गीता ज्ञान श्रृंखला

श्रीमद भगवद गीता - अध्याय 8 | अक्षर ब्रह्म योग | सिर्फ 3 मिनट में सरल शब्दों में गीता ज्ञान

भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के आठवें अध्याय -अक्षर ब्रह्म योग को समर्पित है। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के प्रश्नों के उत्तर दिए, जिनसे जीवन, ब्रह्म, कर्म और भक्ति के गहरे रहस्यों का उद्घाटन हुआ।

श्रीमद भगवद गीता सार - अध्याय 7 | ज्ञान विज्ञान योग | आसान शब्दों में गीता ज्ञान | Bhagavad Gita

भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के सातवें अध्याय - ज्ञान विज्ञान योग को समर्पित है। इस अध्याय में कृष्ण ने अपने भक्तों के चार प्रकारों का उल्लेख किया है: अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी।

श्रीमद भगवद गीता सार - अध्याय 6 | आत्म संयम योग | आसान शब्दों में गीता ज्ञान | Bhagavad Gita

भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के छठे अध्याय -आत्म संयम योग को समर्पित है। जिसमें प्रमुख रूप से योग की प्राप्ति के लिए अभ्यास पर बल दिया है।

श्रीमद भगवद गीता सार - अध्याय 5 | कर्म संन्यास योग | आसान शब्दों में गीता ज्ञान | Geeta Gyan Series

भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के पंचम अध्याय -कर्म संन्यास योग को समर्पित है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने निष्काम कर्मयोग को विशेष रूप से श्रेष्ठ बताया है।

श्रीमद भगवद गीता अध्याय 4 | ज्ञान कर्म संन्यास योग | गीता ज्ञान श्रृंखला

भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के चतुर्थ अध्याय -ज्ञान कर्म संन्यास योग को समर्पित है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने गूढ़ ज्ञान और कर्म के अद्भुत संतुलन को स्पष्ट किया है।

श्रीमद भगवत गीता सार- अध्याय 3 | कर्म योग | गीता ज्ञान श्रृंखला

भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के तीसरे अध्याय -"कर्मयोग" को समर्पित है। जिसमें भगवान श्री कृष्णअर्जुन को कर्म करने के महत्व और उसके सही आचरण के बारे में उपदेश देते हैं।

श्रीमद भगवत गीता : अध्याय 2 | सांख्य योग | गीता ज्ञान श्रृंखला

भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के दूसरे अध्याय - सांख्य योग को समर्पित है। द्वितीय अध्याय में सांख्य अथवा सन्यास मार्ग का विवेचन है।

श्रीमद भगवत गीता : अध्याय 1 | अर्जुन विषाद योग | गीता ज्ञान श्रृंखला

भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के प्रथम अध्याय - विषाद योग को समर्पित है। प्रथम अध्याय में जगत के रूपों का वर्णन है