महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा | Life Story Of Adikavi Valmiki Rishi | Who Wrote Valmiki Ramayana

सम्पूर्ण विश्व में संस्कृति.. सभ्यता.. धर्म एवं आध्यात्म का अद्वितीय समन्वय.. भारत के अतिरिक्त और कहीं दृष्टव्य नहीं है। यही कारण है कि विश्व गुरु की उपाधि से सम्मानित भारत.. सनातन धर्म की महानता का दैदीप्यमान प्रतीक है। इस महिमामयी भारतीय सनातन परंपरा के प्रणेता.. प्रहरी.. प्रचार-प्रसारक.. ऋषि.. भारतीय संस्कृति के गौरव हैं। 
इसी गौरवगाथा के एक अति-महत्वपूर्ण अध्याय हैं – महर्षि वाल्मीकि। 
महर्षि वाल्मीकि का जीवन.. दृढ़ इच्छाशक्ति तथा मानवता की क्रूरता पर विजय का अनुपम प्रतीक है। किसी निर्दयी दस्यु एवं नृशंस पापी का विद्वान ऋषि एवं सहृदय कवि में परिवर्तित हो जाना.. एक ऐसी कल्पना है.. जिसपर कोई भी विश्वास नहीं कर सकता! किन्तु वाल्मीकि जी के जीवन ने इस कल्पना को वास्तविकता का आधार प्रदान किया। 
महर्षि वाल्मीकि के जन्म के विषय में विभिन्न मान्यताएं हैं.. जिनमें से एक प्रबल मान्यता है कि उनका जन्म.. अश्विन मास की पूर्णिमा को.. ब्रह्मा जी के पुत्र - प्रचेता नामक एक ब्राह्मण की कुटी में.. रत्नाकर नामक बालक के रूप में हुआ था। पौराणिक अनुश्रुति है कि बाल्यकाल में वन में विचरण करते समय.. रत्नाकर पथभ्रमित हो गए। वन से बालक रत्नाकर को.. एक निःसंतान भीलनी अपने साथ ले गयी तथा प्रेमपूर्वक उनका पालन-पोषण किया। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था.. वहाँ का भील समुदाय.. जीविकौपर्जन के लिए वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म करता था। रत्नाकर ने भी अपने परिवार का पालन-पोषण करने हेतु दस्युकर्म करना आरम्भ कर दिया।
किंवदंती के अनुसार.. जब उनकी भेंट महान ऋषि नारद से हुई.. तब नारद जी ने उन्हें.. उनके कर्तव्यों पर प्रवचन प्रदान किया एवं “राम” नाम का जप करने की प्रेरणा प्रदान की। किन्तु जीवनपर्यंत पापकर्म में लिप्त होने के कारण.. उनसे “राम” उच्चारित नहीं हो पा रहा था! तब देवऋषि नारद ने उन्हें “मरा” शब्द का जाप करने की युक्ति प्रदान की। रत्नाकर ने तपस्या करना आरम्भ कर दिया और "मरा" शब्द का जाप किया.. जिसका अर्थ होता है "मरना"। अनेक वर्षों तक तपस्या में लीन.. इसी प्रकार जप करने के कारण.. इस शब्द ने श्री हरिविष्णु के अवतार - "राम" का उच्चारण धारण कर लिया.. तथा इस प्रकार “मरा”.. “राम” में परिवर्तित हो गया।
वर्षों तक ध्यान में मग्न.. रत्नाकर के शरीर के चारों ओर.. दीमकों ने अपना घर बना लिया। अंत में देवऋषि नारद ने उनकी साधना की सफलता के पश्चात्.. उन दीमकों को हटा दिया एवं रत्नाकर को महर्षि की उपाधि से सम्मानित किया। 
दीमकों के घर को वाल्मिका कहा जाता है.. इसी कारण से रत्नाकर को महर्षि वाल्मीकि की उपाधि से संबोधित किया गया। तत्पश्चात देवऋषि नारद ने महर्षि वाल्मीकि को शास्त्रों का ज्ञान प्रदान किया.. जिस कारण महर्षि वाल्मीकि ने भारतीय समाज में पूजनीय स्थान अर्जित किया। 
पौराणिक मान्यता है कि एक दिन.. गंगा नदी के तट पर अपने आश्रम में.. जब महर्षि वाल्मीकि क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे.. उसी समय एक व्याध के तीर से नर पक्षी की मृत्यु हो गयी.. इस दृश्य से द्रवित होकर.. महर्षि वाल्मीकि के मुख से स्वतः ही ये श्लोक प्रस्फुटित हो गया – 
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम शाश्वति समः।
यतक्रौंचमिथुनादेकम अवधी ही काममोहितम्।।
महर्षि वाल्मीकि के क्रोध तथा शोक से अनायास उद्भूत हुआ.. ये संस्कृत साहित्य का प्रथम श्लोक माना जाता है। इसके पश्चात् महर्षि वाल्मीकि ने उसी छंद एवं लय में.. भगवान ब्रह्मा के आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन से संपूर्ण रामायण की रचना की। इस प्रकार यह श्लोक हिंदू साहित्य में प्रथम श्लोक के रूप में पूजनीय है तथा इसी कारण महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि एवं वाल्मीकि रामायण को प्रथम काव्य के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। 
अज्ञानता एवं पाप से ज्ञानपूर्ण एवं पवित्र जीवन तक की यात्रा.. महर्षि वाल्मीकि को.. एक विद्वान पंडित के रूप में प्रतिष्ठित करती है.. जिन्हें अकस्मात ज्ञान की देवी सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है तथा संस्कृत के श्लोक.. उनकी जिह्वा से प्रस्फुट होने लगते हैं। ब्रह्मा जी द्वारा प्रेरित होने पर.. वाल्मीकि जी ने मर्यादा पुरुषोत्तम.. श्री राम के जीवन से सम्बंधित महाकाव्य की रचना की। उन्होंने संस्कृत के श्लोकों से रामायण नामक ग्रंथ की रचना की जो देश ही नहीं.. अपितु विदेश में भी अत्यंत लोकप्रिय है।
रामायण मर्यादित समाज एवं आत्म संयम के निर्माण की शिक्षा प्रदान करता है। 23 हज़ार से अधिक श्लोकों से युक्त ये महाकाव्य.. भगवान विष्णु के अवतार.. प्रभु श्रीराम की जीवनी है। भारतीय संस्कृति के सत्य स्वरूप का यश - वाल्मीकि रामायण.. धर्म-कर्म.. मर्यादा.. राजनीति.. व्यवहार की शिक्षा से ओत-प्रोत एक महान आदर्श ग्रंथ है।
महर्षि वाल्मीकि ने न केवल.. रामायण की रचना की.. अपितु प्रभु श्रीराम द्वारा त्याग दिए जाने पर.. माता सीता को अपने आश्रम में शरण प्रदान की तथा श्रीराम एवं सीता जी के पुत्रों लव-कुश को भी शिक्षा एवं ज्ञान प्रदान किया। 
वैदिक काल के ऋषि.. महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिवस को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्त्व है क्यूंकि महर्षि वाल्मीकि के जीवन से मानवता को सद्भावना एवं करुणा का ज्ञान प्राप्त होता है। 
महातपस्वी महर्षि वाल्मीकि.. केवल आदिकवि ही नहीं.. महान खगोलशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य भी थे.. जिसका परिचय उन्होंने स्वयं रामायण में प्रदान किया है। श्री राम के समकालीन महर्षि वाल्मीकि.. इतिहास के प्रथम साहित्यकार थे.. जो स्वयं कृत रचना में भी विद्यमान थे। प्रकांड विद्वान महर्षि वाल्मीकि जी को भारत समन्वय परिवार की ओर से शत-शत नमन।

 

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