रायगड किला: जहाँ से शुरू हुआ मराठा साम्राज्य का स्वर्णिम इतिहास || Raigad Fort Complete History
जहां बादल पहाड़ों को चूमते हैं, वहीं स्थित है रायगड किला, जो केवल पत्थरों की एक इमारत नहीं, बल्कि स्वाभिमान और स्वराज्य के एक महान स्वप्न का साकार रूप है। आज से लगभग 370 वर्ष पहले, इसी पर्वत शिखर पर एक साधारण युवक ने छत्रपति का मुकुट धारण कर पूरे भारतवर्ष में स्वराज्य की चेतना जागृत की।
17वीं सदी से पहले यह किला ‘रायरी’ के नाम से जाना जाता था, जिसे पश्चिमी घाट के जवाली क्षेत्र के सामंत चंद्रराव मोरे ने बनवाया था। सन् 1656 में युवा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज ने चंद्रराव मोरे को परास्त कर इस दुर्ग पर अधिकार किया। तीन ओर से गहरी घाटियों से घिरा और केवल एक कठिन मार्ग से जुड़ा यह किला अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण शिवाजी महाराज को अत्यंत प्रिय लगा।
उन्होंने अपने प्रमुख अभियंता हिरोजी इंदुलकर को किले के पुनर्निर्माण का दायित्व सौंपा। भव्य महल, राजकीय टकसाल, तीन सौ पत्थर के घर, सैनिकों की छावनी और एक मील लंबा बाजार नए सिरे से निर्मित किए गए। इसी के साथ रायरी का नाम बदलकर ‘रायगड’ – राजा का किला रखा गया, जो मराठा साम्राज्य की धड़कन बन गया।
शिवराज्याभिषेक और मराठा साम्राज्य का उत्कर्ष
6 जून 1674 भारतीय इतिहास की सबसे गौरवशाली तिथियों में से एक है। इसी दिन रायगड की राजसभा में शिवाजी महाराज का भव्य राज्याभिषेक हुआ और उन्होंने बिना किसी मुगल सम्राट की अनुमति के ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की। यह मुगल शासन के विरुद्ध एक साहसिक और ऐतिहासिक घोषणा थी।
यहीं से मराठा साम्राज्य का विस्तार पश्चिमी और मध्य भारत के विशाल क्षेत्रों तक हुआ। सन् 1689 में मुगल सेनापति जुल्फिकार खान ने किले पर अधिकार कर लिया और औरंगजेब ने इसका नाम बदलकर ‘इस्लामगढ़’ रखा, लेकिन 1707 तक मराठों ने पुनः इसे जीत लिया।
1818 में अंग्रेजों ने भारी तोपों से गोलाबारी कर किले पर कब्ज़ा कर लिया और इसे काफी हद तक नष्ट कर दिया। इसकी अभेद्य संरचना से प्रभावित होकर अंग्रेजों ने इसे “पूर्व का जिब्राल्टर” कहा।
रायगड किले की संरचना, धार्मिक महत्व और आधुनिक पहचान
समुद्र तल से 1,356 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रायगड सह्याद्री पर्वत श्रृंखला का मुकुट कहलाता है। किले तक पहुंचने के लिए 1,737 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं:
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महा दरवाजा – मुख्य प्रवेश द्वार, जिसके दोनों ओर 20 मीटर ऊंचे बुर्ज हैं
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नगरखाना दरवाजा – तीन मंज़िला इमारत, जहां अद्भुत ध्वनि व्यवस्था देखने को मिलती है
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रानिवास – महारानियों का छह कक्षों वाला निवास
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गंगा सागर – विशाल कृत्रिम जलाशय
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जगदीश्वर मंदिर – शिव मंदिर, जहां प्रवेश द्वार पर हिरोजी इंदुलकर का नाम अंकित है
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तकमक टोक – उत्तर दिशा की वह चट्टान, जहां से अपराधियों को दंड दिया जाता था
रायगड केवल एक किला नहीं, बल्कि ‘शिव तीर्थ’ है। यहां स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि महाराष्ट्र के लोगों के लिए अत्यंत पूजनीय स्थल है। हर वर्ष शिवराज्याभिषेक की वर्षगांठ और शिवाजी महाराज की पुण्यतिथि पर यहां भव्य समारोह आयोजित होते हैं।
आज रायगड एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। रायगड रोपवे, जो भारत की एकमात्र गैर-लाभकारी रज्जु मार्ग परियोजना है, मात्र चार मिनट में शिखर तक पहुंचा देता है। यह किला UNESCO विश्व धरोहर के लिए नामांकित “Maratha Military Landscapes of India” के अंतर्गत शामिल 12 किलों में से एक है।
निष्कर्ष
रायगड आज भी धुंध में लिपटा, बादलों को छूता हुआ हर भारतीय को यह संदेश देता है—
“स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।”
यह किला इतिहास को जीवंत करता है, मराठा गौरव को अमर बनाता है और भारतीय संस्कृति के अटूट स्तंभ के रूप में सदैव खड़ा रहेगा।