जयप्रकाश नारायण — लोकनायक की जीवनी | संपूर्ण क्रांति, JP आंदोलन और आपातकाल | Emergency 1975
1970 के दशक में कांग्रेस की तानाशाह सरकार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने वाले और आपातकाल के समय में देश का नेतृत्व करने वाले जयप्रकाश नारायण एक महान स्वतंत्रता सेनानी, जननेता और उस समय के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने उनके अंदर छिपे क्रांतिकारी को पहचानने के बाद उनकी प्रशंसा में एक कविता लिखी थी जिसकी कुछ प्रमुख पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
आते ही जिसका ध्यान, दीप्त हो प्रतिभा पंख लगाती है,
कल्पना ज्वार से उद्वेलित, मानस-तट पर थर्राती है।
वह सुनो, भविष्य पुकार रहा, "वह दलित देश का त्राता है,
स्वप्नों का दृष्टा "जयप्रकाश", भारत का भाग्य-विधाता है।"
दिनकर की इन पंक्तियों से जयप्रकाश नारायण के व्यक्तित्व का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सितावदियारा गाँव में जन्में जयप्रकाश की प्रारम्भिक शिक्षा पटना में ही हुई। बचपन से ही उन्होंने महाभारत और श्रीमदभगवत गीता जैसे ग्रंथों को पढ़ना शुरू कर दिया था जिससे उनके व्यक्तित्व का विकास हुआ।
शिक्षा, अमेरिका में जीवन और स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
वर्ष 1922 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वो अमेरिका चले गए, आर्थिक रूप से संपन्न ना होने के कारण उन्हें एक होटल में वेटर की नौकरी भी करनी पड़ी। अमेरिका में रहने के दौरान ही उन्होने कार्ल मार्क्स को पढ़ना शुरू किया जिससे मार्क्सवादी विचारधारा का उनपर गहरा प्रभाव पड़ा।
जयप्रकाश 1929 तक अमेरिका में ही रहे और इसके बाद स्वदेश वापस लौट आए जहां उनकी मुलाकात नेहरू जी से हुई और यहीं से वो स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़ गए। उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन में भी अपना योगदान दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी उन्होंने टाटा स्टील कंपनी में हड़ताल करवाई जिससे युद्ध में इस्तेमाल होने वाला इस्पात अंग्रेजों तक ना पहुंचे।
इन आंदोलनों के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने कारण अंग्रेजों ने उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया लेकिन इस बार जयप्रकाश अंग्रेजों को धोखा देकर हजारीबाग जेल से फरार हो गए।
1970 का दशक: नवनिर्माण आंदोलन और आपातकाल
1970 के दशक में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के शासन में देश में बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार चरम पर था। इस विकराल परिस्थिति को देखते हुए गुजरात के छात्रों ने एक आंदोलन की शुरुआत की और जयप्रकाश नारायण से इसका नेतृत्व करने को कहा। देशहित में की गई छात्रों की मांग का सम्मान करते हुए उन्होंने नवनिर्माण आंदोलन की कमान संभाल ली।
इस आंदोलन के कारण गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को पद से इस्तीफा देना पड़ा। बिहार में भी छात्र आंदोलन शुरू हुए और इस दौरान उन्हें "लोकनायक" की उपाधि से सम्मानित किया गया।
5 जून 1975 को पटना के गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान किया। उनकी एक आवाज पर देश के लाखों नौजवान सड़कों पर उतार आए। इस दौरान उन्होंने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग की।
आपातकाल के दौरान सत्ता के खिलाफ बोलने वालों को जेल में बंद कर दिया गया, जिसमें जयप्रकाश नारायण भी शामिल थे। जेल में बंद रहने के कारण उनकी तबियत बिगड़ गई और उन्हें रिहा किया गया।
भारतीय राजनीति और भारत रत्न से सम्मान
आपातकाल खत्म होने के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली और जनता दल की सरकार बनी। जयप्रकाश नारायण के अथक प्रयासों से भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव आए।
उनकी उत्कृष्ट सेवाओं को देखते हुए उन्हें मरणोपरांत 1999 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जीवन हमें सिखाता है कि देशभक्ति, त्याग और निष्ठा के बल पर समाज और राष्ट्र को सुधारा जा सकता है।