महर्षि वाल्मीकि की जीवन कथा | Life Story Of Adikavi Valmiki Rishi | Who Wrote Valmiki Ramayana

सम्पूर्ण विश्व में संस्कृति, सभ्यता, धर्म एवं आध्यात्म का अद्वितीय समन्वय भारत के अतिरिक्त और कहीं दृष्टव्य नहीं है। यही कारण है कि 'विश्व गुरु' की उपाधि से सम्मानित भारत, सनातन धर्म की महानता का दैदीप्यमान प्रतीक है। इस महिमामयी भारतीय सनातन परंपरा के प्रणेता, प्रहरी, प्रचारक ऋषि भारतीय संस्कृति के गौरव हैं।

महर्षि वाल्मीकि की गौरवगाथा

महर्षि वाल्मीकि का जीवन दृढ़ इच्छाशक्ति तथा मानवता की क्रूरता पर विजय का प्रतीक है। वे अद्वितीय विद्वान ऋषि एवं सहृदय कवि थे, जिन्होंने भारतीय समाज में पूजनीय स्थान अर्जित किया।

महर्षि वाल्मीकि का जन्म और जीवन वाल्मीकि जी का जन्म, अश्विन मास की पूर्णिमा को ब्रह्मा जी के पुत्र प्रचेता की कुटी में हुआ था। पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि उनका बचपन एक भीलनी के सान्निध्य में बीता, जिसने उनका पालन-पोषण किया।

महान संत नारद का मार्गदर्शन महर्षि वाल्मीकि के जीवन में परिवर्तन की शुरुआत तब हुई, जब उनकी भेंट महान ऋषि नारद से हुई। नारद जी ने उन्हें 'राम' नाम का जप करने की प्रेरणा दी, जो अंततः 'मरा' से 'राम' में परिवर्तित हुआ और उन्हें वाल्मीकि की उपाधि मिली।

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संस्कृत साहित्य का प्रथम श्लोक

गंगा नदी के तट पर महर्षि वाल्मीकि के मुख से अनायास निकला श्लोक संस्कृत साहित्य का प्रथम श्लोक माना जाता है:

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम शाश्वति समः। यतक्रौंचमिथुनादेकम अवधी ही काममोहितम्।

रामायण की रचना और महर्षि वाल्मीकि की विद्वत्ता

रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि के महान कार्यों में से एक है। इसमें उन्होंने श्रीराम के जीवन से जुड़े आदर्शों को विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया है। 23 हजार से अधिक श्लोकों से युक्त रामायण, भारतीय संस्कृति और आत्म संयम की शिक्षा प्रदान करता है।

वाल्मीकि का योगदान - लव-कुश का पालन-पोषण वाल्मीकि ने न केवल रामायण की रचना की, बल्कि माता सीता को अपने आश्रम में शरण दी और उनके पुत्रों लव-कुश को ज्ञान प्रदान किया।

वाल्मीकि जयंती का महत्त्व महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिवस को हिंदू धर्म में वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है। उनके जीवन से मानवता को सद्भावना और करुणा का ज्ञान प्राप्त होता है।

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आदिकवि और महान ज्योतिषाचार्य

महर्षि वाल्मीकि को भारत का प्रथम साहित्यकार एवं महान खगोलशास्त्री भी माना जाता है। उनका परिचय उन्होंने स्वयं रामायण में प्रस्तुत किया। इस महान संत को भारत माता परिवार की ओर से शत-शत नमन।