कवित्रयी अंडाल | Kavitryi Andal | Bharat Mata
अंडाल को दक्षिण की मीरा बाई के नाम से जाना जाता है। मीरा के समान बचपन से ही आन डाल अपना जीवन ईश्वर को अर्पित कर चुकी थी। भगवान रंगनाथ को पति के रूप में मान लिया था। दक्षिण में इनके भक्ति गीत अत्यंत लोकप्रिय हैं। एक महान संत के रूप में सभी उनके प्रति श्रद्धा बनत है। प्रभु से सबसे प्रिय हो उसे दक्षिण की भाषा में अलवर कहा जाता है। यहां वैष्णव संप्रदाय में केवल एक ही महिला हुई जिसे आज बार कहा जाता है और वह थी आमदार विष्णु चेतन नाम के वहां वैष्णव भक्त हुए जिन्होंने उसे गोद लेकर इतना महान बनाया।
Andal | दक्षिण भारत की मीरा आण्डाल का इतिहास
एक दिन विष्णु चित्र सूर्योदय के बाद अपने बगीचे में तुलसी के पौधे लगाने के लिए कुदाली से क्यारी बना रहे थे कि अचानक ही कुदाली किसी से टकराई। सावधानी से खुदाई के बाद एक पेटी निकली। पहले सोचा उसमें धन निकलेगा। इच्छा से उन्हीं की सेवा में अर्पित कर दिया जाएगा किंतु खोलने पर एक सुंदर कन्या निकली। प्रभु की इच्छा समझ विष्णु चित्र घर ले आए और उसका नाम गोदा घुमाने धरती दामनी दिया। धरती मां के देने के कारण रखा जिसके सुंदर के शो उसे को दे भी कहते हैं। परंतु विष्णु चित उसे अंडाल यानी तो दूसरों को आकर्षित करें। कहकर पुकारते थे माता-पिता दोनों का कर्तव्य निर्वाह कर विष्णु जितने प्रसन्नता के साथ अंडाल का पालन पोषण किया रे कभी घर पर भोजन नहीं पकाते थे। बट पत्र साईं भगवान के मंदिर में जो प्रसाद मिलता वही उनका भोजन था और वही प्रसाद अंडाल को दिया जाने लगा। 1 वर्ष बीत गया विष्णु चेतन डाल का जन्मदिन मनाना चाहते थे परंतु भगवान की भक्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं जानते थे। उस दिन भी मंदिर का प्रसाद अंडाल को दिया। ईश्वर के ध्यान व प्रसाद से अंडाल प्रसन्न और पुलकित होती विष्णु चित्र जी। निशा अपने साथ रखते और भगवान की शक्ति, गुणों और दयाल होने की कथाएं सुनाया करते नन्ही बालिका बगीचे में फूल सुनती और टोकरी में डालते जाती। निश्चित कहते कि सब कुछ प्रभु का है। अंडाला घूमते समय पिता के शब्द स्मरण कर गुनगुनाती यह सब ईश्वर का है। अपनी कल्पना भी फूल से करती और उसे भी ईश्वर के प्रति समर्पित समझती। बहुत सुंदर हार बनाते बनाते। प्रभु ध्यान में तल्लीन हो जाती।
एक दिन विष्णु चित्र जी ने भगवान के लिए पुष्प हार गोंडा मंडल ने देखा और हार को पहनने की इच्छा देगी। वह भगवान को वैसे ही प्रसन्न रखना चाहती थी। जैसे में हार पहन कर होते हैं। पिता कुटिया में नाथ है और बस हारा डालने पहन लिया। आण्डाल अपनी ओर देखा और गुनगुनाने लगी कि भगवान प्रसन्न हो जाएंगे। थोड़ी देर बाद वह हार उतारकर जहां का तहां रख दिया, फिर ऐसा वह प्रतिदिन करने लगी।एक दिना डालने गले में हार डाला और कहा यह ईश्वर को समर्पित हो गया।
विष्णु चित्र जी के कानों में जैसे ही यह शब्द पहुंचे के अंदर की तरफ मुड़कर देखा तो विष्णु चित्र को बड़ा धक्का लगा। हार बनाते समय अपनी उंगलियों के अतिरिक्त फूलों को किसी अंग से स्पष्ट नहीं होने देते थे। वह तथा नाक से कपड़ा बांधकर माला घूमते। इसकी सुगंध भगवान से पहले मुझे ना मिले। अंडर को हार पहने देखो चीज पड़े अपने पहने हुए फूल भगवान को चढ़ाना पाप है। आंडल दुखी हुई कहा नहीं नहीं। मैं अब ऐसी बात कभी नहीं करूंगी और पिता से क्षमा मांगी। उस दिन बट पत्र साईं भगवान बिना हार के ही रहे जितने क्षमा मांगी भगवान मानो विष्णु चित्र से कह रहे थे कि तुम्हारी पुत्री द्वारा पहने पुष्प हार में उसकी श्रद्धा और निर्मलता की गंध आती है। वही हार मुझे प्यारा लगता है। निश्चित को बड़ा आश्चर्य लगा कि मैं इतने लंबे अरसे से भक्ति। रहे हैं और प्रभु ने इस कन्या की भक्ति को स्वीकार है। मेरी पुत्री भाग्यशाली है। उन्हे पश्चाताप होने लगा और कन्या द्वारा पहना हुआ हार ही भगवान को पहना दिया। अब मंडल द्वारा पहना हुआ पुष्टाहार भगवान को चढ़ाया जाने लगा। अंडाल चाहती थी कि उसकी सहेलियां भी भगवान से प्रेम करें। आण्डाल मार्गशीर्ष मास की कड़ाके की ठंड के दिनों में कठिन व्रत का पालन किया। अपनी सहेलियों को भी तैयार किया। प्रातः काल जल्दी ही भगवान की जगाने के लिए अंडाल ने 30 गीतों की रचना की विज्ञप्ति रुपए के नाम से जाने जाते हैं। इसका अर्थ होता है। उच्च स्तरीय श्रद्धा अर्चना पूर्ण गीत अंडर 500000 महिलाओं को ईश्वर भक्ति का मार्ग दिखाया। भगवान की भक्ति और उनके ध्यान में कई वर्ष बीत गए। विवाह योग्य होने पर विस्तृत ने अपनी कन्या से पूछा। तुम किसके साथ में बाहर जाओगी।
अंडाल ने कहा श्री रंग क्षेत्र के भगवान श्री रंगनाथ जी ही मेरे पति हैं, मै उनके सिवाये किसी और से विवाह नहीं करूंगी। ये सुनकर विष्णुचित्त दुखी हुए और भगवान से प्रार्थना करते हुए बोले की वे ही रास्ता दिखाएं। एक दिन स्वपन मे श्री रंगनाथ जी बोलते हुए दिखाई दिए की अंडाल ने मेरा हृदय जीत लिया है। उसका विवाह मेरे साथ करो। विष्णुचित्त गद-गद होगए और सारी चिंताएं दूर होगईं। परंतु लंबी यात्रा करना दुष्कर था की वो श्री रंगम कैसे पहुंचे? रंगनाथ जी ने अंडाल को स्वीकार किया और सबने अंडाल की महत्ता को देखा। अंडाल सभी के लिए देवी बन गई। एक साधारण लड़की सबकी पूजा की पत्रा होगई। आज भी अंडाल की पूजा अंडाल मंदिर के बगीचे के फूलों से की जाती है।
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