुजन की उपलब्धियाँ अत्यंत आश्चर्यजनक थीं। दुर्भाग्य से, वर्ष 1918 मे रामानुजन को इंग्लैंड में एक घातक बीमारी हो गई। वह वहां एक साल से अधिक समय तक ठीक रहे और 1919 में भारत लौट आए, और 26 अप्रैल 1920 को उनकी मृत्यु हो गई। रामानुजन ने अपना अंतिम वर्ष गहन गणित का निर्माण करने में व्यतीत किया। 

रामानुजन के सर्वोच्चय योगदान के कारण वर्ष 2005 मे The Ramanujan Prize की शुरुआत की गई। यह पुरस्कार मूल रूप से  ICTP, the Niels Henrik Abel Memorial Fund, और the International Mathematical Union (IMU) द्वारा स्थापित किया गया था। विकासशील देशों के युवा गणितज्ञों को यह  पुरस्कार प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। 

रामानुजन की गणितीय खोजें अभी भी जीवित हैं और देश के युवा वर्ग के लिए अत्यंत सहायक हैं, और आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए भी सहायक होंगी। 

भारत समन्वय परिवार इतिहास के उल्लेखनीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन को सादर प्रणाम करता है। इस देश के अन्य महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों और गणितज्ञों के विषय मे विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए सबस्क्राइब करें Bharat Mata Chennal.

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