जगन्नाथ मंदिर का रहस्य | Mystery Of Jagannath Temple Puri | Jagannath Puri Ki Kahani in Hindi
भारत का अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य तथा धार्मिक एवं सांस्कृतिक समन्वय.. सम्पूर्ण विश्व में गौरवमयी आभा के रूप में प्रतिष्ठित है। इस आभा का एक महत्वपूर्ण आयाम.. पुरी.. भारत के ओडिशा राज्य में स्थित.. वो नगर है.. जहां आध्यात्म.. धर्म.. रहस्य.. चमत्कार एवं प्रकृति की सुन्दरता का अद्भुत संगम दृष्टव्य है।
पारंपरिक जनजातीय संस्कृति.. उत्कृष्ट मंदिर.. समुद्र तट.. विविध वन्य जीवन तथा समृद्ध इतिहास से युक्त.. ओडिशा.. न केवल भारत का एक वैभवशाली राज्य है अपितु पर्यटन की दृष्टि से भी.. अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ब्रह्मांड के स्वामी भगवान जगन्नाथ की भूमि के रूप में प्रसिद्ध.. ओडिशा अपनी संस्कृति.. कला तथा अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है।
इस राज्य में स्थित.. भगवान जगन्नाथ का पवित्र निवास.. पुरी.. भारत के दिव्य धार्मिक केंद्रों में से एक है। बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित ये पवित्र नगर.. नीलगिरी.. नीलाद्रि.. नीलाचल.. पुरुषोत्तम.. शंखक्षेत्र.. श्रीक्षेत्र आदि अभिधानों से अलंकृत है। जिस नगर के मस्तक पर भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं तथा जिसके चरण समुद्र पखारता है.. वो दिव्य नगर – पुरी.. जगन्नाथ धाम एवं जगन्नाथ पुरी की संज्ञा से भी विभूषित है।
पुरी अनेक प्राचीन मंदिरों तथा मठों से युक्त है.. जिनमें से प्रत्येक की अपनी लघुकथा है.. जो भगवान जगन्नाथ से सम्बंधित कथा के अध्याय के रूप में विद्यमान हैं। पुरी पर्यटकों के लिए विभिन्न प्रकार के विकल्प प्रदान करता नगर है.. इस प्रकार पुरी.. एक संपूर्ण पर्यटन स्थल की श्रेणी में समिल्लित है। पुरी के प्रत्येक कण में दिव्यता तथा सुन्दरता का आभास प्राप्त होता है।
पुरी में स्थित भारत का गौरव.. जगन्नाथ मंदिर.. 11 वीं शताब्दी में निर्मित.. प्राचीन मंदिर है.. जिसके विषय में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं। स्कंद पुराण के अनुसार.. भगवान विष्णु के अनन्य भक्त.. राजा इंद्रद्युम्न ने पुरी में भगवान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया तथा उन्होंने निर्माता ब्रह्मदेव को मंदिर में देवताओं की मूर्तियों की स्थापना करने के लिए आमंत्रित किया। भगवान विष्णु के आंठवे अवतार.. श्री कृष्ण जी को समर्पित मंदिर.. जगन्नाथपुरी को पुराणों में धरती का वैकुण्ठ कहा गया है। भगवान जगन्नाथ की महिमा का वर्णन.. वेदों एवं पुराणों तथा संस्कृत और ओडिया भाषाओं की साहित्यिक रचनाओं में भी किया गया है। इस मंदिर का प्रमाण महाभारत के वर्ण पर्व में भी प्राप्त होता है।
भगवान विष्णु के अलौकिक स्वरुप.. भगवान जगन्नाथ की निवास स्थली के रूप में प्रसिद्ध.. यह गौरवशाली मंदिर.. हिंदुओं के लिए सर्वाधिक प्रतिष्ठित तीर्थ स्थल है तथा भारत की चहुँ दिशाओं में स्थित दिव्य धामों.. बद्रीनाथ.. द्वारका एवं रामेश्वरम सहित पवित्र चार धाम यात्रा में समिल्लित है। मुख्य मंदिर के अतिरिक्त.. परिसर में स्थित अन्य मंदिर.. श्रद्धालुओं को ईश्वर के निवास की अनुभूति प्रदान करते हैं। जगन्नाथ पुरी मंदिर की उत्कृष्ट उड़िया वास्तुकला.. मंदिर की भव्यता में अपार वृद्धि करती है। इस मंदिर में.. सार्वभौमिक प्रेम तथा बंधुत्व के देवता.. भगवान जगन्नाथ सहित.. बलभद्र.. सुभद्रा.. सुदर्शन.. माधव.. श्रीदेवी तथा भूदेवी की.. रत्नवेदी पर आराधना की जाती है। मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है.. जिसके शिखर पर भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र मंडित है। अष्टधातु से निर्मित इस पवित्र चक्र को नीलचक्र भी कहा जाता है।
जगन्नाथ पुरी की विशाल रसोई में प्रतिदिन असंख्य भक्तों के लिए.. मिट्टी के बर्तनों में स्वादिष्ट भोजन पकाया जाता है तथा भगवान जगन्नाथ का भव्य महाप्रसाद भक्तों को प्रदान किया जाता है। जगन्नाथ पुरी से सम्बंधित अनेक तथ्य प्रचलित हैं.. जो चमत्कार एवं रहस्य की आधारशिला पर भक्तों को हतप्रभ करते हैं।
मंदिर के शीर्ष पर स्थित ध्वज.. सदैव वायु की विपरीत दिशा में फहराता रहता है। मंदिर में स्थापित सुदर्शन चक्र अर्थात नीलचक्र.. हर दिशा से एक समान ही दिखता है। जगन्नाथ पुरी की रसोई में प्रतिदिन समान मात्रा में भोजन पकाया जाता है तथा कभी भी ये अपर्याप्त या व्यर्थ नहीं जाता है। महाप्रसाद को पकाने के लिए.. 7 बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर.. लकड़ी के चूल्हे का उपयोग किया जाता है। आश्चर्यजनक तथ्य ये है.. कि सबसे ऊपर वाले बर्तन का भोजन पहले पकता है तथा उसके पश्चात नीचे के बर्तनों में भोजन क्रमशः पकता जाता है। मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि मंदिर के शिखर की छाया कभी भी नहीं दिखती है। एक अन्य रहस्य ये भी है कि जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कुछ भी नहीं उड़ता है.. यहां तक कि किसी पक्षी को भी.. कभी भी मंदिर के ऊपर से उड़ते हुए नहीं देखा गया है। इस अप्राकृतिक कारण का तर्क विज्ञान भी नहीं प्रदान कर सका है.. किन्तु श्रद्धालुओं की श्रद्धा के अनुसार ईश्वर से उच्चतर कोई भी नहीं है.. अतः मंदिर के ऊपर कुछ भी नहीं उड़ता है। किसी सुरक्षात्मक उपकरण का प्रयोग न करते हुए.. प्रतिदिन एक पुजारी.. 40-50 तल के भवन जितनी ऊँचाई चढ़कर.. जगन्नाथ पुरी मंदिर के शीर्ष पर स्थापित ध्वज को बदलता है।
गौरवशाली इतिहास तथा वृहद् संस्कृति के अतिरिक्त.. ये आश्चर्यजनक चमत्कार.. भक्ति भावना के लिए ईंधन समान हैं.. जो श्रद्धालुओं को ईश्वरीय महिमा के प्रति आकर्षित करते हैं।
भगवान विष्णु को समर्पित.. अलारनाथ मंदिर.. तथा भगवान शिव को समर्पित लोकनाथ मंदिर.. पुरी की धार्मिक प्रतिष्ठा को आलोकित करते हैं। नरेन्द्र सरोवर.. मार्कंडेश्वर मंदिर.. गुंडीचा मंदिर तथा देश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्यावरण अनुकूल पर्यटन स्थलों में से एक – चिलिका झील.. पुरी की पर्यटन विशेषता में वृद्धि करते हैं। पुरी.. गोवर्धन मठ का स्थल है.. जो आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित 4 प्रमुख पीठों में से एक है। तीर्थ नगर पुरी की पूर्वी सीमा के समुद्र तट.. देश के सर्वाधिक सुरक्षित समुद्र तटों में से एक हैं.. जहाँ पर्यटक समुद्र की सुन्दरता का आनंद प्राप्त करते हैं।
पुरी में मनाए जाने वाले धार्मिक त्यौहार.. देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं.. जिनमें से सर्वाधिक प्रतीक्षित त्यौहार.. रथ यात्रा होती है.. जो अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। श्रद्धालुओं की अगाध आस्था के त्यौहार.. रथ यात्रा में.. प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय से दशमी तक.. भगवान जगन्नाथ.. अपने भाई भगवान बलभद्र तथा बहन देवी सुभद्रा के साथ.. जगन्नाथ मंदिर अर्थात अपने निवास से गुंडिचा मंदिर तक की यात्रा.. रथ पर करते हैं.. जहां वे नौ दिनों के लिए अपनी मौसी से भेंट करने जाते हैं। जिस समय पुरी का एक भाग.. भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के वार्षिक उत्सव को मनाने में व्यस्त रहता है.. जिसमें असंख्य यात्री भाग लेते हैं.. उस समय मनोरम शांति से युक्त इसके समुद्र तट.. सदैव की भांति.. प्रकृति-प्रेमियों के आकर्षण के केंद्र होते हैं। ये अद्भुत दृश्य.. मानव ह्रदय में व्याप्त विभिन्न भावों के समावेश के भांति ही अत्यंत रमणीय होता है।
भारत समन्वय परिवार की ओर से.. जगत के स्वामी.. भगवान जगन्नाथ के पवित्र धाम.. जगन्नाथ पुरी को बारम्बार प्रणाम। भारत के आस्था केन्द्रों एवं पवित्र तीर्थ स्थानों की महत्ता से जन-जन को परिचित कराना.. हमारी प्राथमिकता भी है तथा सतत प्रयास भी।
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