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13वीं सदी का सूर्य मंदिर — जहाँ आज तक पूजा नहीं हुई! | Mystery of Konark Sun Temple | Odisha | Puri

इस मंदिर को जो भी देखता है, मंत्रमुग्ध हो जाता है, लेकिन धर्म की मृत्यु के साथ यह मंदिर अपवित्र हो गया था, इसलिए यहाँ कभी भी सूर्य देव की पूजा नहीं की गई। आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके लिए सूर्य मंदिर में कभी पूजा नहीं हुई — आइए जानते हैं।

कोणार्क का सूर्य मंदिर: वास्तुकला, प्रतीकवाद और धर्म-संस्कृति का मेल

कोणार्क का सूर्य मंदिर (konark sun temple facts) भारत के सबसे अद्वितीय और भव्य धार्मिक स्मारकों में से एक है, जो अपनी वास्तुकला की अद्वितीयता और गहरे धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इसे 13वीं शताब्दी में गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव I द्वारा बनवाया गया था और यह ओडिशा की मंदिर वास्तुकला की पराकाष्ठा का प्रतीक है। 
यह मंदिर एक विशाल रथ के रूप में डिजाइन किया गया है, जिसमें सात घोड़े और बारह पहिए हैं, जो सूर्य देवता, सूर्य, को आकाश में यात्रा करते हुए दर्शाते हैं। पत्थर से नक्काशीदार यह संरचना वास्तुकला, प्रतीकवाद और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है।
भारत के पूर्वी तट पर स्थित यह मंदिर(sun temple konark), जो समुद्र के किनारे पर स्थित है, पुरी से लगभग 35 किलोमीटर और भुवनेश्वर से 65 किलोमीटर दूर है, अपनी भव्यता और शांति के साथ एक प्रभावशाली रूप में खड़ा है। Incredible India+1
“कोणार्क” नाम दो संस्कृत शब्दों से लिया गया है: “कोना” (कोने) और “अर्क” (सूर्य), जो इसके सूर्य देवता से जुड़ी पवित्रता को दर्शाते हैं। Wikipedia+1
इस मंदिर का पौराणिक आधार सांब (भगवान कृष्ण के पुत्र) और राक्षस गयासुर की कथा से जुड़ा है। युद्ध के बाद, विष्णु ने अपनी दिव्य प्रतीक—पुरी में शंख, भुवनेश्वर में चक्र, जाजपुर में गदा और कोणार्क में कमल—स्थापित किए थे, ताकि विजय का स्मरण किया जा सके। इस प्रकार, कोणार्क एक अत्यधिक धार्मिक स्थल बन गया। 
मंदिर की पौराणिक महिमा को समृद्ध करने वाली एक और कहानी है सांब की — कथानुसार, सांब को उनके पिता के श्राप के कारण कुष्ठरोग हो गया था और उन्होंने इसका इलाज करने के लिए चंद्रभागा नदी के संगम पर 12 वर्षों तक तपस्या की। अंततः सूर्य देवता से उन्हें उपचार मिला और स्वस्थ होने के बाद, सांब ने सूर्य देवता के सम्मान में इस मंदिर को बनाने का निश्चय किया। इस तपस्या के बाद, उन्हें एक सूर्य प्रतिमा प्राप्त हुई, जिसे दिव्य शिल्पी विश्वकर्मा ने सूर्य के शरीर से निर्मित किया था। इस घटना ने कोणार्क को एक पवित्र स्थल बना दिया और सूर्य देवता के महत्व को और भी बढ़ा दिया।

सूर्य-पूजा, समय-चक्र और रहस्य

प्राचीन भारत में सूर्य पूजा का महत्व अत्यधिक था। सूर्य को जीवन और ऊर्जा का सर्वोत्तम स्रोत माना जाता था, जो स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति का दाता था। उनका महत्व विशेष रूप से ओडिशा में देखा जाता था, जहाँ उन्हें मुख्य देवता के रूप में पूजा जाता था, साथ ही पृथ्वी माता की पूजा भी की जाती थी। कोणार्क सूर्य मंदिर सूर्य के प्रति इस प्राचीन श्रद्धा का प्रतीक है।
सूर्य मंदिर का रूप सूर्य देवता के रथ के रूप में है, जिसमें प्रत्येक ओर बारह खूबसूरत नक्काशीदार पहिए हैं, जिनका व्यास ल

गभग तीन मीटर है। ये पहिए केवल सजावटी नहीं हैं, बल्कि समय के चक्र को दर्शाते हैं, जो बारह महीनों और ऋतुओं के चक्र को प्रतीकित करते हैं। UNESCO World Heritage Centre+1
मंदिर की दीवारों पर दैनिक जीवन, देवताओं की कथाएँ और ब्रह्मांडीय व्यवस्था को दर्शाने वाली मूर्तियाँ हैं। ये नक्काशियाँ 13वीं शताब्दी के ओडिशा के समाज, संस्कृति और धार्मिक प्रथाओं का गहरा ज्ञान प्रदान करती हैं। पहियों के बीच मंदिर की आधारशिला पर शेर, नर्तक, संगीतकार और यहाँ तक कि यौन चित्रण भी दर्शाए गए हैं, जो उस समय की उन्नत कलात्मक अभिव्यक्तियों को प्रदर्शित करते हैं। 
मंदिर का संपूर्ण रूप एक प्रतीकात्मक चक्र के रूप में है, जिसमें प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक उद्देश्य को दर्शाने वाले विभिन्न वास्तु घटक शामिल हैं। केंद्रीय संरचना, जिसे विमाना कहा जाता है, कभी एक उच्च शिखर से शिखरित था, लेकिन समय के साथ यह नष्ट हो गया। विमाना के पूर्व में जहमोगना (दर्शक कक्ष) स्थित है, और इसके बाद नटमंदिर (नृत्य कक्ष) है। ये संरचनाएँ आज भी क्षतिग्रस्त हैं, लेकिन मंदिर के मूल डिजाइन की भव्यता को दर्शाती हैं। मंदिर के चारों ओर कई छोटे मंदिर भी हैं, जो शिव और दुर्गा जैसे विभिन्न देवताओं को समर्पित हैं, और इन मंदिरों में रमेश्वर, चितरेश्वर और त्रिवेणीश्वर जैसे शिवलिंग और विभिन्न दुर्गा रूपों के मंदिर भी शामिल हैं। asi.nic.in

ये तो हुई इस मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी — लेकिन ऐसा क्या रहस्य है जिसके कारण यहाँ कभी पूजा नहीं हुई? तो कहा जाता है कि जब इस मंदिर का निर्माण हो रहा था तभी इस मंदिर के मुख्य वास्तुकार की बेटी ने इसी मंदिर में आत्महत्या कर ली थी। इस घटना के बाद से इस मंदिर में पूजा या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस वजह से कोणार्क मंदिर में आज तक कभी पूजा नहीं की गई है।

विश्व धरोहर और संवेदी रहस्य

कोणार्क सूर्य मंदिर का एक और रहस्य है। कहा जाता है कि मंदिर के ऊपर 51 मीटर का चुंबक लगा हुआ था। इस वजह से पहले जब जहाज इस रास्ते से गुजरते थे तो चुंबकीय प्रभाव की वजह से रास्ता भटक जाया करते थे। कुछ जहाज़ तो समुद्र से किनारे तक अपने आप खींचे चले आते थे। जहाज़ के दिशासूचक यंत्र काम करना बंद कर दिया करते थे। इस वजह से उस समय के नाविकों ने मंदिर से चुंबक हटा दिया था।
कोणार्क को इसकी अद्वितीय शिल्पकला और ऐतिहासिक महत्व के कारण UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। UNESCO World Heritage Centre+1 इस मंदिर का निर्माण 1,200 कारीगरों द्वारा 12 वर्षों में किया गया था, जो श्रम और समर्पण का एक अद्वितीय उदाहरण है। मंदिर की शिल्पकला, वास्तुकला की नवाचारीता और धार्मिक महत्व इसे एक अनमोल सांस्कृतिक धरोहर बनाती है। इसकी भव्यता, साथ ही इसकी ऐतिहासिक महत्ता, यह सुनिश्चित करती है कि यह आज भी भारत के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों में से एक बना हुआ है।

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