Mahadevi Verma JI | महादेवी वर्मा की मैं नीर भरी दुःख की बदली | Bharat Mata

महान साहित्यकार और हिंदी साहित्य में छायावाद को प्रमुखता से स्थान दिलाने वाली स्वर्गीय महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि है। वे एक यशस्वी रचनाकार होने के साथ-साथ एक प्रखर व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं, जिन्होंने अपने भाव में सृजन और कर्मठ जीवन साधना से अपनी रचनाओं को जीवंत किया और अपने शब्दों को अपनी जीवनशैली से सार्थक किया। उनके शब्दों में तलाक के पारस का स्पर्श पा लेने वाले का कलाकार के अतिरिक्त कोई नाम नहीं, साधक के अतिरिक्त कोई फर्क नहीं, सत्य के अतिरिक्त कोई पूंजी नहीं, भाव-सौंदर्य के अतिरिक्त कोई व्यापार नहीं और कल्याण के अतिरिक्त कोई लाभ नहीं। यह अनमोल शब्द उनकी जीवनशैली को परिभाषित करने के लिए पर्याप्त हैं।

महादेवी वर्मा का प्रारंभिक जीवन और योगदान

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम गोविंदप्रसाद वर्मा और माता का नाम हेमरानी देवी था। उनका विवाह डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा से अल्पायु में ही हो गया था। महादेवी वर्मा का छायावाद लेखन ने हिंदी साहित्य में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। उन्हें आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है।

महादेवी वर्मा और छायावाद

अज्ञात और असीम सृष्टि की गहरी अनुभूति में जब करुणा और वेदना समाहित हो जाती है, तो इसे छायावाद कहा जाता है। महादेवी वर्मा जी इस विधा की सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार मानी जाती थीं। उनकी कविता
"क्या अमरों का लोक मिलेगा? तेरी करुणा का उपहार? रहने दो हे देव! अरे यह मेरा मिटने का अधिकार!"
इस भावनात्मक अभिव्यक्ति का उदाहरण है।

महादेवी वर्मा का लेखन और साहित्यिक कृतियाँ

लेखन उनके लिए एक ईश्वर प्रदत्त गुण था। सात वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी थी, और 1950 में मैट्रिक की परीक्षा पास करते समय तक उनकी कविताओं ने देश के प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में अपना स्थान बना लिया था। महाकवि निराला ने उन्हें "सरस्वती" की संज्ञा दी थी।

महादेवी वर्मा ने साहित्य के क्षेत्र में कई प्रसिद्ध कृतियाँ रचीं, जिनमें अतीत के चलचित्र, शृंखला की कड़ियां, स्मृति की रेखाएं, पथ के साथ और श्रद्धा आदि प्रमुख हैं। उनकी पद्य रचनाओं में निखार रश्मि, नीरजा, सादगी दीपशिखा, सप्तपर्णा, हिमालय आदि अत्यंत उत्कृष्ट साहित्य की श्रेणी में आते हैं।

महादेवी वर्मा और सामाजिक योगदान

महादेवी वर्मा का जीवन केवल उत्कृष्ट साहित्य रचना तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज में महिला सशक्तिकरण, दलितों और गरीबों के जीवन सुधार के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके जीवन पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महापुरुषों का गहरा प्रभाव था और उनके सामाजिक कार्यों में प्रेरणा का स्रोत बने।

महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध कविताएँ

महादेवी वर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्म विभूषण जैसे सम्मान प्राप्त हुए। साहित्य और समाज के क्षेत्र में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। उनकी कविता "मैं नीर भरी दुख की बदली" में वे अपने भीतर की गहरी वेदना और भावनाओं को व्यक्त करती हैं:

"मैं नीर भरी दुःख की बदली"

मैं नीर भरी दुःख की बदली

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!

स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,

क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,

नयनों में दीपक से जलते,

पलकों में निर्झरिणी मचली!

 मेरा पग-पग संगीत भरा,

श्वासों में स्वप्न पराग झरा,

नभ के नव रंग बुनते दुकूल,

छाया में मलय बयार पली,

मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,

चिंता का भार बनी अविरल,

रज-कण पर जल-कण हो बरसी,

नव जीवन अंकुर बन निकली!

पथ को न मलिन करता आना,

पद चिह्न न दे जाता जाना,

सुधि मेरे आगम की जग में,

सुख की सिहरन बन अंत खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना,

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना इतिहास यही

उमड़ी कल थी मिट आज चली!

महादेवी वर्मा का निधन और उनकी अमरता

महादेवी वर्मा जी का निधन 11 सितंबर 1987 को प्रयाग में हुआ। वे साहित्य जगत में अमर हो गईं और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। भारत समन्वय परिवार की ओर से महादेवी वर्मा जी को शत-शत नमन।

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