श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय "दैवासुर सम्पद् विभाग योग" में श्रीकृष्ण ने मनुष्य के दो प्रकार के स्वभाव — दैवी और आसुरी — का वर्णन कर बताया कि दैवी गुण मुक्ति की ओर और आसुरी गुण अधोगति की ओर ले जाते हैं।
भारत माता द्वारा प्रस्तुत गीता ज्ञान श्रंखला के पंद्रहवें अध्याय - पुरुषोत्तम योग मे आत्मा और परमात्मा को समझने के सही मार्ग के बारे मे बताया गया है। इस अध्याय का विस्तृत सार, हर साधक के लिए मार्गदर्शक और प्रेरणादायक है।
भारत माता की इस प्रस्तुति मे गीता के चौदहवें अध्याय जिसे गुणत्रय विभाग योग कहा गया है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने प्रकृति के तीन गुणों – सत्त्व, रज और तम – का विस्तार से वर्णन किया है।
भारत माता की इस प्रस्तुति मे श्रीमद्भगवद्गीता का सार है,श्रीमद्भगवद्गीता का & क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग अध्याय आत्मा और शरीर के गहरे संबंध को उजागर करता है।
भारत माता द्वारा प्रस्तुत गीता ज्ञान श्रंखला के बारहवें अध्याय मे भगवान श्री कृष्ण ने भक्ति और ज्ञान मे से भक्ति को ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग बताया है।
भारत माता द्वारा प्रस्तुत गीता ज्ञान श्रंखला के ग्यारहवें अध्याय मे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपनी दिव्य दृष्टि प्रदान करके अपना विराट रूप दिखाया।
भारत माता द्वारा प्रस्तुत गीता ज्ञान श्रंखला के इस भाग मे ईश्वर ने वर्णित किया है कि मै कौन हूँ और कहाँ हूँ? श्री कृष्ण कहते हैं कि - जो इस ज्ञान को समझकर मुझे भजता है, मैं स्वयं उसके हृदय में वास करता हूँ।
भारत माता की इस प्रस्तुति मे गीता के नौवें अध्याय राजविद्या राजगुह्यं योग की व्याख्या है , जो विशेष रूप से एक दिव्य और रहस्यमय विद्या से संबंधित है।
भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के आठवें अध्याय -अक्षर ब्रह्म योग को समर्पित है। इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के प्रश्नों के उत्तर दिए, जिनसे जीवन, ब्रह्म, कर्म और भक्ति के गहरे रहस्यों का उद्घाटन हुआ।
भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के सातवें अध्याय - ज्ञान विज्ञान योग को समर्पित है। इस अध्याय में कृष्ण ने अपने भक्तों के चार प्रकारों का उल्लेख किया है: अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी।
भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के छठे अध्याय -आत्म संयम योग को समर्पित है। जिसमें प्रमुख रूप से योग की प्राप्ति के लिए अभ्यास पर बल दिया है।
भारत माता की यह प्रस्तुति गीता ज्ञान श्रंखला के पंचम अध्याय -कर्म संन्यास योग को समर्पित है। जिसमें भगवान श्री कृष्ण ने निष्काम कर्मयोग को विशेष रूप से श्रेष्ठ बताया है।