श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिखाया विराट रूप | भगवद गीता अध्याय 11 | विराट रूप दर्शन योग | Geeta Gyaan
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा विराट रूप का दर्शन
श्रीमद भगवद गीता के ग्यारहवें अध्याय का नाम 'विश्वरूप दर्शन योग' है, और इसमें कुल 55 श्लोक हैं। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपनी दिव्य दृष्टि प्रदान करके अपना विराट रूप दिखाया। यह अध्याय भगवद गीता के महत्वपूर्ण और अद्भुत भागों में से एक है, जो जीवन और ब्रह्म के रहस्यों को उजागर करता है।
अर्जुन की जिज्ञासा और भगवान की कृपा
अर्जुन, जो पहले श्री कृष्ण के कथन से संतुष्ट नहीं था, अपने मन में उत्सुकता से भगवान के विश्वरूप को देखने की इच्छा व्यक्त करता है। वह कहता है, "भगवान, आपने अपनी विभूतियों का वर्णन मुझे विस्तार से किया, जिससे मेरा मोह दूर हो गया, परन्तु अब मैं चाहत हूँ कि मैं आपको अपनी आँखों से देख सकूँ, जैसा आपने कहा है कि मैं सर्वत्र हूँ।"
श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिव्य चक्षु प्रदान किए, जिससे वह उनका विराट रूप देख सके।
विराट रूप का दिव्य वर्णन
भगवान ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया, जो अत्यधिक अजीब और अद्भुत था। इस रूप में अनेक मुख और नेत्र थे, और यह रूप अनंत, अविनाशी और ब्रह्म का प्रतीक था। अर्जुन ने भगवान के इस अद्वितीय रूप को देखा, जिसमें प्रत्येक दिशा में अनगिनत रूप थे, और हज़ारों सूर्यों से भी अधिक प्रकाश की किरणें फैल रही थीं।
अर्जुन की अनुभूति और भक्ति
अर्जुन ने भगवान के इस रूप को देखकर उनके परम तत्व की पहचान की। उसने भगवान के न आदि, न मध्य, और न अंत को देखा और यह अनुभव किया कि वह सर्वव्यापी ब्रह्म ही है।
अर्जुन ने भगवान के सामने सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम किया और कहा, "आप ही संसार के रचनाकार हैं, आप ही इसके पालनहार और संहारक हैं।"
अर्जुन की क्षमा याचना और श्रीकृष्ण का उपदेश
अर्जुन ने अपनी गलती को स्वीकार किया और भगवान से क्षमा याचना की। श्री कृष्ण ने कहा कि, "अर्जुन, तुमने मुझसे जो गलती की है, वह तुम्हारे न जानने के कारण थी।"
भक्ति और कर्तव्य का मार्ग
इस अध्याय के अंत में, भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया कि उसे युद्ध करना है, लेकिन एक खास तरीके से। उन्होंने कहा,
"अर्जुन, तुम्हें मेरी शरण में आकर, मेरे प्रति पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ युद्ध करना है। तुम्हें अपना कर्म निभाना है, और यही तुम्हारा धर्म है।"
नवधा भक्ति और परमात्मा की प्राप्ति
भगवान ने यह भी कहा कि एक सच्चा भक्त कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्ति योग के माध्यम से ब्रह्म के साक्षात्कार को प्राप्त करता है। इसके लिए नौ प्रकार की भक्ति होती है:
श्रवण, कीर्तन, स्मरण, अर्चन, पादसेवन, वन्दन, सख्य, दास्य और आत्मनिवेदन।
जीवन और मृत्यु के सत्य की शिक्षा
इस अध्याय में भगवान ने अर्जुन को यह सिखाया कि जीवन और मृत्यु दोनों ही महाकाल के अधीन हैं।
भगवान ने स्पष्ट रूप से कहा कि,
"मैंने तुम्हें अपनी दिव्य दृष्टि प्रदान की है, ताकि तुम जान सको कि मैं ही सृजन, पालन और संहार का कारण हूँ।"
विश्वरूप दर्शन योग का सार
इस प्रकार, 'विश्वरूप दर्शन योग' अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने न केवल अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया, बल्कि जीवन के गहरे रहस्यों को भी उजागर किया।
यह अध्याय बताता है कि परमात्मा हर जगह विद्यमान है और उसका रूप अत्यधिक विशाल और अनंत है।
अंतिम उपदेश और निष्कर्ष
इस अध्याय के माध्यम से श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह उपदेश दिया कि संसार में चाहे कोई भी हो, उसका कर्तव्य और भक्ति ही उसे परमात्मा के निकट ले जा सकती है।
और अंत में, भगवान ने अर्जुन से कहा कि युद्ध में जीत के लिए तुम्हें मेरी शरण में आकर अपने कर्तव्यों को पूरी श्रद्धा से निभाना होगा। Bharat Mata Official Website | Geeta Gyan Shrinkhala | YouTube Channel - Bharat Mata
सारांश: विराट रूप का साक्षात्कार
अंततः, 'विश्वरूप दर्शन योग' का सार यही है कि भगवान का रूप अत्यधिक विशाल, दिव्य और अनंत है, और जो व्यक्ति सच्चे हृदय से अपनी भक्ति करता है, वह उस दिव्य रूप का साक्षात्कार कर सकता है।
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