भारत रत्न डॉ भगवान दास का संक्षिप्त जीवन परिचय | Bharat Mata
वो academician जिनको भारत के दूसरे राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने भी अपना गुरु माना। इन्होंने भारत को शिक्षा क्षेत्र में आत्म निर्भर बनाने के लिए क्या योगदान दिए हैं, आइए जानते हैं?
भगवान दास: प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
वर्ष 1869 दिनांक 12 जनवरी, वाराणसी(Kashi) मे भगवान दास का जन्म हुआ। जिस समय देश मे अंग्रेजी का बोलबाला था, उस समय भगवान दास का रुझान अंग्रेजी के साथ-साथ, हिन्दी, संस्कृत, उर्दू और पारसी भाषा की ओर था, और यही कारण है की ये अपनी संस्कृति से इतना जुड़े हुए थे। उनकी बुद्धि बहुत तीव्र थी और उन्होंने 12 साल की आयु में हाई स्कूल 16 साल में बीए और 18 साल में m.a.पास कर लिया था। उनकी रूचि से परिचित होते हुए भी भगवान दास के पिता ने उन्हें सरकारी नौकरी करने को कहा। आज के कई नौजवानों की तरह उन्हें भी अपनी रूचि पीछे छोड़नी पड़ी, और वर्ष 1890 में वह तहसीलदार के पद पर नियुक्त हुए।
Bhagwan Das: Annie Beasant से प्रेरणा और काशी विद्यापीठ की स्थापना
1894 मे भगवान दास जी को deputy collector के पद पर पदोन्नत किया गया। इसी समय अवधि मे उन्हे Annie Beasant का भाषण सुना, जिससे वो काफ़ी प्रभावित हुए। इसके चलते उन्होंने उनके साथ कई मोर्चों पर काम किया और कुछ परियोजनाओं में सहयोग भी किया। भगवान दास ने Annie Beasant के साथ मिलकर वाराणसी में काशी विद्यापीठ की स्थापना की। वर्ष 1898 मे इनके पिता के निधन के पश्चात Bhagwan Das ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय लिया। लेखक के साथ उनके भीतर एक academician भी था, फिर वो शिक्षा क्षेत्र की ओर बढ़ गए। उन्होंने grass root level पर अपने छात्रों के साथ काम किया। उन्हीं के सार्थक प्रयासों के फलस्वरूप वाराणसी में 'सैंट्रल हिन्दू कॉलेज' की स्थापना की जा सकी। इसके बाद वर्ष 1916 मे पं. मदनमोहन मालवीय ने वाराणसी में 'हिन्दू विश्वविद्यालय' स्थापित करने का विचार किया, तब dr. bhagwan das ने उनके साथ मिलकर 'काशी हिन्दू विद्यापीठ' की स्थापना में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और पूर्व में स्थापित 'सैंट्रल हिन्दू कॉलेज' का उसमें विलय कर दिया। डॉ. भगवान दास काशी विद्यापीठ के संस्थापक सदस्य ही नहीं, उसके प्रथम कुलपति भी बने।
Bhagwan Das: राजनीतिक जीवन की शुरुआत
1919 के वर्ष में, वह अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करते हुए यूपी सोशल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष बने। उन्होंने 1920 में यूपी राजनीतिक सम्मेलन की अध्यक्षता की। अगस्त 1920 में, उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में भाग लिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के सदस्य बन गए।
The Inspiring Life of Dr Bhagwan Das | भगवत गीता का अनुवाद और अन्य प्रमुख पुस्तकों का लेखन
उन्होंने अपने कार्यकाल में कई एकेडमिक आर्टिकल्स लिखे। वह एकेडमिक और धार्मिक किताबों का अनुवाद करते थे। उनकी भगवत गीता का अनुवाद आज भी बहुत प्रसिद्ध है। डॉ. भगवान दास ने हिन्दी और संस्कृत भाषा में 30 से भी अधिक पुस्तकों पर लेखन किया। सन् 1953 में भारतीय दर्शन पर उनकी अंतिम पुस्तक प्रकाशित हुई।
डॉ. भगवान दास जी ने कई पुस्तकों और प्रकाशनों का लेखन और सह-लेखन भी किया है। इनमें प्रमुख हैं:
1. सनातन धर्म: हिंदू धर्म और नैतिकता की एक उन्नत पाठ्यपुस्तक।
2. एनी बेसेंट के साथ भगवद गीता का अनुवाद।
3. सीआर दास के साथ स्वराज की एक रूपरेखा योजना।
4. सभी धर्मों की आवश्यक एकता।
5. आधुनिक समस्याओं के प्राचीन समाधान।
6. आधुनिक समाजों का सामाजिक पुनर्निर्माण।
डॉ. भगवान दास: भारत रत्न से सम्मानित
सन् 1955 जब भारत सरकार ने डॉ. भगवान दास को देश के सर्वोच्चय नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत को शिक्षा के क्षेत्र मे सक्षम बनाने में बिताया। ये उन्हीं के योगदान का फल है कि आज भारत के विश्वविद्यालयों में वेस्टर्न एजुकेशन के साथ-साथ स्वदेशी शिक्षा पर भी बराबर ध्यान दिया जाता है।