Teacher's Day Special | Sarvepalli Radhakrishnan के जन्मदिन पर ही क्यों मनाया जाता है टीचर्स डे?

ईसा से पांचवी मतलब आज से करीब पच्चीस सौ साल पहले एथेंस में रहने वाले एक महान विचारक प्लूटों का मानना था कि आदर्श राज्य वह है जहां का राजा दर्शन में रुचि रखता हो अर्थात् दर्शनशास्त्री हो। प्लूटो की कही यह बात बाइसवीं सदी में तब सिद्ध हो गई जब भारत के राष्ट्रपति के पद को दर्शनशास्त्र के उद्भट विद्वान डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्णन ने सुशोभित किया।

तमिलनाडु राज्य के तिरूतनी ग्राम में 5 सितंबर 1888 को जन्मे सर्वपल्ली राधाकृष्णन बचपन से ही मेधावी प्रज्ञा वाले व्यक्तित्व रहे थे। दर्शन शास्त्र में एम.ए. करने के बाद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में शिक्षक बने और अपने लेखों व भाषणों से उन्होंने संपूर्ण संसार को भारतीय संस्कृति से अवगत कराया। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पुरखे पहले 'सर्वपल्ली' नामक ग्राम में रहते थे और 18वीं शताब्दी के मध्य में जब उन्होंने तिरूतनी ग्राम को छोड़ा तो जन्मठन का बोध बना रहने देने के कारण इनके परिजन अपने नाम के पूर्व 'सर्वपल्ली' धारण करने लगे थे और इसलिए ही राधाकृष्णन सर्वपल्ली राधाकृष्णन कहलाए।

डॉ. राधाकृष्णन की विद्वत्ता को देखते हुए उन्हें दुनियाभर के विश्वविद्यालयों ने उन्हें अनेकों पुरस्कारों एवम् मानद उपाधियों से सम्मानित किया था। यह डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की विद्वता का ही परिणाम था कि भारतीय विद्वानों को कमतर समझने वाले अंग्रेजों ने भी डॉ. राधाकृष्णन को  'सर' की उपाधि प्रदान की थी।

21 वर्ष की उम्र अर्थात 1909 में राधाकृष्णन ने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज में कनिष्ठ व्याख्याता के तौर पर दर्शन शास्त्र पढ़ाना आरम्भ किया। कई संस्थानों में पढ़ाते हुए उन्होंने शिक्षक और छात्रों के रिश्तों एक अलग ऊंचाई दी। डॉ राधाकृष्णन आंध्र विश्वविद्यालय , बनारस विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय में कुलपति भी रहे।

डॉ॰ राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है।

डॉक्टर राधाकृष्णन की शिक्षा से जुड़ी प्रतिबद्धता का ही परिणाम है की उनके जन्मदिन को पूरा देश शिक्षक दिवस के रूप में मनाता है। शिक्षक दिवस की शुरुआत 1962 मे तब हुई जब डॉ रसर्वपल्ली राधाकृष्णन जब भारत के राष्ट्रपति के रूप मे चुने गए तो उनके कुछ शिष्यों ने उनका जन्म दिन मनाने के लिए आग्रह किया। छात्रों के इस निवेदन पर उन्होंने जबाव दिया कि मेरे जन्म दिन के स्थान पर यह दिन शिक्षक दिवस के रूप मे मनाया जाए और उस दिन के बाद हर साल पांच सितंबर को डा. सर्वपल्ली राधा राधाकृष्णन का जन्म दिन शिक्षक दिवस के रूप मे मनाया जाता है।

भारत के आजाद हो जाने के बाद डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया। उन्होंने यूनिस्को में अपने  देश का प्रतिनिधित्व किया। 1949 से लेकर 1952 तक राधाकृष्णन सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे।

रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी पुस्तक 'स्मरणांजलि' में उनके जीवन के कई संस्मरणों को याद करते हुए लिखा है कि भारत के राजदूत होते हुए डॉ. राधाकृष्णन ने रूस के तानाशाह शासक स्टालिन को सम्राट अशोक की कहानी सुनाई थी, ताकि वह हिंसा का रास्ता छोड़ शांति और अहिंसा की राह अपनाए।

वर्ष 1952 में उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया। सन 1954 में उन्हें भारत रत्न देकर सम्मानित किया गया। स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद जी ने उन्हें उनकी महान दार्शनिक व शैक्षिक उपलब्धियों के लिये देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। और इसके पश्चात 1962 में उन्हें देश का दूसरा राष्ट्रपति चुना गया।

साधारण और विनम्र स्वभाव के धनी डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत का राष्ट्रपति बनने के बाद मिलने वाली अपनी सैलरी से मात्र ढाई हजार रुपये ही लेते थे, और बचे हुए बाकी सैलरी प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय राहत कोष को दान कर देते थे। उन्होने अपने राष्ट्रपति भवन के दरवाजे आम लोगों के लिए खोल दिए। लोग सप्ताह के दो दिन बिना किसी पूर्व अनुमति के उनसे मिल सकता था।

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन 27 बार प्रसिद्ध नोबल पुरुस्कार के लिए नामित किए गए।16 बार साहित्य के क्षेत्र में और 11 बार नोबेल शांति पुरुस्कार के लिए उन्हें नॉमिनेट किया गया किंतु उन्हें उनको नोबल पुरुस्कार न मिल पाया।

डा. राधाकृष्णन ने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया और भारतीय दर्शन से विश्व को परिचित कराया। बहुआयामी प्रतिभा के धनी तथा  देश की संस्कृति से अटूट प्यार करने वाले डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का निधन 17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद हो गया था। 

शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. राधाकृष्णन का अमूल्य योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह एक विद्वान, शिक्षक, वक्ता, प्रशासक, राजनयिक, देशभक्त और शिक्षा शास्त्री थे। अपने जीवन में अनेक उच्च पदों पर रहते हुए भी वह शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान देते रहे।शिक्षक के रूप में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की प्रतिभा,योग्यता और विद्यता से प्रेरणा लेने के लिए ही शिक्षक दिवस को हर साल बड़ी धूमधाम से मनाते है।