कर्तव्य के प्रति ईमानदारी जब सरदार वल्लभ भाई पटेल की पत्नी बहुत बीमार थीं
आज हम बात करेंगे एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी की जिन्होंने भारत की आजादी और उसके गठन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस स्वतंत्रता सेनानी को हम सरदार वल्लभभाई पटेल और लौह पुरुष के नाम से भी जानते हैं। 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाड में जन्में वल्लभभाई पटेल बचपन से ही बहादुर थे। बचपन में सरदार पटेल की आँख के पास एक फोड़ा निकल आया जो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा था, फोड़े के उपचार के लिए वैद्य जी को बुलाया गया, वैद्य जी ने कहा कि अगर लोहे की गर्म सलाख को फोड़े पर चुभाया जाए तो ही यह ठीक हो सकता है, वरना आँखों की रोशनी भी जा सकती है। छोटे से बच्चे को लोहे की गर्म सलाख चुभाने की बात सोचकर ही सब कांप गए और कोई भी सलाख चुभाने की हिम्मत ना कर सका।
जब सरदार पटेल को इस बात का पता चला तो उन्होंने खुद ही लोहे की गर्म सलाख को फोड़े पर चुभा लिया। उनकी इस बहादुरी से हर कोई हैरान था, ऐसे थे हमारे सरदार वल्लभभाई पटेल। सरदार पटेल ने हाई स्कूल की परीक्षा 22 साल की उम्र में पास की थी, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी इसलिए उन्होंने किताबें उधार लेकर वकालत की तैयारी की और 36 वर्ष की उम्र में इंग्लैंड जाकर वकालत की पढ़ाई की और 36 महीने के कोर्स को मात्र 30 महीने में पूरा कर भारत वापस लौट आए। उन दिनों वो एक जाने माने वकील के रूप में उभरकर सामने आए थे।
उनके बारे में एक और दिलचस्प बात यह भी है कि शुरू में वो गांधी जी के विचारों से बिल्कुल भी सहमत नहीं थे लेकिन आगे चलकर वो गांधीजी के प्रशंसक बने। जब उन्होंने गांधीजी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता के बारे में सुना तो गांधी के प्रति उनकी धारणा बदल गई और उन्होंने गांधी के साथ मिलकर देश की आजादी के लिए काम करना शुरू किया। खेड़ा आंदोलन की सफलता सरदार पटेल की पहली सफलता थी। इसके बाद 1928 में सरदार पटेल ने किसानों के समर्थन में बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया और अंग्रेजी सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। बारदोली के सफल सत्याग्रह के कारण वहाँ की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि दी थी। इस सत्याग्रह के बाद वे सरदार के नाम से प्रसिद्ध हुए।
सन 1946 में अंग्रेजों ने भारत को सत्ता सौंपने का फैसला किया और भारत को अंतरिम सरकार बनाने को कहा। यह तय हुआ कि कांग्रेस अध्यक्ष ही स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री होंगे ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने का फैसला लिया गया। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए तीन उम्मीदवार खड़े हुए जिनमें जवाहरलाल नेहरू, जेबी कृपलानी और सरदार पटेल शामिल थे। चुनाव के लिए कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई जिसमें 15 कार्यसमितियों में से 12 ने सरदार पटेल के पक्ष में वोट किया और उनका प्रधानमंत्री बनना लगभग तय था, लेकिन गांधी की जिद के आगे वो झुक गए और अपना नाम वापस ले लिया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उस वक्त देश एक नाजुक दौर से गुजर रहा था और वो नहीं चाहते थे कि इस ऐसे समय में पार्टी में कोई फूट पड़े। इस घटना से साफ है कि उस वक्त सरदार पटेल ही पीएम पद की पहली पसंद थे लेकिन गांधी जी की जिद के आगे वे झुक गए और चुनाव में एक भी वोट ना पाने वाले नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। हालांकि सरदार पटेल को उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री जरूर बनाया गया था।
सरदार पटेल भले ही प्रधानमंत्री न बन पाए हों लेकिन इसके बाद भी उनका हौंसला कम नहीं हुआ और वो अलग अलग बिखरी रियासतों को एक करने में जुट गए। उन्होंने अपने सचिव वीपी मेनन के साथ मिलकर बिखरी हुई रियासतों को एक करने का काम शुरू किया। जो प्यार से समझा उसे प्यार से समझाया और कुछ को अपनी कूटनीतिक क्षमता का प्रयोग कर अपने साथ मिला लिया, लेकिन जरूरत पड़ने पर हैदराबाद और कश्मीर जैसी रियासतों में सेना भेजकर 562 रियासतों का भारत में विलय करवाया। अगर वो ऐसा ना करते तो आज हमें भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक जाने के लिए जगह जगह वीजा लेना पड़ता। कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी तमाम रियासतें या तो एक अलग देश होते या पाकिस्तान के साथ होते। आज भारत का जो नक्शा हम देखते हैं वो सरदार पटेल के प्रयासों का ही फल है। क्योंकि उन्होंने सभी रियासतों को एक कर नए भारत का निर्माण किया था इसलिए उनकी जयंती को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में भी मनाई जाती है। भारत समन्वय परिवार की ओर से लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को शत शत नमन।
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