क्यों कहा जाता है छत्तीसगढ़ को ‘भारत का धान का कटोरा’? जानिए पूरा इतिहास! | Chhattisgarh Uncovered!
भारत की गोद में बसी, एक भूमि सुकून से भरी।
यह राज्य है एक छिपा हुआ रत्न, जहां वीरता की गाथाएँ अनगिनत।
हरे-भरे जंगलों में लहराती हवाएँ, और महानदी की लहरों में बहती संस्कृति,
पत्थरों में गढ़ी गई अद्भुत कला, सिरपुर के मंदिर की स्वर्गिक अनन्त धारा।
सदियों के शिल्प हैं यहाँ अद्भुत और मनोहर, यहीं है सच्ची सजीव बस्तर की धरोहर।
गूंजती हैं यहाँ काल-चक्र की रेखाएँ, और मिलती हैं गोंड और बैगा की अनगिनत गाथाएँ।
इस राज्य की है महिमा अनंत, इसकी परंपराएँ, अद्भुत और विशिष्ट।
जहाँ दंतेश्वरी माँ को हर मस्तक करता है प्रणाम,
वहीं वीर नारायण सिंह की कुर्बानी को करते हैं सलाम।
यहाँ गुरू घासीदास ने शांति और समता का अमर संदेश दिया था,
और खूब चंद ने समृद्धि का स्वप्न रचा था।
भारत माता चैनल आप सब का स्वागत करता है, “Rice Bowl of India” छत्तीसगढ़ में।
छत्तीसगढ़ का इतिहास लगभग 4वीं सदी ईस्वी से जुड़ा हुआ है, जब इसे दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था। 'छत्तीसगढ़' शब्द का मतलब 'छत्तीस क़िले' है, और यह नाम रतनपुर के हेहय वंश के क्षेत्र के लिए था, जिसकी स्थापना 750 ईस्वी के आसपास हुई थी। ब्रिटिश शासन के दौरान, छत्तीसगढ़ 14 रियासतों का हिस्सा था, जो पूर्वी राज्य एजेंसी के अंतर्गत आते थे, और इसका प्रशासनिक केंद्र रायपुर था।
भारत स्वतंत्र होने के बाद, छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश का हिस्सा था, लेकिन 1 नवंबर 2000 को यह एक अलग राज्य बन गया। छत्तीसगढ़ राज्य की मांग 1970 के दशक में तो तेज़ हुई, लेकिन इसका असल जन्म 20वीं सदी की शुरुआत से ही हुआ था। उस समय स्थानीय नेता एक अलग सांस्कृतिक पहचान की बात करने लगे थे। 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में, विभिन्न राजनीतिक दलों ने छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विशिष्टता को अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल किया, और राज्य गठन के वादे फिर से 1996 और 1998 के चुनावों में भी जोर-शोर से उठे थे।
अगस्त 2000 में भारतीय संसद ने मध्य प्रदेश पुनर्गठन विधेयक पारित किया और छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ। यह गठन विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पूरी तरह से शांतिपूर्ण था, और इसके गठन से जुड़ा कोई हिंसक आंदोलन नहीं था, जबकि इसी समय में उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) और झारखंड जैसे राज्य आंदोलनों और संघर्षों के बाद बने थे।
छत्तीसगढ़ के वीर स्वतंत्रता सेनानी और सांस्कृतिक चेतना
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ के पहले शहीद वीर नारायण सिंह, हनुमान सिंह जिन्हें छत्तीसगढ़ का मंगल पांडेय कहा जाता है, शहीद वीर गुंदधुर, वीर सुरेन्द्र साईं, ठाकुर प्यारे लाल सिंह, श्री ई. राघवेंद्र राव, डॉ. खुबचंद बघेल, श्री यातीतान लाल, बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव, बैरिस्टर छेदीलाल, पं. माधवराव सप्रे, श्री पारस राम सोनी, श्री रामप्रसाद पोताई, महंत लक्ष्मी नारायण दास, श्री बिसाहू दास महंत, श्री धनिराम वर्मा, श्री वामनराव बालीराम लखे, सेठ शिवदास डागा, पं. रविशंकर शुक्ला और महिला स्वतंत्रता सेनानी राधा बाई आदि का योगदान अद्वितीय था।
इन महान स्वतंत्रता सेनानियों से पूर्व 6वीं से 12वीं शताबदी के बीच, सरभपुरिया, पांडुवंशी, सोमवंशी, कालचुरी और नागवंशी जैसे राजवंशों ने इस भूमि पर शासन किया।
छत्तीसगढ़ का साहित्य क्षेत्रीय चेतना और एक ऐसी पहचान के विकास को दर्शाता है जो मध्य भारत के अन्य हिस्सों से अलग है। इसमें निम्न जाति और अस्पृश्यता के शिकार लोगों की सामाजिक समस्याओं और संघर्षों से जुड़ी कई कहानियाँ और तथ्य हैं। खुसबचंद बघेल द्वारा लिखी प्रसिद्ध नाटक 'जर्नैल सिंह' और 'उंच नीच' का भी विशेष उल्लेख किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति पूरी तरह से आदिवासी संस्कृति से प्रभावित है, और छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में आदिवासी जनसंख्या सबसे अधिक है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख धार्मिक स्थल, पर्यटन और भौगोलिक विशेषताएँ
छत्तीसगढ़, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध, कई ऐसे मंदिरों का घर है जो न केवल वास्तुकला के दृष्टिकोण से अद्भुत हैं, बल्कि धार्मिक आस्थाओं के संदर्भ में भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं।
घने जंगलों के बीच स्थित एकांत मंदिरों से लेकर शहरी केंद्रों में सजे पवित्र स्थलों तक, ये मंदिर छत्तीसगढ़ की पहचान हैं। इनमें डोंगरगढ़, प्रज्ञा गिरी, दंतेश्वरी मंदिर, रतनपुर, भोरमदेव मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, गांधेश्वर मंदिर और बारसुर जुड़वां गणेश मंदिर प्रसिद्ध हैं।
यहाँ पर रतनपुर किला, मल्हार, बस्तर महल, चैतुरगढ़ किला, और सितामणी आदि प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल भी स्थित हैं।
भगवान श्री राम की माता कौशल्या का जन्मस्थान भी यही है — इसीलिए यहाँ माता कौशल्या मंदिर स्थित है।
इसके अलावा चित्रकोट जलप्रपात, तिरथगढ़ जलप्रपात, अचनकमार टाइगर रिजर्व, कंगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान जैसे स्थल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
राज्य की नदियाँ – महानदी, शिवनाथ, इंद्रावती, हसदो आदि – इसकी जीवनधारा हैं।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख उत्सवों में बस्तर दशहरा, राजिम कुंभ, गोंचा उत्सव, हरेली और चक्रधर समरोह प्रमुख हैं।
लोक नृत्य शैलियाँ जैसे पंथी, राउत नाचा, कर्मा, पाण्डवानी और सैला इस राज्य की आत्मा हैं।
छत्तीसगढ़ का खानपान भी विशिष्ट है — मुठिया, चिला, भजिया, फारा, तिलगुड़, डुबकी कड़ी, आदि प्रसिद्ध व्यंजन हैं। यह भारत का एकमात्र राज्य है जहाँ IIT, IIM, NIT और AIIMS सभी एक साथ स्थित हैं।
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